आओ सुनाता हूं, सुनो मेरी प्रेम कहानी,
बस दिल थाम के बैठना,पी लेना पानी।
सदियों से जीता-मरता हूं ,
पर तृप्ति नहीं होती,
प्रेम किया सबसे बस ,खुद को समझा नहीं।।
हर जगह ठोकर मिली, सबसे दिल टूट गया,
हुआ निराश-हताश मैं,
जानकर बहुत दु:ख हुआ।
टूट गए थे दांत, कानों से सुनाई नहीं देता था,
आंखें थी निस्तेज , दिखाई नहीं देता था।।
सांसो ने सांस छोड़ दी,
परम गति को प्राप्त हुआ।
आओ सुनाता हूं, सुनो मेरी प्रेम कहानी।
अब तो बस नफरत सी हो गई थी,
खुद से और उस अपनी दुनिया से।
याद आती थीं, वह बातें वह एहसास,
हाय ! क्या कुछ नहीं किया उनके लिए।
झूठ बोला, चोरी की ,किया बेईमानियां,
आओ सुनाता हूं ,सुनो मेरी प्रेम कहानी।
कभी दूसरों को जरा भी समझा नहीं,
बस अपनी धुन में सदा था गाता रहा।
जल की बूंद जैसी काया की घमंड में,
सदा मदमस्त हुआ , रोज फिरता रहा।
मां-बाप की भी तो कभी सुनी नहीं,
गुरु की बातों का भी न कभी मान किया,
आओ सुनाता हूं, सुनो मेरी प्रेम कहानी।
अज्ञानी मैं ज्ञानी सा, खुद को समझता रहा।
दो दिनों की जिंदगी में,
कई सारे नाटक किया,
कंचन को छोड़कर कामिनी में लगा रहा।
अपनी उर्जा नष्ट की, पका बाल बुड्ढा हुआ,
अब कुछ दिनों का मेहमान था,
आओ सुनाता हूं मैं मेरी प्रेम कहानी।
नहीं कहीं मेरा मान था, मैं बेवस बेकार सा।
तृष्णा न बूढ़ी हुई , यह तो रही जवान।
कुछ न बनता था ,पर रहता था परेशान,
सांसे थी बची नहीं, फिर भी रह गए अरमान,
कष्टों में जीवन था, दु:ख से था वास्ता,
बच्चों सा बन गया, बिस्तर पर मल-मूत्र थे।
आओ सुनाता हूं ,सुनो मेरी प्रेम कहानी।
गिनते सांस था जी रहा, न कोई मित थे,
अब मुक्ति के बाद मैं, चिर निद्रा में सोऊंगा,
मतलब की दुनिया , इनके लिए न रोऊंगा।
पर मैं जैसे ही सो कर थक गया,
आत्मा की ऊर्जा तरोताजा हुई।
अब फिर से घेरा है मोह ने,
आओ सुनाता हूं, सुनो मेरी प्रेम कहानी।
नवजीवन की आश की, उत्कंठा जाग गई।
जन्म लूंगा फिर से मैं भी, उस हंसी दुनिया में,
जो कुछ भी किया नहीं ,
जो कुछ भी जीया नहीं,
अब फिर से उमंगे उत्साह है जिऊंगा भरपूर।
प्यार की खोज में मैंने जीवन धारण किया,
आओ सुनाता हूं ,सुनो मेरी प्रेम कहानी।
एक बूंद से बढ़ता हुआ ,
पल-पल बड़ा होने लगा।
विकल रहा सदा कोख में,
जरायू से बंधा हुआ।
कष्ट काटे आश में,
जन्म लेकर कृतार्थ करूंगा,
उस परमपिता को याद कर,
अपनी सद्गति को जाऊंगा,
आओ सुनाता हूं, सुनो मेरी प्रेम कहानी।
जन्म लिया, दुनिया से प्रेम मेरा बढ़ता गया,
लगाया प्रेम मां से फिर पिता ,भाई-बहन से,
इस तरह प्रेम का विस्तार होता चला गया।
एक पल भी मां के बिना चैन नहीं पड़ता था।
हटते ही बस मां के पास,
जाने को सदा मचलता था।
आओ सुनाता हूं, सुनो मेरी प्रेम कहानी।
तरह-तरह के खाने से प्रेम हुआ,
मीठा-नमकीन अच्छा लगने लगा।
न मिले चॉकलेट तो सिर मैं पटकने लगा,
कितनी भी यतन से मां मुझको समझती,
मैं जिद्दी बालक कुछ न मेरे पाले आती,
भाई-बहन मित्र संग प्रेम मेरा बढ़ता गया,
खिलौनों से भी खूब मैं प्रेम करता गया।
आओ सुनाता हूं सुनो मेरी प्रेम कहानी।
थोड़ा और जब बड़ा हुआ ,
अब पुस्तकों से प्रेम हुआ,
माता-पिता गुरु की बातें ,
उस पल दिल को छुआ।
मैं जी-जान से पढ़ने लगा,
सच मानकर बढने लगा।
मित्र मिले कई फिर प्रेम भी बढ़ता रहा,
कॉपी-पेंसिल से बढ़कर ,
साइकिल तक चली गई।
आओ सुनाता हूं, सुनो मेरी प्रेम कहानी
इस तरह थोड़ा बड़ा हुआ,
अब रूपया पहचानने लगा,
मां के सिक्कों से हो गया प्रेम,
उसे ही अनमोल धन मानने लगा।
मिलती ₹2 या फिर अठन्नी ही,
ऐसे खुश हो जाता पास हो सारा जहां।
आज सुनाता हूं ,सुनो मेरी प्रेम कहानी।
फिर थोड़ा और बड़ा हुआ ,
खेलों से प्रेम हुआ, उनमें मन लगने लगा।
गिल्ली-डंडा कित-कित ,
और न जाने क्या-क्या।
फुटबॉल और क्रिकेट भी,
अब मेरी प्रेमिका बन गई
भले ही नाक मेरी टूट गई,
एक दिन क्रिकेट के बॉल से।
फिर भी हमने उसे छोड़ा नहीं,
इतना प्यार उसे करता था।
आओ सुनाता हूं ,सुनो मेरी प्रेम कहानी।
सोलहवां बसंत पूरा किया,
थोड़ी मिल गई आजादी,
अब तो बस उड़ने लगा था,
न याद आती थी दादी।
कुछ लोग अच्छे लगने लगे,
लगता था देखता रह जाऊं,
पर उन्हें मेरा कोई ठौर था,
मेरी बातों पर कोई गौर था।
फिर भी मैं सदा ढूंढता रहा ,
कोई मिल जाए अपना सा।
जल्द ही है एक मिल गई,
फिर उससे भी मुझे प्यार हुआ।
आज सुनाता हूं ,सुनो मेरी प्रेम कहानी।
अब तो दिन-रात ही सदा,
उसकी यादों में दिन कटने लगे।
खुशियां तो तब मिली,
जब उसका मनुहार मिला ।
फिर एक दिन वह चली गई,
मैं अंदर ही रोता रह गया।
इस तरह बढ़ा हुआ अब,
कमाने को खड़ा हुआ।
आओ सुनाता हूं ,तुम्हें अपनी प्रेम कहानी।
फिर जल्द ही छोटी नौकरी मिल गई,
मां-बाप के सपने को समझा मैंने पूरा किया।
अब तो उस नौकरी से प्रेम हुआ,
फिर मैं उसे यूं ही ढ़ोता रहा।
सहकर्मियों से प्रेम हुआ,
कुछ तो बहुत अच्छे लगने लगे।
पर ठिकाना मेरा कहीं और था,
मां को एक बहू पसंद आ गई।
आओ सुनाता हूं, मैं अपनी प्रेम कहानी।
अब साथ बना फिर प्रेम शुरू हुई,
प्रेम से ही प्रेम का, विस्तार होता चला गया,
दो से तीन हुए ,तीन से हो गए चार।
इसी तरह बढ़ता रहा दिनों दिन मेरा प्यार,
पर अब तो यह प्यार ही,
मेरे सिर दर्द बन चुकी थी।
नमक तेल के चक्कर में,
मैं दिन-रात पिसने लगा।
फिर भी नहीं हारा, प्यार तो करता रहा,
जैसे सूखी हड्डी से कुत्ता सदा करता है।
चबाता है उसे बड़े चाव से,
सोचता है बड़ा स्वादिष्ट है।
यह नहीं है वह जानता,
जिस खून का स्वाद वह, आनंद से ले रहा,
उसके जबड़े से ही है वह निकल रहा।
आओ सुनाता हूं ,अपनी प्रेम कहानी।
इसी तरह मैं भी, हाड़-मांस से प्रेम करता हूं,
परमपिता को भूल कर, तुच्छ आहे भरता हूं।
चुमता हूं चाटता हूं, न जाने कैसा स्वाद है।
फिर भी कभी तृप्त न होता,
देखो, कैसी है प्रेम की भूख मेरी।
तभी तो खुद से ही घिन आती है,
क्या यही है, अब प्यार मेरा,
अगर इसे ही प्यार कहते हैं,
तो फिर पशु ही हमसे श्रेष्ठ हैं।
कम से कम हुए समय की परवाह करते हैं,
अपने साथी की इच्छाओं का ध्यान रखते हैं।
पर हम तो सदा अपनी धुन में,
कभी न उसकी सुनते हैं
आज सुनाता हूं ,मैं अपनी प्रेम कहानी।
बहुत लंबी है बातें, कितनी तुझे बताऊं यार,
चाहे जी लो जितना भी,
पर कम न होगा प्यार।
न जाने कैसा जीवन है,
जाने कैसा यह संसार,
कल का है ठिकाना नहीं,
पर हैं संजोने में सदा लगे हुए,
मैं तो उब गया हूं जी-जी कर,
यह मर कर भी जीना क्या यार।
आज सुनाता हूं ,मैं अपनी प्रेम कहानी।
अगर आप यहां तक पहुंच गए,
तो कुछ आप भी कर लो विचार,
मेरी तो बहुत लंबी है ,प्यार की लिस्ट यार।
खत्म न होगी यह कभी,
क्योंकि जन्मों का है अंत नहीं,
अब तो मैंने सीख लिया,
सदा करूंगा निस्वार्थ प्यार।
पूरी करता हूं अपनी, कहानी मेरे यार।
अन्यथा उब जाओगे, सुनकर मेरा प्यार।