शीषर्क - माँ लौट आ माँ
विधा - गीत
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माँ के लिए तो बहुतों ने बहुत कुछ लिखा पर आज सोचता हूँ, जिनकी माँ नहीं उनके लिए चंद पंक्तियाँ लिखूँ
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नींद नहीं आती है माँ,
इन रेशम वाली तकियों पर।
अब भी जैसे फिरती तेरी,
उँगली मेरी अंखियों पर।।
तेरे बिन माँ घर का कोना,
सूना-सूना लगता है।
तेरी थपकी के सम्मुख हर,
उपवन बौना लगता है।
डर लगता है अब भी मुझको,
माँ अपनी ही परछाँई से।
जान बचाना बड़ा ही मुश्किल,
माँ अपनी ही तन्हाई से।।
अनायाश हँस पड़ता हूँ मैं,
माँ बचपन वाली बतियों पर।
अब भी जैसे फिरती तेरी,
उँगली मेरी अंखियों पर।। नींद नहीं......
पापा की फटकारो से माँ,
मुझको कौन बचाएगा?
मेरी सारी गलती को माँ,
आँचल में कौन छुपाएगा?
डरता हूँ हर पल माँ कि,
गलती न कोई हो जाये।
इन दर्द भरी चीखों में माँ,
न बचपन मेरा खो जाये।।
तेरी यादों का ही भ्रम माँ,
भारी सारी रतियों पर।
अब भी जैसे फिरती तेरी,
उँगली मेरी अंखियों पर।। नींद नहीं......
मिथलेश सिंह मिलिंद