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सखी छंद

25 दिसम्बर 2021

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विधा - सखी छंद (द्विअर्थी रचना)
विधान - मात्रिक (प्रति चरण मात्रा भार - १४, दो-दो चरण समतुकांत)

चंचल जब चपला चमके।
मनका यह दादुर चहके।।
मनका जब मन का फेरा।
आया  मन  मोहन  मेरा।।

तारा   ने  जीवन  तारा।
तारा  ही अम्बर  धारा।।
रूमा छवि दुष्ट निहारा।
तारा  को  बाली  हारा।।

शब्द-अर्थ
चपला = आकाश की बिजली / लक्ष्मी
मनका = मनके की माला / चित्त का
तारा = आँख की पुतली / नक्षत्र /बाली की पत्नी /पार लगाना (उद्धार /मार्ग दिखाना) 

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