विधा - सखी छंद
विधान - मात्रिक (प्रति चरण मात्रा भार - १४, दो-दो चरण समतुकांत)
ज्वाला में तपकर सोना।
पाता इक रूप सलोना।।
सागर भव गोता खाये।
मानव तब पूजा जाये।।
राजा हो जन्तु भिखारी।
सबका है यहाँ उधारी।।
देना तो सबको होगा।
मुकरा जो इससे भोगा।।
रावण सा योद्धा ज्ञानी।
आखिर में माँगा पानी।।
सोने की टूटी लंका।
झूठी अहि रावण शंका।।
मिथलेश सिंह मिलिंद