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अब लौट चलूं

25 जुलाई 2022

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  अब लौट चलूं 

आज मुझें ऐसा लग रहा था कि मैं सच में आजाद हूं, सारी दुनियां आज पहली बार मुझें नई लग रहीं थी....सब कुछ नया सुकून से भरा....

गर्त के अंधेरे को चीर कर मेरे कदम नए उजाले की ओर अनयास ही बढ़ चुके थे....ठीक उसी तरह जब मैं मनु के साथ अपना घर छोड़ कर नई जिंदगी की शुरूआत करने के लिए उस नये शहर में आ बसी थी....शायद मनु ही मेरा सच्चा प्यार था... उसने हर पल की खिशियां मेरी झोली में उड़ेली थी, आज भी उसके शब्द मेरे कानों में गूंजते हैं.....

क्या हुआ जान तुम इतनी मायूश क्यों हों.....?

इतना सोचते ही मेरे शरीर में अजीब सी सिरहन दौंड़ पड़ी थी....एक पल तो ऐसा लगा मानों मनु ने अभी-अभी मेरे कानों में आकर कहा हो....लेकिन आज मेरे जीबन में अनसुल्झा सा मोड़ था.... जब मैंने मनु और अपने छोटे से 2 साल के बेटे अभिषेक रोता छोड़ रवि के साथ अपने प्यार की नई जिंदगी की शुरूआत करने 35 साल पहले उनसे दूर जा चुकी थी.....

इन 35 सालों के दौरान मैनें ये नहीं जाना था कि सच्चा प्यार क्या हैं...शायद मैं भटक गयी थी यही सोच कर के मनु मेरे लिए सिर्फ एक दिखावा हैं लेकिन मैं गलत थी मेरी सोच और मेरा निर्णय उस समय दोनों ही गलत थे....

रवि ने तो हमेशा प्यार के सपनों की तस्वीर दिखा कर मेरे शरीर को भोगा ही है....रवि के प्यार के हर दर्द को मैं चुपचाप सहती रहीं

लेकिन मनु ने कभी भी मेरे साथ ऐसा व्यवहारनहीं किया....लेकिन हां मनु में एक बात जरूर देखने को मिली थी कि उसके मन में मुझे लेकर एक डर जरूर था...वो हमेशा इस बात से डरता के कही मैं उससे दूर ना चली जाऊं....ना जाने उसे क्यों ऐसा आभास होता था...और हुआ भी यहीं....अभिषेक के होने के बाद मेरा व्यवहार मनु के प्रति और भी विपरीत सा होने लगा था....लेकिन फिर भी मनु हर समय मुझे खुश करने के लिए उससे जो भी बनता वो करता था....लेकिन तब तक तो मैं रवि के प्यार की दीवानी हो चुकी थी...उसकी शानों शौकत की चकाचौधं में अंधी हो चुकी थी...उस वक्त मैं रवि के मंसूबो को समझ नहीं पा रही थी...

हां वो हमारी शादी की तीसरी सालगिरह थी..मनु का एक्सीडेंट हुआ था जिसके कारण वो बिस्तर पर था...उसके एक पैर की हड्डी बुरी तरह से टूट चुकी थी...लें दें कर मैं ही उसका सहारा थी...उस दिन जब सुबह-सुबह मनु को चाय देने गई तो उसने खीचते हुए मुझें अपनी बाहों में भरते हुए कहां था...

जानू.....शादी की सालगिरह मुबारक हों......

तब मैनें बड़े ही रूखे पन से उससे दूर होकर उसका मूढ़ खराब कर दिया था....और मैनें अपनी जिद्द पर अड़ते हुए कहां था मुझें आज बाहर जाना है...और अच्छी होटल में जाकर डिनर करना है....

लेकिन फिर भी मनु ने हौले से मुस्कुराते हुए कहां था...

जानू....तुम्हे तो पता हैं मैं कितना लाचार हूं....तुम चाहों तो तुम चली जाओं मैंने कभी रोका हैं क्या....

मेरी तो किस्मत ही ऐसी है पिछली शादी की साल गिरह भी ऐसी ही निकल गई... 

जानू तुम अपना दिल छोटा मत करो... अभिषेक को मै सम्हाल लूंगा आज तुम घूम आओ... 

मैंने उसे प्रश्न वाचक की नज़रो से देखा था... तो मनु ने अपना पर्श मेरे हाथ पर रखा दिया था मैंने फ़ौरन पर्स को अपने हांथो के कब्जे मे करते हुए उसको हलकी सी स्माइल दी थी... कि तभी बाहर से कार के हॉर्न की आवाज़ ने माहौल को बदल दिया था... 

जाओ जानू रवि आ गया है... 

इतना सुनते ही मै जल्दी से उठते हुए बाहर की तरफ भागी थी... मेरे दरवाजे तक  पहुंचते ही देखा तो रवि अपने हाँथो मै बड़े से गिफ्ट के साथ बुके लें कर खड़ा था... 

हैप्पी मैरिज एनिवर्सरी... 

इतना कहते हुए उसने गिफ्ट और बुके मेरे हांथो में थमा दी  थी... मै गिफ्ट पाकर बेहद खुश हुई थी... 

अच्छा हुआ तुम आ गये रवि... मेरा तो मूढ़ ही खराब है.. 

नो प्रॉब्लम संध्या भाभी... रवि अभी आपकी खिदमत में हाजिर है हुक्म करो...  

तभी मनु की अंदर से आवाज़ आयी तो हम दोनों अंदर ही चले गये.. 

ओ... मनु हैप्पी एनिवर्सरी.... क्या यार ऐसे ही पड़े रहोगे हमारी प्यारी प्यारी खूबसूरत भाभी को कही घूमने नहीं लें जाओगे... 

मनु ने हस्ते हुए कहा था जब तेरे जैसा देवर हों तो मुझें चिंता करने की क्या जरुरत... 

तभी मैंने मायूस हों कर कहा था... मेरी ऐसी किस्मत कहा...? 

ओह भाभी आप तो बिना बजह मायूस हों रहीं है.. 

रवि शाम को तुम क्या कर रहें हों...? 

कुछ नहीं... 

तो आज शाम को तुम शंध्या को कही घुमा लाओ... 

इतना सुनते ही मै कितनी चहक उठी थी... पता नहीं मनु की इस बात पर मेरा उसके प्रति कुछ पल के लिए प्यार सा उमड़ पड़ा था मैंने मनु के चेहरे पर प्यार से हाँथ फेरते हुए कहा था.. 

ओह जानू तुम कितने अच्छे हों... 

रवि की मौजूदगी में ये सब हों रहा था, रवि अपना गला साफ करते हुए बोला... 

आप लोगों ने विश किया के नहीं मै बाहर चला जाता हूं.. 

शायद मुझें ऐसा करते देख रवि को नागवार गुजर रहा था... जिससे मै अनभिज्ञ थी कि  मेरी ख़ुशी के लिए मनु अपने दिल पर पत्थर रख कर कैसे कहा होगा.... लेकिन मै तो अपनी खुशियों के लिए ज़िद्द मे अंधी थी.... 

उस रोज़ मुझें और रवि को घर लौटते लौटते काफ़ी रात हों चुकी थी... मनु हमारा इंतज़ार कर रहा था अभिषेक सो रहा था उस दिन मै बेहद खुश थी अपनी शादी की एनीवरशरी की पार्टी और महंगे तोफे पा कर.... लेकिन मै भूल गई थी उस दिन मुझें हर हाल में अपने पति के साथ होना चाहिए था... मै एक -एक गिफ्ट मनु को दिखा रहीं थी.... ऐसा करते मुझें देख उस दिन मनु अपने आपको कितना छोटा समझ रहा होगा

शायद रवि को मनु की बात का बुरा लगा था... मै उसके पीछे पीछे जानें लगी थी.. 

रवि... रवि... आप तो बुरा मान गये...?

और मै झट से कार के दरवाजे के सामने अड़ कर खड़ी हों गई... थी रवि ने मेरे चेहरे को देखते हुए अपना मुँह मेरे मुँह के नज़दीक ला कर मीठी सी मिश्री घोलती हुई आवाज़ में कहा था.. 

गुड नाईट संध्या... 

और रवि ने मेरे चेहरे को अपने दोनों हांथो से पकड़ कर मेरे होंठो पर अपने होंठ रख दिये थे मै कुछ ना कर सकी थी उसकी सांसे मेरी सांसो के साथ समा चुकी थी उस वक़्त अब में पूरी तरह से रवि की हों चुकी थी... कुछ पलों के बाद रवि मुझे से झट से दूर हुआ और मुझें एक तरफ करते हुए गाड़ी में बैठ गया था और गाड़ी स्टार्ट करके जाते जाते फिर गुड  नाइट कह गया था.. लेकिन मै तो वे सुध सी खड़ी थी... ऐसा लग रहा था मानो रवि मेरी आत्मा 

निकाल कर अपने साथ लें गया हों... कुछ देर में वैसे ही खड़ी रहीं थी....  इस मदहोशी भरे एहसास में मै ये भूल चुकी थी की मनु ने खाना खाया भी था या नहीं... जब मै कमरे में लौटी तो मनु अभिषेक से सट कर सो चुका था..

मुझें उस वक्त कुछ समझ नहीं आ रहा था मै क्या करु.... 

और मै चुप चाप बैठ कर रवि के ही बारे में सोच रहीं थी जबकि मेरा बच्चा और पति सो चुके थे..

बस के ब्रेक लगते ही मेरे बीते हुए कल का सपना टूट चुका था... मेरी आँखों में आंसू बह रहें थे... ऐसा लग रहा था मानो कल की ही बात हों... मैंने अपने आंसू पोछे और पीछे की और टिकते हुए बस की खिड़की से बाहर की तरफ देखा जो  मेरी मंज़िल के पहले का स्टॉप था... मेरे दिल की धडकने तेज हों रहीं थी क्योंकि अब सिर्फ लग भग 30 से 40 मिनट का रास्ता तय करना और रह गया था.. पहले कभी ये गांव हुआ करता था लेकिन अब बिलकुल बदल चुका था... 

सब तो बदल गया... कुछ भी तो पहले जैसा नहीं रहा... कही मनु भी तो नहीं बदल गया होगा...? 

फिर एक मन ने कहा... जब तुम बदल सकती हों संध्या तो क्या वो नहीं बदला होगा... 

बदल जाये लेकिन अभिषेक तो आज भी मुझें याद करता होगा उसके दिल में तो मेरे प्रति कुछ तो होगा... 

मै खिड़की से बाहर खड़े एक अपाहिज को देख रहीं थी जो बैसाखियो के सहारे खड़ा था... उसे देख मेरे मन में यका यक मनु का आभास हुआ ठीक वैसा ही जब मै रवि के साथ मनु और अभिषेक को छोड़ कर जा रहीं थी मनु अभिषेक को चिपकाये बैसाखियो के सहारे खड़ा मुझसे ना जानें की याचना कर रहा था.. 

संध्या अपने इस बच्चे की खातिर मत जाओ... तुम जैसा कहोगी मै वैसा ही करूँगा... 

लेकिन मैंने उसकी एक भी ना सुनी थी... मेरी हसरतों और ख्वाहिशो के आगे मनु की याचना ने दम तोड़ दिया था... और मै अपने प्यार के साथ नई जिंदगी की उड़ान भरने निकल चुकी थी...

तभी बस का हॉर्न बजा तो मेरी तन्द्रता भंग हुई... लोग बस में बैठने लगे थे... और बस धीरे -धीरे रेंगने लगी थी.. मन असमंजस में हिचकोले लें रहा था जाऊ के ना जाऊ.. लेकिन ना जाऊ तो कहा जाऊ... बस ने रफ़्तार पकड़ लीं... मेरी धड़कने तेज़ होने लगी थी... मन बार -बार उचट रहा था क्या मुँह लेकर जा रहीं हू किस हक़ से जा रहीं हूं... लेकिन शरीर मनु के पास खींचा चला जा रहा था एक ज़िन्दा लाश की तरह... 

वो वक़्त भी आ गया जब मै अपने पुराने घर जहाँ दुल्हन की तरह सज कर आई थी... लेकिन ये क्या जैसा 35 साल 

पहले था आज भी वैसा ही है... लेकिन आस -पास के घर कोठियों में बदल गये थे... मैंने बड़े का दरवाजा खोला और अपने कदम अंदर की और बढ़ा दिये... वही पेड़... वही सबकुछ लेकिन रौनक नहीं थी सब वैसा ही मानो मेरे जानें के बाद यहां सब कुछ थम गया हों... वो झूला जिस पर रोज़ शाम यहीं बैठा करती थी लेकिन अब सब पर जंग और धूल की परते चढ़ चुकी थी.. अभिषेक का पालना जिसका कपड़ा सड़ कर आधा अधूरा लटक रहा था... ये मनु की बाइक आज भी वैसी ही खड़ी है... मेरी ज़िद थी की कर में बेठुंगी.. तभी तो मनु ने भी इसे नहीं चलाई थी... जो आज भी यही धूल में लिपटी खड़ी है... यहां की हर चीज 35 सालों की गर्मी, शर्दी और बरसात की कहानी बया कर रहीं थी... और मानो चीख -चीख कर कह रहीं थी चली जाओ यहां से... चली जाओ. 

ना... ना... में अपने निर्णय से भटक रहीं हू कुछ ज्यादा ही ज़ज़्वाती हों रहीं थी.. लेकिन एक बार मनु और अभिषेक से मिलने की इस चाह को नहीं रोक सकती वरना आत्मा को सुकून नहीं मिलेगा... यहीं सोचते सोचते घर के मेने गेट के सामने पहुंच चुकी थी... मैंने संकोच करते करते बरवाजे पर दस्तक दी.. और दवाजा खुलने का इंतज़ार करने लगी... लेकिन मन ना माना तो फिर से हाँथ अपने आप ही फिर से दस्तक देने को उठा ही था कि किसी के चलने के पैरो की आवाज़ सुनाई दी...

शायद अभिषेक होगा... नहीं... मनु होगा... तभी धड़ से दरवाज़ा खुलता है.. सामने एक हट्टा कट्टा युवक जिसके चेहरे पर हलकी हलकी दाढ़ी बिलकुल जवानी का मनु... चमकता चेहरा उसने मुझे देख एक ठंडी सांस भरते हुए कहा...

अंदर आ जाइये... 

और वो आगे आगे अंदर की और चल दिया और मै उसके पीछे पीछे चलने को हुई तो दहलीज पर मेरे कदम ठिठक से गये थे... 

अब आ भी जाइये... 

मै हिचकिचाहट के साथ अभिषेक के पीछे हों लीं... अंदर भी सब वैसा ही कुछ भी नहीं बदला वही सब कुछ  बस देख कर ऐसा लग रहा था कि वर्षो से किसी ने यहां की किसी भी चीज को अभी तक हाँथ नहीं लगाया था..

यहाँ देख ऐसा लग रहा था... ये वही बेड जो आज भी बैसा ही हैं बेड पर बिछी ये चादर भी तो वही हैं... उफ़... ये में क्या देख रहीं हूं... यहां तो सब कुछ उसी दिन से  थमा हुआ सा हैं...

आप बैठिये... वो उस चेयर पर ही बैठिएगा... 

और वो वहाँ से चला गया... मै अपने बैठने की उस कुर्सी को देख रहीं थी... जिसे सिर्फ मेरे लिए ही मनु लेकर आया था... इस वक्त उस कुर्सी पर धूल जमीं हुई थी... ऐसा लग रहा था शायद ये घर काफ़ी दिनों बाद खोला गया हों.... तभी अभिषेक हाँथ में पानी का गिलास लेकर आया और मेरे हाँथ में देने के बजाए उसने पास रखी टेबल पर रखते हुए कहा... 

आप सही सोच रहीं है.... ये घर सिर्फ मेरे जन्मदिन पर ही खोला जाता है.... 

इतना सुनते ही मेरे शरीर में बिजली सी कौंध गयी थी.. 

उफ़... आ... आज तुम्हारा जन्मदिन है... 

हा है तो...? आप पानी पीजिये और आराम से बैठिये... आप चाहो तो नहा भी सकती है... और हा कृपया कर के किसी भी सामान को इधर -उधर मत करियेगा.. यहां की हर चीज में मेरे पिता की यादें बसी है.. वो नहीं चाहते की कोई भी उनकी चीज़ो को हाथ लगाए... 

शायद ये पहला वार था मेरी वेबफ़ाई की तहज़ीब पर जिसे मैंने अपने सुख चैन के लिए इन निर्दोषों पर कभी किये थे. 

मै चुप ही रहीं.. और उसी धूल भरी कुर्सी पर बैठ गयी थी... 

आप बैठिये मै अभी आता हूं... और अभिषेक इतना कह कर वहा से फिर  चला गया... मै चुप चाप बैठी रहीं वहा की हर सामान को देख रहीं थी.... जो सब मुझे चिढ़ा रहें थे कभी मेने अपने ही हांथो से इन्हे सजाया था और इस घर में जगह दी थी ठीक मेरी ही तरह जैसे मनु मुझें व्याह कर लाया था और ये घर मेरे सुपुर्द करके निश्चिंत हों गया था... निर्जीव वस्तुए तो यहां अब तक टिकी रहीं... मेरे सिबाय.. वो सारी यादें एक एक कर मेरे जेहन में दृश्य की तरह घूम रहीं थी... लेकिन मनु के होने और ना होने का आभास अभी भी असमंजस में था... मेरे आने की खबर अभिषेक को कैसे लगी...? 

तभी किसी वस्तु की धप्प से गिरने की आवज़ आयी... तो मेरी नज़र उस और गयी ये हमारी यादो की दास्तांन का एल्वम है... जो सिर्फ और सिर्फ इन 50 पन्नों के फोल्डर में चिपका हुआ है... कभी आप ने भी हमारी जिंदगी में कुछ वक़्त काटा था जिसके लिए मै शुक्र गुज़ार हूं... कभी आप भी हमारे मेहमान थी ... इसे देख कर कुछ यादें ताज़ा कर लें... आपको सुकून मिलेगा.. 

बेटा... !

प्लीज मुझे बेटा कह कर मत बुलाओ... आप ये हक़ काफ़ी साल पहले खो चुकी है... मुझें बेटा कहने का हक़ सिर्फ और सिर्फ मेरे पिताजी को है... 

और वो भी मेरे पास रखें स्टूल पर बैठ गया था और उसने फोटो का एल्वम अपने हांथो में रख लिया... 

ठीक है लेकिन तुम्हे कैसे पता चला की मै आने वाली हूं...? 

अभिषेक मेरी बात सुन कर हंसा था... 

वो सब छोड़िये आप संध्या जी... 

उसने मेरे नाम के आगे जी कह कर इस तरह सम्बोधित किया था जीसमें सही में किसी बिन बुलाये मेहमान को किया जाता है उसके के इस लहजे में खीज साफ झलक रहीं थी... 

उसने एल्वम का पहला पन्ना खोला था.. जिस में मै और मनु शादी के जोड़े में खुश बैठे थे... अभिषेक का इस तरह का मेरे प्रति रिएक्ट करना मुझे अजीब नहीं लग रहा था यहीं वो वक़्त था शायद मुझें सुनना था...

अभिषेक का  हर शब्द में मेरे प्रति प्रतिशोध था... 

ये देखिये मेरे पिताजी और मेरी माँ... कितने खुश है एक नए जीवन की शुरुआत करने के लिए.. लेकिन शायद मेरे पिता के जीवन में वैवाहिक सुख नसीब में नहीं था... 

वो थोड़ा चुप सा हो गया था बोलते बोलते मैंने उसे संतभावना देंने के लिए अपना हाथ उठाया ही था कि उसने चिढ़ते हुए कहा था... 

मुझें हाथ मत लगाना, आपकी कोई सहानुभूति नहीं चाहिए... 

और वो  एल्वम के पन्ना पलटते  - पलटते बोलता जा  रहा... इतने सालों की उसके मन में भरी खीज शायद अब निकल रहीं थी 8-10 पन्ने एल्बम के पलटने के बाद वो थोड़ा रुका था.. जिस पन्ने पर उसके बचपन के फोटो थे जो वो मेरी ही गोद में बैठा था.. हां ये डिलेवरी के 7दिन बाद का ही तो फोटो था जब में हॉस्पिटल से घर आयी थी मनु कितनी मुश्किल से एक फोटो ग्राफर को लेकर आया था...

आप जानती है... इस बच्चे को इसकी माँ की ममता तक नसीब नहीं हुई... मेरी माँ मुझे हमेशा हमेशा के लिए छोड़ कर जा चुकी थी... अपने अरमानो को पूरा करने के लिए... वो देखिये... 

उसने पीछे दीवाल की तरफ हाथ से इशारा करके बोला था. जब मैने उस और देखा तो मेरी ही तस्वीर लगी थी जिस पर हार चढ़ा हुआ था... 

मै जब छोटा था तो मां के प्यार और उसके साथ के लिए बहुत रोया करता था... और पिताजी मुझें ये तस्वीर दिखा कर कहते थे.. संध्या तुम अभी को छोड़ कर क्यों चली गयी...?  अच्छा भईया से आप नाराज़ है... ओ... ठीक है ठीक है भईया अब आपको दुखी नहीं करेगा अब नहीं रोयेगा... आ हा हा... ओके प्रमिश आप जल्दी आओगी 

और मै इतना सुन कर चुप हो जाया करता था... लेकिन सच्चाई तो कभी छुपती नहीं जिस दिन मुझें पता चला था कि मेरी मां... खैर छोड़ो.. ये देखिये... 

और वो फिर मुझे आगे के फोटो दिखाने लगा था... लेकिन इन फोटो में मनु मुझें कही दिखाई नहीं दें रहा था... मेरी उत्सुकता उसके बारे में होने लगी थी मन में कई सबाल थे जिनका जवाब जानना मुझें बेहद ज़रूरी था.. साथ ही अभिषेक के प्रति प्यार भी था मै उसे अपने सीने से लगा कर जी भर कर रोना चाह रहीं थी... लेकिन ये अब संभव नहीं था जब अभिषेक मुझसे लिपटने के लिए बचपन में तड़प रहा था तब मै रवि की ख्वाहिशे पूरी करने में मशगूल थी... तब मै कितनी अंधी हो चुकी थी उस वक़्त मनु और अभिषेक का चेहरा क्यों याद नहीं आया... 

आपको भूख लगी होंगी... आप बैठिये मै खाने का इंतज़ाम करता हूं...

और वो अपने साथ एल्बम लेकर चला गया था.. मै चुपचाप बैठी बहुत देर तक रोती रहीं सोचती रहीं थी रोते रोते बेहोशी का खुमार सा होने लगा था जिसके चलते पता ही ना चला कि मेरी नींद लगी थी या मै बेहोश हो गयी थी.. 

चेहरे पर एकदम से लगे पानी के छींटो ने मेरी बेहोशी तोड़ी थी... आँखे खोल कर देखा तो सामने अभिषेक खड़ा था... 

सध्या जी.... रात हो चुकी है भूख नहीं लगी आपको..? 

मै चुप रहीं... 

ऐसे देखते रहने से कुछ नहीं होगा और तबियत खराब होंगी... आप खाना खा लीजिये... 

मै फिर भी चुप रहीं... 

कई लोग सोचते है वो जो कर रहें है वो ठीक कर रहें है... 


ज़िद्दी होना ठीक है लेकिन कभी कभी वो जिद्द उन्ही पर भारी भी पड जाती है जिसका खामियाज़ा उन्ही को भुगतना पढता है.. 

इतना कह कर अभिषेक वहा से चला गया था... में फिर अकेली तन्हा वही बैठी रहीं... मन में इस वक़्त सिर्फ दो ही सबाल थे एक मनु का कि वो हैं तो कहां हैं सामने क्यों नहीं आता दूसरा ये कि मैने तो पत्र मनु को लिखा था कि एक बार तुम से मिलना चाहती हूं जिसका मनु ने आज तक जवाब नहीं दिया अगर मनु को मेरा लेटर मिला होता तो वो ज़रूर मुझसे मिलता.... लेकिन बात ये भी तो सोचने की हैं कि अभिषेक को कैसे पता चला कि मै मिलने आ रहीं हूं... कहीं रवि ने तो... 

अ हां संध्या जी वैसे खाने में आप क्या लेंगी...? 

अभिषेक ने कमरे में आते हुए पूछा था... 

क्योंकि खाना बनाने का सामान तो हैं पर कई सालों से बंद पड़ा हैं पिताजी बताते हैं मां खाना अच्छा बनती थी... लेकिन जब से वो गयी तब से सब वैसा ही पड़ा हैं... मैने तो आज तक मां के हांथ का बना खाना नहीं खाया... जी जल्दी बताये क्या खाएंगे आप रेस्टोरेंट में ऑर्डर करना पड़ेगा...

जो तुम चाहो.. !

ओके तो सब्जी रोटी दाल चावल मंगवा लेते हैं...? 

उसने मुझसे पूछा था.. हम दोनों कुछ देर शांत रहें फिर अभिषेक ने मोबाईल से खाने का ऑर्डर दिया.... और वो भी वही बैठ गया...

कुछ देर हम दोनों यूही बैठे रहे.... मै दोषी थी वो निर्दोष था मै सिर झुकाये बैठी थी अभिषेक मुझें देख रहा था... बिलकुल मनु के गुण वही मिज़ाज़ वही शक्ल सूरत संस्कार मनु ने अभिषेक को काफ़ी अच्छे दिये हैं उसके हर लफ्ज़ो में कितनी मर्यादा हैं... कितना धैर्य हैं इतना तो अमन और शिखा में नहीं... मुझे परवरिश का अंतर साफ दिखाई दें रहा था उन दोनों से कितना अलग हैं अभिषेक... 

क्या सोच रहीं हैं संध्या जी...? यही ना आप जिससे मिलने आयी वही नहीं दिखाई नहीं दें रहें हैं... यही ना...? 

इस बात पर मैने उसे उत्सुकता वस देखा 

क्यों आज जब आपको ज़रूरत पढ़ी तो आप इतने सालों बाद उनके पास चली आयी... इन सालों में कभी नहीं सोचा आपने  मनु और उसके बच्चे के बारे.... ओ हा कैसे सोचती आप आपको तो आज़ादी चाहिए थी मेरे पिता उस समय किसी प्राइवेट फार्म मै 6000/-रुपए कमाने वाले मुलाज़िम जो थे... आपके सपनों की उड़ान के लिए यहां की ज़िन्दगी बेड़ियों मै जो जकड़ी थी... खैर कहते हैं ना जो होता हैं अच्छे के लिए होता हैं... अब रहीं बात ये संध्या जी कि आप जानना चाहती हैं कि आपके यहां आने की खबर कैसे लगी तो आप इतना जान लें कि हम भी आपके उस घर की पल पल की खबर रखते हैं.... भले ही आप इतने सालों बाद यहां की अब खबर लेने आई हो... 

तभी दरबाजे पर दस्तक हुई थी... 

चलो खाना आ गया हैं... 

और वो उठ कर खाने का पार्सल लेने चला गया था... मेरे मन में फिर एक नई बात घर करने लगी थी... ये कैसे हो सकता हैं कि उधर की सारी खबर इन तक कौन पहुँचता रहा होगा... कहीं अभिषेक यूं ही तो नहीं बोल रहा.... 

लीजिए खाना आ गया... चलिए खाना खा लीजिए कल शाम से आपने कुछ नहीं खाया... 

और वो मेरे पास खाने का पार्सल रख कर बैठ गया था... 

बर्तन काफ़ी दिनों से यूज नहीं हुए हैं यहां के इसीलिए आपको खाना इसी में खाना पड़ेगा...

और वो पार्सल खलता गया पैक खाने की सिर्फ एक ही प्लेट थी... उसने रोटी का एक नीवाला मेरे मुँह की और बढ़ा दिया... में सिर्फ उसे ही देखें जा रहीं थी... जब मै कभी मनु से रूठा करती थी तो वो भी इसी तरह मुझें खिलाया करते थे... आज मेरा बेटा मुझें खिला रहा है शायद ये दूरियां इसी रिवाज़ से ख़त्म हो और मैने अभिषेक के हाँथो से खाने का नीवाला खा लिया....मैने भी एक निवाला जब उसे खिलाना चाहा तो उसने मुँह फेर लिया और गंभीर मुस्कुराहट बिखेरते हुए बोला

जब मै छोटा था स्कूल में पेरेंट्स मीटिंग हुआ करती थी हर बच्चे के मम्मी पापा आया करते थे सिर्फ मुझें छोड़ कर मीटिंग में काफी देर हो जाया करती थी सभी बच्चों की मां ऐ बच्चों को अपने हाथों से जबर जस्ती खाना खिलाया करती थी... लेकिन मै अपने पिता के साथ दूर बैठा समोसे खाया करता था और चुप चाप रोया करता था.. पापा मुझें समझाते बेटा तुम्हारी किस्मत में मां नहीं हैं तुम्हे ऐसे ही रहना होगा... मै तो तभी से ऐसा ही हूं... 

मेरे अश्रुओ की धार निकलती ही जा रहीं थी... 

आप तो खाना खाइये आप क्यों रुक गयी... ये लीजिए.. और वो मुझें अपने हाथों से खाना खिलता रहा मै रोती रहीं और खाती रहीं... यहीं सोचती रही कि मेरी गलतियों के परिणाम इतने तीखे होंगे जिसकी मै कल्पना भी नहीं कर सकती... सही ही कहा हैं परिणाम यही भोगने पड़ते हैं... जो मुझें भोगना भी था और देखना भी था... 

पिताजी हमेशा मुझें समझते हैं ये जिंदगी हैं जो कभी खुद व खुद आसान नहीं होती हैं उससे लड़ना पढता हैं... कभी कभी कुछ लोग हमें जिंदगी में बहुत कुछ सीखा जाते हैं... 

मेरा पेट भर चुका था...मैने उससे अब और खिलाने को मना किया तो उसने कहा 

ये आधी रोटी ही तो बची हैं... 

नहीं नहीं बस मेरा पेट भर गया... 

आपको पता हैं.... इस आधी रोटी की चाह में न जानें कितने लोग रोज़ रात को भूखे सो जाते हैं... इसे तो आपको खानी ही पड़ेगी मैने खना फेंकना नहीं सीखा... और हा सिर्फ और सिर्फ अपने पिताजी का जूठा खा सकता हूं किसी और का नहीं....

और उसने खाने की ट्रे मेरे हाँथ में पकड़ा दी... कुछ वाकये भी जिंदगी के बड़े अजीब होते हैं जो कभी ना कभी दोबारा खुद व खुद सामने आ जाते हैं... बिलकुल यहीं वाक्या कभी मेरा और अभी के साथ हुआ था... मैने खाना पूरा खत्म किया तो अभी ने ट्रे मेरे हाथों से लें ली और पानी का गिलास मुझें थमा दिया मैने दो घूट पानी पिया और वो वहां से चला गया....

मै कुछ देर चुप चाप बैठी सोचती रहीं कि कभी मै मनु को झुकाया करती थी आज अभिषेक ने मुझें झुका दिया.. 

आँखों में नींद की उम्मीद बिलकुल भी नहीं थी और मै पश्चाताप की आग में झुलस रहीं थी... तभी अभिषेक एक चादर लेकर आया था.. 

रात काफ़ी हो चुकी हैं अब आप सो जाए कोई और जरुरत हो तो बता दीजियेगा... शुभरात्रि... 

और वो कमरे के दरवाजे हल्के से बंद करके चला गया था... मै भी सीधे बेड पर जा कर लेट गई थी...मेरा शरीर शांत था पर दिल और दिमाग़ बेचैन थे... आखिर मनु कहा हैं... क्या वो कहीं और हैं या फिर वो मेरे सामने आने से क्यों बच रहें हैं...बचना तो मुझें चाहिए था... में सोच ही रहीं थी कि अंदर से कुछ गिरने की आवाज़ आई तो मै फ़ौरन उठ कर उस और भागी थी किचन के पास पहुंची तो देखा अभिषेक नीचे बैठ कर खाना खा रहा था... उसे मेरे आने की आहट को पहचान लिया था.. 

कुछ नहीं संध्या जी चूहों ने उत्पात मचा रखा हैं आप जा कर सो जाए.. 

मेरे खाते में फिर एक गलती जुड़ चुकी थी मै चाह कर भी अभिषेक को अपने हाँथो से खाना नहीं खिला पा रहीं थी.. 

आज अभिषेक मुझसे भी बहुत आगे निकल गया... यहीं सोचते सोचते मैने अपने कदम कमरे की तरफ मोड़ लिए...

और में फिर हारी हुई सी बेड पर आकर लेट गई थी.. 

मन में काफ़ी जद्दोजहद थी कभी मन करता के क्यों ना गुम नाम ही हो जाऊं... किसी को कुछ भी ना पता चले... 

लेकिन कैसे...? बस एकबार मनु को जी भर के देख लूं... बस फिर कभी किसी के सामने नहीं आउंगी.... लेकिन उसे देखने भर से क्या मुझें सुकून मिलेगा...? शायद ये भी तो हो सकता हैं कि वो मुझें एकबार देखें और फिर मोहब्बत जाग जाए... वो तो मुझसे प्यार करता था... मेरे लिए तो उसने क्या नहीं किया इतने सालों तक यहां मेरी ही यादों के सहारे ही तो रहा हैं... भले अभी इनका मन मुझसे खफ़ा हैं... मुझें पक्का यकीन हैं मनु मुझें देख फिर मेरा  हाथ थाम लेगा रवि को भी अपनी गलती का एहसास होगा कि उसने किसी के प्यार को छीन कर कितना बड़ा पाप किया हैं.... 

तभी फोन की घंटी घन घना उठी थी... 

हैल्लो.... हां पापा... प्रणाम पापा... 

जी पापा.... जी.... हां... हां.... पापा... ओके... 

ठीक हैं.... जी मै कल उनको लेकर बेंगलोर पहुँचता हूं पापा.... जी सुबह जल्दी निकल जाऊँगा.... 

बेंगलोर...?  आखिर बेंगलोर क्यों...? मुझें कुछ समझ नहीं आ रहा था... आखिर बेंगलोर क्यों वापस जाया जा रहा हैं अगर मनु को वही मिलना ही था तो फिर मै यहां क्यों आई...? कहीं रवि तो मनु के कॉन्टेक्ट में तो नहीं हैं... रवि ऐसा नहीं कर सकता... ये ज़रूर मनु की ही चाल होंगी... बदले की भवना से उसने ज़रूर कोई ना कोई चाल चली होंगी मुझें और रवि को निचा दिखाने के लिए... शायद मैने यहां आकर बहुत बड़ी गलती कर दी... मुझें यहां नहीं आना चाहिए था... 

तभी अभिषेक आया था.. 

आप अभी तक जाग रहीं हैं..? हमें सुबह जल्दी यहां से निकलना हैं... 

क्यों...? कहा के लिए निकलना हैं? 

जब जाएंगे तो पता चल जाएगा.. 

मै यहां से कही नहीं जाउंगी.. अपने पिता से कहो वो यही आजाये... 

मिलने की ललक आपको थी उन्हें नहीं... आपको वही चलना होगा... 

मैने कहा ना मै यहां से कही नहीं जाउंगी.... 

ओके... 

इतना कह कर अभिषेक वहां से चला गया था...

बेंगलौर... ! जिसके लिए मैने अपनी सारी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी आज मेरा अपना कुछ भी नहीं रहा...मैने बहुत बड़ी गलती की मुझें यहां नहीं आना चाहिए था... मुझें चुप चाप यहां से भी चले जाना चाहिए अब कोई मेरी कदर करने बाला नहीं हैं... जिसने प्यार किया था मैं उसकी ना हो सकी और जिसको मैने चाहा वो भी मेरा ना हो सका.... मैं यही सोचते सोचते वहां से जानें को उठी थी और मेन गेट तक पहुंची तो गेट में अंदर से ताला लगा हुआ था... क्या करू अभिषेक से ताला खोलने का कहूँ... मेरे कदम यकायक उसके कमरे की तरफ बढ़ गए कमरे में मध्यम रौशनी थी अभिषेक एक और टेबल पर बैठा शायद कुछ काम कर रहा था... शायद वो मेरे आने की आहट को पहचान गया था.. 

क्या बात हैं नींद नहीं आ रहीं आपको...? 

अभिषेक मुझें जाना हैं... 

लेकिन क्यों...? फिर आप आई किस लिए थी...? 


अब वो मैं नहीं बता सकती मुझें अभी और इसी वक़्त जाना हैं... 

अभिषेक अपनी जगह से उठा था और उसने बड़ी लाइट जलाते हुए मेरे पास आया था... 

मैं मनु नहीं हूं अभिषेक हूं जो मैं अपने पापा की तरह आपके पीछे हाथ पैर जोड़ता रहूं और आप अपनी हर ज़िद अपनी मन मानी से करती रहें... फिर क्यों आई आप यहां...? आपको क्या लगता हैं सब वेबकूफ हैं आप ही समझदार हैं... चुप चाप जा कर आराम करें और मुझें भी करने दें... सुबह जल्दी निकलना भी हैं... 

मैं बेंगलोर वापस नहीं जाउंगी मनु को यही इसी घर में बुलाना होगा... 

मेरे पिताजी अब पहले जैसे नहीं रहें हैं संध्या जी ज़माने और लोगों को कैसे सही रास्ते पर लाया जाता हैं वो बहुत अच्छी तरह से जानते हैं... और कुछ तरिके मै भी उनसे कही बेहतर जानता हूं... आप वे बजह परेशान हो रहीं हैं... शायद मेरी बात आपको समझ आ गई होंगी...मैं पिताजी के आदेश को नहीं टाल सकता... 

तो क्या मुझें जबरदस्ती लेकर जाओगे....? 

अगर आप ये सब देखना चाहती हैं तो सुबह तक का इंतज़ार करो... आपको पता चल जाएगा.. आप बेवजह खुद परेशान हो रहीं हैं और मुझें भी कर रहीं हैं... 

अभिषेक का क्रोध उसके चेहरे पर उभरने लगा था... 

यहां अब किसी की भी हमारे सिबाय मनमर्जिया नहीं चलती.... 

इतना कह कर अभिषेक वहां से चला गया था... मेरा हर दाओ बेअसर हो चुका था तब में अपने आप में ही सिमट कर रह गई थी....

किसी ज़माने में इस घर में मेरी मर्ज़ी चला करती थी और मनु चुपचाप मेरी ज़िद के आगे झुक जाया करता था. ठीक उसी तरह आज में अभिषेक के आगे झुक गई थी एक अजीब सी दहशत उसके चेहरे पर दिखाई दी थी... जिसने मुझें सहमने पर मज़बूर कर दिया था... 

सुबह के 4 बज चुके थे अभिषेक मेरे पास आया था... में जाग रहीं थी.. 

संध्या जी... ! चलिए जल्दी से तैयार हो जाइये बस हमें 1 घंटे में निकलना हैं... 

मुझें लगता हैं तुम बेबजह परेशान हो रहें हो.. 

देखिये सुबह सुबह मै कोई फालतू बात ना करना चाहता हूं और नाही सुनना... आप से जितना कहा हैं उतना करें तो आपके लिए बेहतर होगा.. 

मै चुपचाप उठ कर वाश रूम की तरफ आ गई थी अभिषेक उसी कमरे मै रुका रहा था 

वाश रूम से बहार आकर जब मै कमरे के पास आई तो मेरा बेग लिए अभिषेक पहले से ही खड़ा था... वो तैयार था बिलकुल किसी बड़े आदमी की तरह उसकी छवि लग रहीं थी बिलकुल उसी तरह जब मनु को मैंने पहली बार देखा था.... 

अब क्या सोच रहीं हैं...? 

क.. कुछ नहीं... और मै बाहर की तरफ चल दी अभिषेक मेरे पीछे पीछे आने लगा था... बाहर 2लग्ज़री कारे ख़डी थी और 4-5 लोग भी थे जिसमें 2 महिलाये थी उन में से एक ने कार का दरवाजा खोला.. 

इस में डेठियेगा मेम... 

मैंने अभिषेक को देखा तो उसने आँखो से इशारा करके इजाजत दी... मै कार में सबर हो गई थी और दूसरी तरफ से दूसरी महिला मेरे बाजू में आ कर बैठ गई थी मै दोनों के बीच मे किसी कैदी की तरह उलझा सा महसूस कर रहीं थी तभी एक आदमी कार में ड्राइवर के पास बाली सीट पर आकर बैठ गया था...अभिषेक दूसरी कार में था उसकी गाडी चलते ही हमारी कार भी उसके पीछे पीछे हो ली थी... 

4घंटे के सफऱ में हम मुकाम पर पहुँचे थे.... शहर के पोश एरिया की एक आलिशान बिल्डिंग अरे ये तो रवि का ऑफिस हैं... हम सब कार से बाहर निकले ही थे कि मैंने अभिषेक के पास जाते ही पूछा था हम यहां एम एस कार्पो-रेशन में क्यों आए हैं...? 

मुझें नहीं पता... आप चुपचाप रहेंगी तो आपके लिए बेहतर होगा... 

तभी उन महिलाओ ने मुझें इशारे से चुप रहने को कहा... 

लेकिन ये तो रवि का ऑफिस हैं... अभिषेक ये तुम अच्छा नहीं कर रहें हो.. अगर रवि के साथ बात करनी ही थी तो घर चलकर कर सकते थे यहां ऑफिस में.... तमाशा करने की क्या जरूरत थी... मैंने कितना बखेड़ा खड़ा कर दिया.. लेकिन हम सब दूसरे रास्ते से होते हुए बिल्डिंग के टॉप फ्लोर पर पहुंचने के लिए लिफ्ट में दाखिल हो चुके थे... रवि अक्सर कहा करता था उसके मालिक के जहां जहां ऑफिस हैं वहां वहां आलिशान उनके फ्लेट भी हैं.. जरूर मनु ने रवि के बॉस से जान पहचान होंगी तभी तो वो मुझें यहां लेकर आया हैं लेकिन उन्हें हमारी इस पर्शनल लाइफ में क्यों आने की ज़रूरत पढ़ रहीं हैं... मेरे मन में ये विचार चल ही रहें थे कि हम लिफ्ट से निकल कर एक लम्बे टनल से कड़ी सुरक्षा के बीच से गुजरते होते हुए एक आलिशान लॉबी में दाखिल हो चुके थे अंदर का इंटीरियर देखते ही मेरी आँखे फटी की फ़टी रह गई... साथ में आने बाले लोग बाहर ही रुक गये थे मेनगेट बंद हो चुका था इस वक्त मै ओर अभिषेक ही थे... मै सोच में डूबी हुई किसी भी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रहीं थी कि तभी कोई मेरे पैरों में किसी के होने का एहसास हुआ मैंने अपने पैरों की तरफ देखा तो एक बच्चा सिर रख कर मेरे पैरों में लेटा हुआ था.. मै कुछ समझ नहीं पाई थी... 

ये आपके अंश का अंश हैं संध्या जी मेरा बेटा अंश... 

मेरी आँखे इतना सुनते ही भर आई थी... मैंने उसे अपनी गोदी में उठाना चाहा तो अंश मुझसे दूर हो गया... 

संध्या जी ये मेरी वाइफ मीनाक्षी... 

एक शांत सौम्य सी मूरत ने मेरे पैर छुए थे.. इस पल मुझें एहसास हुआ था कि वो कल और आज में वाकई में काफ़ी लम्बा समय गुज़र गया हैं... तभी अभिषेक ने मीनाक्षी को कहा 

मीनाक्षी आप अंश के साथ अंदर जाओ और वो अंश को लेकर अंदर चली गई थी... मै अंश को जाते हुए देख रहीं थी कि तभी एक तरफ का दरवाज़ा खुला था... 

ओह नहीं यार.... मैंने कहा ना मै और अभिषेक कल आपके पास पहुंच जाएंगे... 

हैं भगवान ये तो मनु हैं.... मै सिर्फ उसे देख ही रहीं थी और वो मेरे सामने आ कर खडे हो गये थे... 

अरे आप खड़ी क्यों हैं.. बैठिये ना... ओह संध्या जी वक़्त के साथ सब बदल गया.... सिर्फ कुछ यादों को छोड़ कर बस वहीं ज़िन्दा हैं जो ठहरी हुई हैं ... 

मनु सामने वाले सोफे पर बैठ गए थे..... और मेँ भी उसे देखती हुई बैठ गयी थी....एक दम बदला अंदाज़.... तभी अभिषेक ने मनु से पूछा था.. 

पापा मै जाऊं...? 

नहीं बेटे तुम मेरी जिंदगी के अहम् हिस्सा हो आज तुम्हारा इस वक्त रहना बहुत ज़रूरी हैं... आप भी यही बैठो... हातो संध्या जी अब आपकी ज़िन्दगी में ये उथल पुथल कैसी...? 

मनु ने सिगार सुलगाते हुए मुझसे पूछा था लेकिन मै मनु के परिवर्तन को देख रहीं थी जो कभी मेरे रहते नहीं दिखाई दिया था... मेरे मुँह से चाह कर भी कोई शब्द नहीं निकल पा रहा था... 

अगर आप यू ही मुझें देखती रहेंगी तो कैसे चलेगा...? अगर आप ये सोच रहीं हैं कि मै आपके इस अंदाज़ से पिघल जाऊँगा तो ये आपकी बेबकूफी हैं... इंसान से गलतियां होती हैं पर बार -बार नहीं... खैर इतने सालों बाद हम कैसे याद आ गये आपको...? 

मै चुप ही थी जिसके चलते सन्नाटा सा रहा वो दोनों मेरे जवाब का इंतज़ार करते रहें लेकिन मै एकदम शून्य थी... अंदर से ऐसा लग रहा था के उठ कर यहां से भाग जाऊं लेकिन अब ऐसा कर पाना मेरे बस के बाहर था शुरुआत मैंने की थी.... तभी किसी के आने की आहट हुई तो मेरी नज़रे उस और उठ गई थी....

सामने के दरवाजे से रवि, अरविन्द और संजना अंदर आ रहें थे. सहमे और डरे हुए से रवि अपना सर झुकाये चुप चाप मनु के सामने खड़ा हो गया था... 

बैठिये आप लोग... 

नो सर थेंक्स.... रवि ने कहा था 

इस वक़्त हम एक सामान्य दोस्त हैं रवि बैठ जाओ 

और रवि मेरे पास आकर बैठ गया था अरविन्द और संजना दूसरी तरफ बैठ गये थे.. 

तभी मनु ने रवि से पूछा था.... आप मेरी इस फर्म में कितने वर्षो से काम कर रहें हैं...? 

जी सर लग भग 15-16 सालों से 

इन 15-16 सालों में मैंने कभी आपको आपके किसी भी परसनल मेटर पर आपसे बात की...? 

नहीं कभी नहीं.. !

आप मुझें कब से जानते हैं...? यानी इस कंपनी के मालिक के तौर पर..? 

सर पिछले 2-3 सालों से... !

जबकि मै आपको जब से जानता हूं मिस्टर रवि जब आपने मेरी ये कंपनी ज्वाइनिंग ली थी....असल में मैं ये बात इस लिए कर रहा हूं क्योंकि मेरी एक आदत हैं मैं किसी के परसनल मेटर में या उसकी निजी ज़िन्दगी में कभी भी नहीं झांकता जो मेरे साथ दग़ा करता हैं... हा ये बात और हैं वो वक़्त कुछ और था ये वक़्त कुछ और हैं लेकिन मै अच्छे वक़्त में किसी के साथ गलत नहीं करता... चाहे वो मेरा दुश्मन ही क्यों ना हो... मै अपने बुरे वक़्त के समय अपने आपको ईश्वर के हाँथो में सोप देता हू... क्योंकि कि इस दुनियां में उसके सिवा मेरा कोई नहीं हैं... मै तो अनाथ था ना मेरे माता पिता कौन ये मै आज तक नहीं जान पाया... समय गुजरता गया... ज़िन्दगी बिना किसी रंग की यूही आगे चल ही रहीं थी... एक दिन संध्या ने मेरा हाथ थमा... और मेरी ज़िन्दगी में रंग भरने लगे थे.... हालांकि वो रंग ज्यादा दिन नहीं टिक सके तुम मुझसे अच्छे चित्रकार निकले और तुमने मेरी ज़िन्दगी के रंग भी चुरा लिए.... 

मनु की आंखों में आंसू आ गये थे उसने चश्मा उतार कर अपनी आँखो के अश्कों को साफ किया और फिर यथावत होते हुए मुझसे मुख़ातिब होते हुए बोलने लगे...

संध्या जी आप क्या समझती हैं... ज़िन्दगी आपके हिसाब से चलेगी... मुझें लगता हैं आप दोनों में इस तरह की लड़ाई पहले कभी नहीं हुई जो आपने इस तरह का निर्णय लिया...? 

ये सबाल मनु ने मुझसे किया था लेकिन मेरे पास इस बात का कोई जवाब. नहीं था मै चुप चाप ज़मीन में नज़रे गढ़ाए बैठी थी... शायद सब मेरे जबाब के इंतज़ार में थे इसलिए सब सांत थे.... 

संध्या जी ऐसे चुप रहने से कुछ नहीं होगा... आपको जवाब तो देना ही होगा आखिर क्या सोच कर मेरे पास इतने वर्षो बाद वापस आई... कुछ तो वजह रहीं होंगी... जब से आपने मुझें और अभिषेक को छोड़ा था आप जानती कितना समय गुजर गया...आपको इससे क्या लेना देना इन 35 सालों में आपने कभी भी ना मेरी और ना मेरे इस बच्चे की सुध ली आपको आपकी अय्याशी से फुर्सत ही नहीं थी कि आप एक नन्ही सी जान को छोड़ कर रंग रलिया मनाने में मशगूल थी... 

मै ऊब चुकी हूं इस ज़िन्दगी से...

वाह आपका ऊबना लाज़मी हैं और दुसरो के मन की कोई फ़िक्र नहीं हैं आपको.... कितनी स्वार्थी हैं आप संध्या जी अफ़सोस होता हैं आपकी इस सोच पर... कम से कम अब तो इस उम्र मे इस तरह की सोच तो मत रखो... क्या चाहती हैं आप...? 

मैने कहा ना ऊब चुकी हूं इस जिंदगी से...  हर इंसान अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना चाहता हैं... लेकिन रवि ने मेरे साथ धोखा किया... 

मैंने क्या धोखा किया संध्या तुम्हारे साथ...? 

जब तक तुम अपने पिता के साथ रहें तब तक तुम तो बड़े अमीर इंसान थे... 

हां मै जनता हूं... तुम्हारे आते ही मुझें मेरे पिताजी ने जायदाद से बेदखल कर दिया था जब उन्हें तुम्हारी सच्चाई का पता चला तो इसमें बुरा क्या हैं... लेकिन मैंने तुम्हें कोई परेशानी होने दी कभी... नहीं ना मनु बाबू सच्चाई तो ये हैं जब आपके बारे मे किताबों में सफलता की कहानी को पढ़ा तो इनका तब से दिमाग फिर चुका हैं... ज़िन्दगी में हम बहुत सारी गलतियां करते हैं अपने स्वार्थ के लिए लेकिन कभी कभी कोई गलती हमारे लिए आफत बन जाती हैं... मै भी पहले इन्ही की तरह सोचा करता था लेकिन जब ठोंकर लगी तब समझ आया कि हम ही गलत थे... एक समय वो भी था जब मै पैसों की अहमियत को नहीं समझता था... ईश्वर ने मुझें इस बात का एहसास दिलाया.... आप ही ने तो मुझे रोका था मुझें आत्म हत्या करने से... 

देखो रवि उन पुरानी बातों को भूल जाओ... संध्या जी और यही बात मै आप से भी कहता हूं अपनी जिंदगी और अब अपने परिवार की जिंदगी को अब और नर्क ना बनाओ रंजना शादी के लायक हो चुकी हैं अब इसकी जिंदगी के बारे में सोचो... अब जिस फर्ज़ को उस ईश्वर ने आप दोनों को सौपा हैं अब कम से कम उसे तो पूरा करो... चलो इक पल के लिए मान लेते हैं अगर आप हमारे पास आ भी जाती हैं तो क्या होगा... मेरे लिए और मेरे अभिषेक के लिए तो आप मर चुकी हैं अब आपकी ज़गह हमारी जिंदगी में नहीं हैं... जिंदगी के हर निर्णय आपकी सोच और मन के मुताबिक नहीं होंगे... आप लोग अब जा सकते हैं मुझें मेरे पोते से मिलना हैं वैसे भी मै दो महीने बाद लौटा हूं... आप लोगों से मेरी यही गुज़ारिश हैं अपने घर की लड़ाई अपने घरतक ही सिमित रखो... 

और मनु मायूश हो कर उठे थे तभी अभिषेक ने मनु को सहारा दिया था और वो लगड़ाते लंगड़ाते एक और दरवाज़े में समा गये... हम लोग चुप चाप कुछ देर बैठे रहें थे... मुझें गिल्टी फील हो रहीं थी मैंने ही अपने परिवार की इज़्ज़त को इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया था.... तभी रवि, अरविन्द और संजना मेरे करीव आए थे..रवि ने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा था... 

संध्या.... अब मन से घर लौट चलो... इतना सुनते ही मै तीनो से लिपट कर खूब रोइ थी... मुझें अपनी गलती का एहसास हो चला था... और मैंने भी अब अपने मन से पूरी तरह कह दिया था अब लौट चलें..... 

 (आपकी प्रतिक्रिया के इंतज़ार मेँ )                                                                                                          🙏   समाप्त  🙏
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रचनाएँ
अब लौट चलूं
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समाज में एक औरत जो शादी शुदा होने के बाद भी इश्क़ में इसलिए पड़ जाती हैं कि उसे अपनी हसरतें, उमंगों की चाह को पूरा करना होता हैं यहीं हल इस कहानी की संध्या का हैं जो अपने प्रेमी के साथ नई ज़िन्दगी की शुरुआत करती हैं.. लेकिन वो 35 साल बाद फिर क्यों अपने पहले पति और बच्चे के पास लौट कर जाती हैं.. क्या संध्या का पूर्व पति और बेटा उसे अपना लेता हैं.. इन्ही सब बातों को जानने के लिएएक महिला के स्वार्थ की कहानी अब लौट चलें को पढ़िए.
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अब लौट चलूं

25 जुलाई 2022
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अब लौट चलूं आज मुझें ऐसा लग रहा था कि मैं सच में आजाद हूं, सारी दुनियां आज पहली बार मुझें नई लग रहीं थी....सब कुछ नया सुकून से भरा....गर्त के अंधेरे को चीर कर मेरे कदम नए उजाले की ओर अनयास

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अब लौट चलूं

7 अगस्त 2022
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