बादल का एक टुकड़ा तोड़ा मैने
और माटी की कोख़ में दबा दिया
एक उम्र से हर उमर तक इंतज़ार करती रही
यह सोचती रही कि एक रोज़ बादल फटेगा
और माटी के कोख से एक दरख्त उगेगा
लेकिन जो हुआ वह मेरी कल्पना में कभी
घटित नहीं हुआ था
एक सुबह माटी की कोख से एक बाछी जन्मी
मैं घबराकर पीछे हट गयी
मैं जोर से चिल्लाकर पूछी
तुम कौन हो और तुम्हारे
हाँथ पाँव क्यों बँधे हैं
और ये माथे पर निशान कैसा है
वह बच्ची बोली -
मैं औरत का नशीब हूँ
और यह बदनामी का दाग है
जो हर औरत के माथे पर लगा होता है