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दाग

29 जून 2021
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बादल का एक टुकड़ा तोड़ा मैने और माटी की कोख़ में दबा दिया एक उम्र से हर उमर तक इंतज़ार करती रही यह सोचती रही कि एक रोज़ बादल फटेगाऔर माटी के कोख से एक दरख्त उगेगालेकिन जो हुआ वह मेरी कल्पना में कभी घटित नहीं हुआ थाएक सुबह माटी की

शायरी

30 मार्च 2021
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शाख से है रंग उड़ा मन है बेरंग सा होंठ पर है धूप खिला दर्द ने है आह भरा रंग पर जब रंग चढ़ा रूह से आवाज़ आई ये ज़िन्दगी है आयशा ये भी ज़िन्दगी है क्या

दो मुट्ठी

17 मार्च 2021
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एक हाथ की मुट्ठी खुली हुई है दूसरी मुट्ठी बंद है जो मुट्ठी खुली हुई है , वह खाली है इसने संजोकर कुछ भी नहीं रखा न आँसू न गम न एहसास न जज्बात जो भी मिला थोड़ा थोड़ा सब में बाँट दिया और जो खुद से भी लिखा पढ़ा नहीं गया वह दिल में दफ़न

शेर

17 फरवरी 2021
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मेरे आँखों का आँसू क्यों तुम्हारे आँखों से बह रहा है तुम चुप हो मगर तुम्हारी चुप्पी सबकुछ कह रहा है जो कल गुज़री थी मुझपर उसका पछतावा तुम्हे आज क्यों तुम्हारा भी किसी ने दिल तोड़ दिया या तुमने शादी कर लिया

चलो तुम बताओ

18 दिसम्बर 2020
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प्यार तो तुमने भी मुझसे किया था मैं तो तुम्हारा प्यार लिखीचलो तुम बताओ...... झूठ ही सही मगर तुमने भी तो मेरी बेबफाई उससे सुनाई होगी मैं तो तुम्हारी यादों के अंक मेंआंसुओं से तकिये पर तुम्हारी तस्वीर बनाती हूँ चलो तुम बताओ......अपने दर-ओ

शायरी

10 दिसम्बर 2020
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यूँ बेफिक्र होकर मेरी फिक्र क्यों करता है बात मोहब्बत की हो तो मेरा जिक्र क्यों करता है रब के जगह महबूब को रखो तो रब रूठ जाते हैं तुम तो दिल में हो...यूँ कदमों में सर क्यों झुकता है

लेख

14 नवम्बर 2020
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प्रिय बच्चों आपलोगों के साथ बिताया हुआ हर पल हमारे लिए किसी दिवाली से कम नहीं है आपलोगों के आँखों में जो आसमान छू लेने का ख्वाब देखती हूँ तो लगता है जैसे वो ख्वाब सिर्फ आपलोगों के नहीं है वो ख्वाब मेरे भी है अगर कभी भी हमारी जरूरत हो तो हम आपके साथ है

सड़क

25 अगस्त 2020
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मेरे गाँव से उसके शहर तक बस एक ही सड़क है ा हम दोनों की खामोशियाँ इन सुनसान सड़कों से ही गुजरती है ा मगर हम दोनों कभी नहीं मिलते क्योंकि हमारी दिशाएँ विपरीत है ा अगर वक्त की मेहरबानी सेकभी मिल भी जाये तो वह मुझे पहचानेगा कैसे ?मेरे गालो

शायरी

14 अगस्त 2020
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धरा से लेकर आसमान तक तेरे खून के ही निशान है माँ के आँचल पर लिखा अमिट आजादी तेरे वीरता का पैगाम है नमन करते हैं तुझको ऐ मेरे वतन के सच्चे महबूब आँखें नम है लेकिन तेरी कुर्बानी का हमें अभिमान है

रात बेखबर चुपचाप सी है

10 अगस्त 2020
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रात बेखबर चुपचाप सी है आओ मैं तुम्हे तुमसे रूबरू करवाउंगी मेरे डायरी में लिखे हर एक नज्म के किरदार से मिलाऊँगी मैं तुम्हे बतलाऊँगी की जब तुम नहीं थे फिर भी तुम थे जब कभी कभी दर्द आँखों से टपक जाती थी ..... कागजों पर एक बेरंग तस्वी

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