9 अगस्त 2022
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Author, Teacher and Social WorkerD
दिल पर इतनी बोझ लेकर ,अब मैं कैसे जी पाऊंगा ?मुंह से निकल गई अब बात,धनुष से निकल गया जो बाण ।कभी वापस नहीं आ सकता ,अब तो हमें पश्चाताप की।अग्नि में जलना ही पड़ेगा।अब पछताए होत क्या,जब चिड़िया चु
🕉️अच्छी लगी मुझे आपकी,लुकाछिपी आंख- मिचौली, खेल लो आप खुशी से,कभी रहे ना मलाल,पर इसी को याद कर,एक दिन हो सके, आपको अच्छा ना लगे।अगर जिंदगी खेलेगा तो, फिर रोना ना आप याद कर।मेरा त
आओ सुनाता हूं, सुनो मेरी प्रेम कहानी,बस दिल थाम के बैठना,पी लेना पानी।सदियों से जीता-मरता हूं ,पर तृप्ति नहीं होती,प्रेम किया सबसे बस ,खुद को समझा नहीं।।हर जगह ठोकर मिली, सबसे दिल टूट गया,हुआ निराश-हत
बावरा हो गया मन मेरा,बावरी सी है इसकी बातें।समझाऊं कितना भी ,मनाऊं कितना भी,पर न समझे - न माने, अब हो गया बावरा।करे मनमानी, साथ में नादानी,हर काम में आनाकानी ,इसे सदा रहे परेशानी।अब तो ऐसे काम ना चलेग
मत रो ! देख !! खुला दरवाजा !!!यह खुला दरवाजा! वह खुला दरवाजा!मिलने वालों की उम्मीद की एहसास है।याचक की आश है, चाहे दिल-दिमाग,मन या घर खिड़कियों की हो, दरवाजे,समय पर खोल - देख किसकी द
वाह! बल्ले-बल्ले आया पोएट्री मैराथन,अरे उठ कड़क मन अब तो गई ठन।आओ मन बनाएँ लिख लें कविताएँ,शब्दों को सजाएँ मन की बातें बताएँ,कुछ सबकी सुने और अपनी भी सुनाएँ।।राजा और रानी की, दादी और नानी की,तोत
न बैठा रह यूं ही सुनहरे दिन की आस में,उठ जाग पुरुषार्थ कर लक्ष्य को प्राप्त कर।कुछ नहीं बाहर सब कुछ है निज पास में,सूरज निकलने से पहले जब तू जाग जाएगा,पल में ही तुम्हें सुनहरा दिन नजर आएगा।।आयु विद्या
घाटियों के बीच बसा वह सुंदर सा शहरदोनों ओर ऊंचे पर्वतें नीचे बहता नहर,ऊपर के मुहाने पर बसा छोटा सा शहर।देखने को सदा जी चाहे, न देखूँ तो कहर,देखने को आऊँ तो लगे पहर-दोपहर।सारी दुनिया मुग्ध हुई, न
मिलन-विरह की बात समझ, न पड़ झमेले मेंक्षणभंगुर सब यहांँ, जो कुछ दिखता मेले में।मिलन-विरह का जाने, वास्ता नहीं परदेश से,जो कभी भी जुदा न हुआ प्रिय-प्रियतम से।माँ की गोद में ही जागकर आँखें ख
अब भी आखें-कान खोल ले देख-सुन,क्यों पड़ा है रेत में अपना सिर दबाकर।भविष्य की विकटा भी पहचान देख सुन,अपने घर की तुझे क्यों कुछ याद नहीं।क्यों खोया है सपनों की झूठी दुनिया में,पहचान ले अब वक्त की
जय भारत वर्ष जय-जय सनातन, कुर्बान होऊँ तुम पर शत-शत नमन। लहू का एक बूँद भी जबतक बचा रहे, लड़ता रहूँ रूकूँ नहीं चाहे शहीद होऊँ। चाहे आ जाएँ कितने भी लंगड़े तैमूर, बालकरण सा डटूँ कभ
पूरी दुनिया हुई अब हिंदीमय,ने केवल यह हिन्द रे सखा !हिन्दीमय हिन्द का हिन्दू मैं,हिंदी ही है प्रज्ञा और मेरी माँ।हिंदी पर मैं मर-मिट जाऊँ,हिंदी ही गाऊँ हिंदी बजाऊँ मैं,जय बोलूँ हिंदी-हिंदू-हिंदु
विदेश यात्रा की अब पूछो न बात,घर से निकलना भी मुश्किल हुआ।सब कोरोना के दो-दो टीके लगवाएँ,फिर ऑमीक्रान वैरीअंट हमें सताए ।जब भी होता है मौसम परिवर्तन,आम जनजीवन पर होता असर।सर्दी-खाँसी-बुखार
आओ आज करें हम, आत्मदेव की बात,परम मित्र परम सखा है अपना आत्मदेव।लालच और आसक्ति छोड़ देंन करें प्रज्ञा अपराध ।।जो सन्मार्ग पर मुझे चलाए,वही मेरा आराध्य।आध्यात्मिक जीवन तो है आगे की बात , प्राथमिक दौर म
दीदी आज है सप्ताहांत,बाहर का है मौसम बुरा।मॉनिटर तो बैठा है गुमसुम,परी की बातें हो जाए जरा।।रोज आती मेरे सपने में,मुझे परीलोक ले जाती है।पतंग की त
उठ जाग पलटकर देख ले,किस मद में तू खोया हुआ?भविष्य की अंधकार से,तू अब भी है अनजान क्यों ?लूट रहा तू टूट रहा बार-बार।क्यों इतिहास से नहीं सीखता ?बँट रहे हो रोज-ब-रोज तुम ,टुकड़ों
हे माँ ! हे जननी ! तुम ही हो नारायणी,हे जननी!हे जगदंबा! हे जगपालन कर्त्री!हे माता ! हे माँ शक्ति ! हे माँ कल्याणी!हे माँ गायत्री ! हे देवी ! हे माँ शतरूपा ! हे कमला ! हे सविता !
भाई-बहनों देखो! ध्यान से समझ लो,नए लेखक की चुनौतियों की यह बात।मैंने तो बस शब्दों में तुक मिलाया है,यह है प्रतिलिपि टीम की खरी बात।।छह चुनौतियाँ,नजर डालेंगे, करेंगे बात,दूर करना भी सीखेंगे
मेरी बहना! कभी हताश न होना ,आगे बढ़ती जा , अब यही मंत्र बना ।लक्ष्य को पाने तक अब रुकना नहीं ,कोई आए विध्न-बाधा झुकना नहीं।हाथ बढ़ाकर चाहो छू लो आसमान,पढ़ती जा, आगे-ही-आगे बढ़ती जा।न
कोरोना का कहर दो वर्षो से है जारी,विद्यालय बंद'ऑनलाइन कक्षा हमारी। हाथ में स्मार्टफोन करने को कक्षाएँ, लगूँ चाहे व्हाट्सएप पर,मेरी इच्छा है।कौन होते हो,मेरे मामा या चाचा हो ? कुछ भी कर
धूम-धूम-धूम धड़ाक ,धूम-धूम-धूम,शब्द इन पर मचगया, प्रीमियम का धूम।जितनी मुँह देखो,अब है उतनी ही बातें,कोई खुश हो रहा,कोई अब हैं सकुचाते ।सबके बीच अब है,यही चर्चा की बातें,लिख लो धाराव
आँखें बंद कर क्यों चले जा रहे ?देख लो लक्ष्य को कहीं खो न दो !क्या देखकर इतनी मद में चूर हो ?क्यों सुनते न हो, इतना मगरूर हो?ठोकर लगने पर क्या अक्ल आएगी ?सुनकर क्यों नहीं तुझे समझ आता ?इतना लापरवाह कै
इकरू से बना जापानी शब्द इकिगाई,इकरू मतलब है ' जीना ' आनंद से।इसे हम जोड़े जीवन के परम लक्ष्य से,इकिगाई का मतलब है 'जीने की वजह'रुचि, योग्यता, आवश्यकता और प्राप्ति,चार बातें एक ही शब्द में समाहित
कर्म कर ,फल की आस न कर,बोएगा,पानी देग, तो फलेगा ही।मौसम-प्रकृति की मार भी पड़ेगी,तू कोशिश करना,निराश ना होना।हुआ अच्छा, होगा वह अच्छा ही,बस सजग-सावधान कर्मण्य रह।अकर्मण्य-बेपरवाह कभी न बन,
आओ सुनाएँ तुझे किस्से नए-पुराने,देख-सुन भी न सीखा,गाता नए तराने।आँख बंदकर चले,और कोई ठौर नहीं ,न रास्ते की खबर,मंजिल का गौर नहीं।आँख रहते हुए भी अंधे की तरह,आँख कान
मुझे पसंद है रोज कुछ पढ़ना,आगे ही बढ़ना ऊँचे ही चढ़ना,जल्दी जागना , खुब जल पीना,दोनों वक्त शौच, खुल कर जीना,रोज व्यायाम,मन से अपना काम। खूब रगड़ नहाना ,द
जो कुछ भी है थोड़ा बहुत,न खा जाना कभी भूँजकर।बोने में कभी सकुचना नहीं,जमीन बनाकर बस बो देना।हजार गुना मिलेगा फलकर,बंजर नहीं परमात्मा की खेत,मुट्ठी. भर बो, मन भर पाएगा।अगर
आजा निंदिया,बिटिया-रानी को सुला दे !आजा निंदिया रानी ! आजा निंदिया रानी !!आजा निंदिया,बिटिया रानी को सुला दे !मेरे संग लेटी है,इसे पलकों पर बिठा ले !नींद में सुलाके इसे, मीठा सपना दिखा दे,आजा निंदिया,
रुक जा,जरा सुन ले,सोच-विचारकर ले!इतनी रफ्तार में क्यों,भागे चले जा रहे हो ?एक पल मन को शांत कर ,सोच-विचार,क्या होगा,आखिर तेरे कार्य का परिणाम?सोच - समझ ले ,रुक जा ! विचार ले !पलट कर देख ले,अपनी दीपक क
देख ! समय ,पल-पल बीतता बचा न वक्त।बढ़ जा राजा,अब छूले आसमां,तुम भी जरा ।चुक गए जो,अबकी बार तुम,फिर कहाँ तू ?बाँट ले दर्द,प्रियतम पिया से,सकुचाना ना !आँखों की भाषा,उनकी भी पढ़ ले,दिल लगी ना ।यादों
कदम लड़खड़ाया, बाधाएँ भी आई,लक्ष्य बनाकर, पथ पर बढ़ता गया ।जो माँगा मिला वह ,सपने सच हुए।न दिन-रात देखा,न दुनिया की परवाह,बस चलता गया, बढ़ता गया हर पल।जो माँगा मिला वह, स