काफ़िया - आम
रदीफ़ - कर देना
बह्र :- १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
मुहब्बत गर निगाहों में जरा यह काम कर देना।
फिजा के चाँद-तारे भी हमारे नाम कर देना।।
चली जाए मुहब्बत जो जिगर को तोड़ कर तेरे ,
बहारों पर लगे जैसे खिजा बदनाम कर देना।
जमीं अपनी जहां अपना लगे इन ऋतु बहारों में ,
धरा से शून्य तक बेशक गुले गुल-फाम कर देना।
बहारें जिस किसी भी मरु धरा पर छाप निज छोड़ें ,
उसी मरु भूमि को जन्नत खुदाया राम कर देना।
नहीं खोना कभी 'मिथलेश' मधुरिम इन बहारों को,
बहारों के लिए बेशक मुझे नीलाम कर देना।
मिथलेश सिंह 'मिलिंद'
आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)