माफ़ कीजियेगा….. कुछ भी लिखता हूँ !!
एक दिन राह चलते मुलाक़ात हुई एक नेताजी से
मैंने पूछा,ये बदनामी का ताज तुहारे हिस्से क्यों है,
प्रसन्न मुद्रा से बोला जिसे तुम बदनामी कहते हो
इससे मैं अपनी सात पुश्तो का इंतजाम करता हूँ !!
माफ़ कीजियेगा….. कुछ भी लिखता हूँ !!
आगे बोला, वक़्त बदल गया, दोस्त अब इक्कीसवी सदी है
परिस्थिति अनुकूल व्यवस्था परिवर्तन जरुरी समझता हूँ !
इसलिए हमने खादी त्याग, विलायती सूट बूट अपना लिए
और अब अपने सर की टोपी उतार जनता को पहनाता हूँ !!
माफ़ कीजियेगा….. कुछ भी लिखता हूँ !!
बात सिर्फ इतने में ही ख़त्म हो जाती तो भी ठीक था
धारा प्रवाह बोलते हुए महाशय ने और कई राज खोले
जनता का बेबस और लाचार बने रहना जरुरी ये बोले
इसलिए कुछ अपराधिक तत्त्वों का निर्माण करता हूँ !!
माफ़ कीजियेगा….. कुछ भी लिखता हूँ !!
स्वंय अनपढ़ होकर पढ़ी लिखी जनता को बनाता हूँ
यथास्तिथि अनुसार गूंगा बहरा बनके देश चलाता हूँ
सत्य हो या असत्य, सबको मै एक नजर से देखता हूँ
अपना विकास ही सबका विकास नारा देकर चलता हूँ !!
माफ़ कीजियेगा….. कुछ भी लिखता हूँ !!
माफ़ कीजियेगा.ऐसे कुछ भी लिखता हूँ !!
मै लोकतंत्र का एक सम्मानित व्यक्ति हूँ
जनता को बहलाना फुसलाना मेरा धर्म
इसलिए जनहित का नेता कहलाता हूँ !!
माफ़ कीजियेगा….. कुछ भी लिखता हूँ !!
माफ़ कीजियेगा ऐसे, कुछ भी लिखता हूँ
लेखक न कवि, न कोई उपाधि रखता हूँ
दिल में सुलगते जज्बातों को संजोकर
कभी-कभी कागज़ के टुकड़े पर रखता हूँ !!
माफ़ कीजियेगा …………..ऐसे ही कुछ भी लिखता हूँ !!
ऐसे ही कुछ भी लिखता हूँ, ऐसे ही कुछ भी लिखता हूँ !!
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रचनाकार ( डी. के. निवातियाँ )