पात पात पंकज पखेरू पवि पावन पे
पीत पट पावनपटीन दुपटीन पै
छाई पीतिमा है पग पग जग नग मग
पादप पिपीलिका पुनीत पातकीन पै
पैंजनी पिनहाय पुनि पायन पलोटे जनु
पीत परिधान पट लिपटे सुतीन्ह पै
पुलकि पराने पाप ताप संताप सब
सन्त ह्वै वसन्त छाय गयो कुमतीन पै
मन्द मन्द नन्दन अनन्दन नदी औ नद
मन्द मन्द गौन मोह मदिरा सी छाई है
महर महर रही महकि मही औ भौन
मलिन मुखीन मन मीन अंगड़ाई है
,,, मुखर मिलिंद मृदु मधुर मुरज और
मादक मृदंग धुनि सुनि हूक छाई है
मोहि मन मोहन को मोहिनी मनौती लै
मानिनी मनैवे को वसन्त ऋतु आई है
बेरिन बबूरन वयारिन सों वाॅसन में
ऑकन पलाशन करीब कचनार में
गेंदन गुलावन नवीन औ पुरानन में
कूलन दुकूलन में गिरि कन्दरान में
काक पिक कूकनि मेंशूलन में फूलन में
केविन कछारन में दसहू दिशान में
भायो मनभावन सुहावन वसन्त आज
डोलै मन हौले खुशी छाई अंखियान में
सरसीरूहों पै सर सरिता सुकेशन पै
सूरत सुहास सब साज हू सुहाई है
साधक सुधीर सुमुखीन शुक सारिका ने
स्नेह रस सानी सरसानी सिद्ध पाई है
अलिन क्लिन संग कीन्ह छेडछाड कहुॅ
डूब रंग अंग अंग मोहिनी सी छाई है
,,, कलि के सलोने श्यामा शयाम को सुनहरो साज
देखि सुधि आई ये वसन्त की दुहाई है
बामविधि बन्दन बनेंगे क्यों न बानक वै
बात बिक्री है बुद्ध बोध तो हमारो है
बार-बर बारि बारि वारि सों बखेर बार
बैरिनि बरो है कैसा पीतरंग प्यारो है
विंध्य विटपी की घनीभूत अटवी के मध्य
बनिन बनाय बनो रंग ढंग न्यारो है
वाल वनिता पे बिन्दु सिन्ध सरिता पै कैसे
रंग आज अपनो वसन्त ने पसारो है
बातन में कामन में आनन विहानन में
कानन कमानन वितान हू सुतान में
मांगन में ऑगन में किलकिलकारिन में
नारिन में गारिन में वाल पुरूषान में
झांकनि में ताकनि मेंहासन विलासन में
हारन पहारन निहारनि बनान में
हृदि हृदयान औ मनान को चहेतो आज
,वासन वसन्त छायो घर गलियान मे