सैनिको की सहादत को सलाम
धरती माता को लगे आघात, आसमान भी रोने लगता है
जब जलती चिताये वीरो की सूरज भी पिंघलने लगता है !!
नमन ऐसे वीरो की जाँबाजी के सजदे में सर झुकता है,
हो गौरान्वित बहनो का भी मन कांधा देने को करता है !!
सूख जाता है आँखों का सागर ,तनमन पत्थर सा हो जाता है
करे विलाप या शहादत को नमन, जिसका लाल खो जाता है !!
देश की आन बचाने को जो अपनी जान से मर मिट जाता है
माँ – बाप और बीवी बच्चो को, रोता बिलखता छोड़ जाता है !!
कल भरी थी मांग सिंदूरी, उसके हाथो की महेंदी अभी ताज़ा है
सजने संवरने की आयु में उसे विधवा का चोला ओढ़ा जाता है !!
इंसान नही देव तुल्य है वो, जो मातृ भूमि पर मर मिटते है
देते गमो का भार घरवालो को, देश का नाम रोशन करते है !!
–::–डी. के. निवातिया–::–