दिल पर इतनी बोझ लेकर ,
अब मैं कैसे जी पाऊंगा ?
मुंह से निकल गई अब बात,
धनुष से निकल गया जो बाण ।
कभी वापस नहीं आ सकता ,
अब तो हमें पश्चाताप की।
अग्नि में जलना ही पड़ेगा।
अब पछताए होत क्या,
जब चिड़िया चुग गई खेत।
पर यह तो बात ,बहुत छोटी है।
बीज दोबारा बो भी सकते हैं।
का वर्षा जब कृषि सुखाने,
यह भी बात, बड़ी छोटी है।
फिर से बोकर पानी दें सकते हैं।
परंतु मुंह से निकल गई जो बात,
धनुष से निकल गया जो बाण ।
कभी वापस नहीं आ सकता,
अब तो पश्चाताप की अग्नि में,
जलना ही पड़ेगा।
बात और बाण से अब,
तो जानें ही जाएगी।
बाण का जख्म भर भी जाए,
पर बात की घाव कभी नहीं भरेगी।
फिर भी क्षमा-पश्चाताप का सहारा लेंगे।
कहेंगे अपनी सारी बातें,
अपनी मजबूरियां बताएंगे।
जलेंगे पश्चाताप की अग्नि में,
शायद वे और ईश्वर क्षमा कर दें।
जब आहें निकलती है तो,
दिल चकनाचूर हो जाता है।
पर अब मैं करूं, तो क्या करूं ?
दिल पर इतना बोझ सहा नहीं जाता।
मैं मछली- जल -बिन जैसा तड़पता हूं
ना जीता हूं ना मरता हूं।
अब जीवन मुश्किल सा हो गया।
हरदम उल्टे -सीधे विचार आते हैं।
अब कष्ट कभी ना जाते हैं,
कब तक ढ़ोंऊं इस बोझ को।
उन्होंने भी कहा कोई बात नहीं,
फिर भी मेरा मन लरजता है।
घायल पंछी सा हाल मेरा,
हाय ! यह मैंने क्या कर डाला।
अपने हीं पैरों में कुल्हाड़ी मार,
अब कैसे सुखी हो सकता हूं।
अब मां ही समझे, मेरे सच्चे मन को,
मैं सरल - भावुक कपट ना जानूं।
फिर भी दोषी खुद को ही मानता हूं,
मुंह से निकल गई जो बात,
धनुष से निकल गया जो बाण।
कभी वापस नहीं आ सकता,
अब तो हमें पश्चाताप की,
अग्नि में जलना ही पड़ेगा।
क्षमा- दंड जो मिले मांगता हूं,
बस यह बोझ दूर हो जाए।
इतनी बोझ -ग्लानि के साथ,
मैं कैसे अब जी पाऊंगा ?
अगर अब आपका साथ न मिला ,
मैं नहीं अब जी पाऊंगा।
मैं नहीं अब जी पाऊंगा।।
बिना विचारे जो करै,
सो पाछे पछताए।
काम बिगाड़े आपनो,
जग में होत हंसाय।
सो पाछे पछताए,
आप करना कुछ भी विचार,
जिसे बाद में पछताना न पड़े।