परम शीतल स्नेह स्वरस सरस सर सरोवर शान्त सुगम घना
अतिमना विमना निशि चंद्र लख कमलिनी कर केलि मुदित हुई
जगत जिष्णु सहिष्णु हो उष्णजब भुवनभास्कर भोरउदित हुआ
परम पावन पीतमयी किरण जगत श्रृष्टि चराचर भारती
बनघटा अतिरम्य प्रहर्षिणी कुसुम कानन के कमनीय थे
लग रहा है अनन्त दिगन्त में नव वसन्त प्रभा प्रमुदित हुई
लस रही सरसों लगती धरा सरसती सर सरसिज की छटा
क्षितिज पीत सुवर्णमयी घटा प्रकृति पीत पिताम्बर ओढ़नी
नवपलास यहाॅ पर खिल गये लसित लोल लसीं लतिका विटप
दहकते अंगार बरष बरष कर श्रंगार धरा तरू गुल्म सब
नवकली मकरंद मिलिंद कोविविध गन्ध सुगन्ध मदान्ध कर
बन विटप विटपी अरू वीथियाॅ भ्रमर गुंजन गुंजित हो रहीं
अरूणिमोदित स्वर्णमयी किरण नव प्रभात प्रबात हरीतिमा
दिग्दिगंत सुवास पलाश कीवस रही हर डाल गुलाल सी
सरस शावक सारस ध्वनि करें खिल गयी सरसों सब खेत की
वटुक ब्राह्मण पीत वसन धरे लग रहा ध्वनि वेद उचारते
कृषक भारत का कलरव मधुर सुन थका श्रम से रख हाथ शिर
शयन कर नद नींद समा गया नयन कोर वसा जग मूर्त सब
रंग गया जग पीत वसुन्धरा गगन पीत दिवाकर रशमियाॅ
नववधू सदृशी सज ये धरा स्वर्ण पीतसमा द्युति छा गयी