" मनसा वाचा कर्मणा " देखने में यह सूक्ति जितनी छोटी लग रही है, वास्तविकता में यह उतनी छोटी है, नहीं! इस छोटी सी सूक्ति के सिद्धांत पर ही, इस कर्मभूमि पर घटित होने वाली समस्त क्रियाओं का संपादन होता है। किसी भी कार्य की रूपरेखा, लक्ष्य निर्धारण व लक्ष्य की प्राप्ति कैसे होती है, वह इस छोटी सी सूक्ति के ही अंतरतम् समाहित है। कहा जाता है कि यदि हम कुछ पाने या जानने के लिए यदि तन-मन-धन से लग जाएं तो पूरी सृष्टि हमें उससे मिलाने में सहयोग करती है। इन्हीं बातों पर ही आधारित है, यह स्वयं के द्वारा, स्वयं के अस्तित्व की खोज! इस सृष्टि की रचना सृष्टिकर्ता ने भले ही भूलवश की हो मगर सृष्टि का सबसे बुद्धिमान व विवेकशील प्राणी, मानव स्व की उपस्थिति व उद्देश्य को आदिकाल से अबतक अनवरत खोजता आ रहा है। ऐसा बिल्कुल भी नहीं कि मानव ने अब तक अपने अस्तित्व की खोज नहीं की! बस फर्क यह है कि उसने अपने स्वयं के अस्तित्व की खोज को पूर्ण किया, जो हर एक प्राणी को स्वयं करना होता है।। हममें से हर प्राणी नित उस कारखाने के दरवाजे पर दस्तक देता है, जहाँ सृष्टि का सृजन किया जाता है, लेकिन दरवाजे में दाखिल वही हो पाता है, जो पूरी सिद्दत से अर्थात् मनसा वाचा कर्मणा से अस्तित्व को खोजना चाहता था।
मनुष्य इस सृष्टि का एक विशेष साधक है, जिसका एक मात्र लक्ष्य स्वयं की खोज ही नियति निर्धारित है। मनुष्य की साधना की प्रकृति, वृत्तियों को अंतर्दिशा देने की है, ना कि वृत्तियों की भोग-विलास में संलग्न होने की। मनुष्य केवल एक व्यक्ति बिल्कुल नहीं है, मनुष्य एक आत्मशरीर, ब्रह्मशरीर व निर्वाणशरीर है, इस सत्य को जिसने पहचान लिया, समझो उसने स्व-अस्तित्व को खोज लिया। मनुष्य अपना सम्पूर्ण जीवन संघर्षों में समाप्त कर देता है, जैसे खाने-पीने, जीने व पाने की लालसा, जिस कारण इस जीवन के मूल उद्देश्य की खोज के लिए उसके पास समय ही नहीं बचता और वह इस खोज से पहले ही दम तोड़ देता है। मनुष्य के द्वारा स्व-अस्तित्व की खोज जीवन की हर आवश्यकताओं से कहीं बड़ी व जरूरी है, क्योंकि जब तक हमें खुद के होने का उद्देश्य नहीं मालूम होगा, तब तक एक हम एक लक्ष्यहीन धावक के माफिक होंगे। जो कार्य तो कर रहा होगा, मगर कहाँ जाना है? व क्या पाना है? का औचित्य उद्देश्यहीन ही रह जाएगा। अतः स्व-अस्तित्व की खोज बहुत ही जरूरी है, इससे मनुष्य को मनुष्य होने का उद्देश्य ज्ञात होगा और सर्वसमाज का कल्याण होगा।
मिथलेश सिंह मिलिंद
आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)