आज के इस आधुनिक युग में आटा चक्की की तरह पिसती जिन्दगी में लोग चौबीस घंटे दिन रात अपने परिवार की आजिविका को चलाने के लिये प्रयत्नशील है ऐसे में प्रश्न उठता है की क्या संस्कार आज भी है या समाप्त हो चले है जिन माता पिता ने हमे पाला जेब में पैसे ना होते हुये भी हमे हर वो है चीज दिलायी जिसे खरीदने की हमारे माता पिता की हैसियत तक नही थी और जैसे जैसे औलाद बड़ी होने लगती हाई व चार पैसे ज्यादा माता पिता से कमाने लगती हैं तो औलाद यह सोचती हाई की मेरे लिये माता पिता ने किया ही क्या है तो औलाद यह सोचती है की मेरे लिये माता पिता ने किया ही क्या है जब भी कुछ औलाद गलत कदम उठाती है या फिर कुछ गलत करती है और माता पिता उसे रोकते है तो औलाद का जवाब आता है की " में करुँ जो करुँ मेरी मर्जी " इस मेरी मर्जी शब्द ने माता- पिता व औलाद दोनों का ही पतन कर दिया है |
इसलिये औलाद को संस्कार दे ना की धन दौलत धन दौलत अपने आप आ जायेगा किन्तु संस्कार नही आयेंगे |