मत रो ! देख !! खुला दरवाजा !!!
यह खुला दरवाजा! वह खुला दरवाजा!
मिलने वालों की उम्मीद की एहसास है।
याचक की आश है, चाहे दिल-दिमाग,
मन या घर खिड़कियों की हो, दरवाजे,
समय पर खोल - देख किसकी दस्तक है।
नई ताजगी, नई उमंग, नई बातें ,
और नई खुशियों की दीदार कर।
अच्छी लगे तो मिलकर-खुलकर जी।
और इस धरा पर ,जीवन का आनंद ले।
जीवन में नव-प्राण का संचार कर।
जीवन के रंग बहुतेरे और भी है।
मिलकर उनसे, आंखें चार कर।
मत रो-खींझ-उदास हो ,देख ! और भी, बहुत कुछ है जग में ,उसे स्वीकार कर।
बच्चों की तरह जिद न कर ।
क्यों बैठ कर रो रहा मन फेर ?
दिल-दिमाग को डायवर्ट कर।
आशा की किरण ही नहीं ,
आशा पुंज को तेरी इंतजार है।
बस आंखें खोलकर देख, मुस्करा !
अपने परमपिता के उपहारों का,
बेटा ! आनंद ले ,जी भर रास कर ।
गर मिले नहीं खुशियां ,फिर कहना,
देखो ! कितनों की सदा परवाह है तेरी,
कम से कम अपने आप परविश्वास कर।
आंख-कान-मुंह-दिल-दिमाग,
और मन के दरवाजे अब खोल।
देख ! दुनिया कहां जा रही,
तुम केवल कल में खोए न रह, सुन !सबकी बातें विचार कर,
सभी तेरे दुश्मन नहीं,
मुंह खोल अपनी बात रख ।
जो चाहो तुम इजहार कर,
पर यदि कोई सहमत न हो,
तुम्हारी सारी बातों से फिर ,
मत होना उदास ।
अंदर बाहर से मुस्कुराकर ,
सब को स्वीकार कर,
खोल दरवाजे मन-दिल-दिमाग का,
खुद को खुद भी समझा,
शांति से विचार कर,
समझा अपने भोले-भटके मन को,
खुद पर विजय की पुण: प्रयास कर।
नई सुबह को सदा ही इंतजार है तेरा,
बाहर निकल, गम की अंधेरी दुनिया से,
न सकुचा ,बस दूर से ही देख कर।
बाहें फैला, गले लगा ,खुशियां मना।
जैसा है उसे उसी रूप में स्वीकार कर।
छोड़ दे बुराइयां, बिना पल गवाएं,
अब न उल्टे सीधे विचार कर,
थाम ले अच्छाइयों का दामन,
बिना देर किए,
न उसमें कोई कमी तलाश कर।
न बंदकर सभी दरवाजे ऐसे,
रख खुला सब दरवाजा !
दस्तक -आहट का भी पता चले,
इतनी गहरी नींद में न सो, सतर्क रह,
सुन घंटी-दस्तक बाहर निकल ,देख!
किस-किस को तेरा इंतजार है!
समझ ! तुझे कमी नहीं किसी चीज की,
देख तुम कितनों की आश- विश्वास हो।
हरि ओम् !