सजे धजे बहुत मंडप आज
रोशनी की चकाचौंध से
विचरण करते हो आनंदित
प्राणी सभी अपनी मौज में,
भरमार भिन्न भिन्न व्यंजनों की
भरे फार्म हाउस,वाटिका स्टालों से
कितना कुछ बदल गया आज
इस नव युग के दौर में
क्या कुछ नही है किस के पास
खर्च करे सब बड़े जोश में ...!!
लगता फिर भी हर कोई अधूरा
इंसानो की इस भीड़ में
देखकर मुस्काते और गले लगाते
पर दिल से दिल कभी मिले नहीं !!
देखकर आज के माहौल का ज़माना
याद आता वो दादा जी का खजाना
जहां मंडप की जगह आँगन सजते थे,
बिजली की जगमगाहट नही थी
पर तेल घी के दीपक जलाते थे,
रंग बिरंगी लड़िया नही थी
केले और आम की टहनियों से
स्वागत के द्वार बनते थे,
बनाकर सात रंगो से रंगोली
मंगल गीतों से सत्कार करते थे,
रंग बिरंगे कागज़ के टुकड़ो से
बनी बंदरवाल से गली कूंचे सजते थे,
लगायी जाती थी रंग बिंरगी कनाते
बड़े बड़े चौबारे सामियानो से सजते थे,
जिनके नीचे लोगो के फिर
बैठ जमघट खूब लगते थे,
होती थी फिर हंसी ठिठोली,
कुछ नोक झोंक भी चलती थी,
किसी का रूठना, मनाना किसी का
उस पर फिर बात चलती
मान, मुनव्वल और मनुहार की,
जिसमे एक दूजे के प्रति
मान सम्मान झलकता था,
कितना एक दूजे से मिलते
जीवन में प्यार झलकता था ....
हो गए वो मात्र स्वपन
आज हकीकत में अब कहा .
वो सम रसता वो आनद के पल
जीवन में अब वो बात कहाँ ....!!!
जीवन में अब वो बात कहाँ ....!!!