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“दिखावे की रस्म” …… ( पारिवारिक कहानी )

17 सितम्बर 2015

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{{ दिखावे की रस्म }} आज घर में बड़ी चहल पहल थी I और हो भी क्यों न ! घर में मेहमान जो आने वाले थे, वो भी घर की बड़ी बेटी “तनु” को शादी के लिए दिखावे की रस्म अदायगी के लिए I साधारण परिवार में जन्मी तीन बच्चो में सबसे बड़ी बेटी, एक कमरे का मकान जिसमे एक छोटा सा आँगन, पिता एक सामान्य सी नौकरी कर के घर का खर्च चलाते थे I घर का माहोल खुशनुमा बना हुआ था I सब के मुख पर ताजगी देखते ही बनती थी I मम्मी खुश मगर सकुचाई जी नजर आती थी, पिता के चेहरे पर ख़ुशी के मध्य में चिंता के भाव साफ़ नजर आते थे, उन सब के बीच काम बोलने और अपने संसाकरो के प्रति सजग “तनु” के मन में रह रहकर हजारो सवाल उठ रहे थे I कुछ सूझ नही रहा था, मन बड़ा ही विचलित था ! तभी किसी ने बहार से आकर खबर दी …मेहमान आ गए है ! छोटे से मकान में चहल कदमी बढ़ सब इधर उधर दौड़ने औए व्यवस्था के सवारने में व्यस्त हो गए …जैसे ही मेहमानो मे घर के अंदर प्रवेश किया उनका जोरदार स्वागत किया गया !! …..और बातचीत की रस्म अदायगी होने लगी I कमरे के अंदर बैठी वो साधारण कन्या अभी भी खुद के सवालो में उलझी थी, मम्मी उसको समझा रही थी की मेहमानो के सामने कैसे व्यवहार करना चाहिए जो जन्म से ही सख्ती आ रही थी, मगर आज उससे ममी ने क्या क्या कहा उसे कुछ मालूम नही था, वो तो खुद में ही उलझी थी…. अचानक दरवाजे से आवाज सुनाई दी …..बेटी तनु……….!…. हाँ ,,,,, पापा सकुचाते हुए अचानक जबाब दिया ! तुम तैयार तो हो ना बेटी ! जी पापा …..धीरे से बोली I पापा पास आकर बोले देखो बेटी … वो लोग आ गए है ! तुम्हे देखने और पसंद करने के लिए …!! मैंने अपनी तरफ से अच्छा धनि परिवार चुना है I लड़का सुशिक्षित और समझदार है I तेरा जीवन सदा खुशियो से भरा हो … इससे ज्यादा और हमे क्या चाहिए I बाकि आखिरी फैसला अब तुम पर है जिसमे मेरा पूर्णतया समर्थन होगा .. कहते हुए पिता ने बेटी के सर पर दुलार से भरा हाथ फेरा ….!! पिता जी क्या मै कुछ पूछ सकती हूँ ? – सहसा तनु बोल पड़ी ! हाँ …. हाँ बेटा पूछो …सरल भाव से पिता ने जबाब दिया ! क्या धनवान लोग ही सुखी रह सकते है ! हम जैसे साधारण लोग सुखी जीवन नही जी सकते ! क्या धन दौलत का नाम ही ख़ुशी है…….? पिता चुपचाप थे ! आज पहली बार बेटी ने उनसे खुलकर बात की थी .. वो अपनी बात कहते हुए बोलती जा रही थी ! ये देख दिखावे की रस्म का क्या अर्थ है ! क्या क्षण भर किसी को देख लेने से हम किसी के व्यक्तित्व को जान सकते है ? …… मेरे कहने का तातपर्य यह नही की मुझे इन लोगो या से या पैसे वालो से शिकायत हैं मै तो बस यह कहना चाहती हूँ की मेरी ख़ुशी धन दौलत में नही …उन संस्कारो में है जो आजतक आप मुझे सिखाते आये हो ! मैंने अप ही से जाना हैं की व्यक्ति से ज्यादा अहम उसका व्यक्तित्व होता हैं I अगर दो व्यक्तियों के विचारो में समानता हो तो इंसान हरहाल में खुस रह सकता है I वरना अच्छा भला जीवन भी नरक की भेँट चढ़ जाता है I पिता चुचाप उसकी बाते सुन रहे थे I बातो में सच्चाई थी i और हकीकत में जीवन का मूलमंत्र भी थी i बेटी धारा प्रवाह बोलती जा रही थी i मानो उसके अंदर का सैलाब आज फुट पड़ा हो और वो उसमे शब्दों के माध्यम से कतरा कतरा बह रही थी I क्या दिखावे की रस्म का इतना बड़ा स्वांग रचकर ही हम एक दूजे के बारे में जान सकते है ! क्या इस तरह ही किसी के व्यक्तित्व, आचरण या जीवन शैली का आभास कर सकती हूँ ! मुझे स्वयं को लगता है – शायद नही ! आप यह न समझना की मेरे कहने का अर्थ इन सब का विरोध करना है, मै किसी भी सामाजिक क्रिया कलाप के विरोध में नही, और न ही मै प्रेम विवाह या, लिव-इन-रिलेशन में विश्वाश रखती हूँ i मेरे कहने का आशय मात्र इतना है की किसी भी व्यवस्था को बदलने की नही उसमे यथास्तिथि समयानुसार परिवर्तन की आवश्यकता है i जीवन कैसे जिया जाता है ये आपने मुझे अच्छे से सिखाया है, मै हर हाल में स्वंय को ढाल सकती हूँ i परिस्तिथि समहो या विषम दोनों से निपटना आपने अच्छे से सिखाया है i इतना कहते हुए तनु रुंधे गले से अपने पिता से लिपट गयी, ….दोनों की आँखों में आंसुओ का सैलाब उमड़ पड़ा था i मम्मी मुह पर हाथ रखे अपने स्वर को दबाये खड़ी थी, वो खुद को सँभालने में असहाय लग रही थी i पिता में रुआंसा होकर अपने दोनों हाथो से बेटी का मुखड़ा ऐसे उठा लिया जैसे बड़ी बड़ी पत्तियों के मध्य पुष्प कलम हो ! बेटी के माथे को चूमते हुए बोले …. बेटा आज मै कुछ नही कहूँगा ! फैसला तुझ पर छोड़ता हूँ ! तेरी सहमति में हमारी सहमति है ! आँगन में बैठे मेहमान और परिवार गण शांत भाव से कान लगाकर उनकी बाते सुन रहे थे ! इतने में अचानक लड़का खड़ा होकर बोला ! …. माफ़ कीजियेगा …. क्या मै कुछ बोल सकता हूँ ? इतना सुनकर सब सहम से गए … बेटी के पिता आवाज सुनकर बहार आ गए और बोले … हाँ बेटा ….क्यों नही … कहिये आप क्या कहना चाहते है ! पिता जी… मुझे लड़की बिना देखे ही पसंद है ! अगर मै शादी करूँगा तो सिर्फ “तनु” से यदि वो अपनी सहमति प्रदान करेगी तब … वरना मै आजीवन कुँवारा रहने की शपथ उठाता हूँ !! यह मेरा निजी फैसला हैं और मै समझता हूँ की इससे किसी को कोई आप्पति नही होगी… यानि मेरे परिवार को भी मुझे इतनी आजादी देनी होगी ! लड़के का निर्भीक फैसला सुनकर सब अचंभित और अवाक थे i उसके माता पिता भी उसकी और ताकते रह गए i किसी के भी तरकश में जैसे कोई शब्द बाण बचा ही नही था ! लड़के ने आगे बोला, मुझे जो देखना था वो देख लिया ..! मुझे धन दौलत या शारीरिक सुंदरता नही आत्मीय सुंदरता की आवश्यकता है, धन दौलत से तो मै बचपन से ही खेला हूँ, मगर जो सम्पत्ति आज मुझे तुन के विचारो से प्राप्त हुई है उस से मुझे आशा ही नही विश्वाश हो उठा है की “एक तुम बदले – एक मै बदला” इसका मतलब “हम बदल गए” और जब हम बदले तो जग बदले या न बदले कम से कम अपनी आने वाली पीढ़ी को तो बदला ही सकते हैं i उसकी ये बाते सुनकर माहोल में हल्कापन आ गया ! अंदर ही अंदर कमरे में दीवार के सहारे खड़ी तनु ये सब सुनकर रोते-रोते मुस्कुरा रही थी ! और बहार का शांत माहोल फिर से खुशियो की रफ़्तार पकड़ चुका था !! !! इतिश्री !! [[ डी. के. निवातियाँ ]]

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छूट गए !!

4 मई 2015
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बहुत कुछ पा लिया हमने पर क्या खोया भूल गए रफ़्तार की इस जिंदगी में हम अपनों से छूट गए !!

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अब वो बात कहाँ ....!!!

5 मई 2015
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सजे धजे बहुत मंडप आज रोशनी की चकाचौंध से विचरण करते हो आनंदित प्राणी सभी अपनी मौज में, भरमार भिन्न भिन्न व्यंजनों की भरे फार्म हाउस,वाटिका स्टालों से कितना कुछ बदल गया आज इस नव युग के दौर में क्या कुछ नही है किस के पास खर्च करे सब बड़े जोश में ...!! लगता फिर भी हर कोई अधूरा इ

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रेलगाड़ी की तरह जिंदगी.......!!

6 मई 2015
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रेलगाड़ी की तरह जिंदगी जन-जन की बोगी से जुड़ हुए...! तमाम उम्र गुजर जाती है एक दूसरे से जुड़ते -टूटते हुए...!! चलती रेलगाड़ी की तरह सरपट दौड़ती, धीमी कभी तेज ! गंतव्य पाने की अभिलाषा दहकती कर्म की अग्नि में तेज़ !! प्राणो को ढोती हुई जीवन में बोगी रूपी तन ! किसी का समीप किसी का सुदूर लक्ष्य बन !! आ

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आना अभी बाकी है !!

6 मई 2015
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एक छोटी सी याद हमारी, चेहरे को फूल सा खिला देंगी ! छेड़ो दिल के तार के चेहरे पे रुआब आना अभी बाकी है !! यादो में बीत न जाए कही, बाकी बचे चंद लम्हे जिंदगी के ! लौट आओ मेरे पास, सुपुर्द ऐ खाक होने में वक़्त अभी बाकी है !! सबको चले जाना है छोड़ के महफ़िल एक दिन इस जहां से ! कही टूट न जाए ये सांसो की डो

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लिखी थी एक नज्म

7 मई 2015
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. लिखी थी एक नज्म जिसमे लिखना तेरा नाम रह गया ! किया जो भी काम, सब में एक काम अधूरा रह गया !! इतिफाक से हुए मुखातिब, टकराकर उनसे जख्म ताज़ा हो गया ! बाते हुई नजर के इशारो से जुबान बंद थी, सलाम अधूरा रह गया !! रहेंगे जहाँ में रोशन तेरे नाम से जाते जाते बस वो इतना कह गया जब गुजरा था मेरे बगल से एक ब

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सिर्फ एक "माँ" कर सकती है .......

9 मई 2015
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सहकर कष्ट अपार जीवन दुसरो का जीवन बना सकती है करने को जीवन प्रदान किसी को खुद की जान दाँव पे लगा सकती है वो सिर्फ एक माँ ही कर सकती है !! रात रात भर हमको लोरी सुना सकती है जागकर रातो में हमको चैन की नींद सुला सकती है वो सिर्फ एक माँ ही कर सकती है !! बिन बताये संतान का चेहरे देखकर दर्द समझ सकती है

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गांधी तेरे देश में

11 मई 2015
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देख गांधी तेरे देश में आज उठ ये कैसा भूचाल रहा ! आजाद देश का गरीब किसान अपनी जान गवां रहा !! भूख है कि मिटती नही इन सत्ता के व्यभिचारों की ! गरीबो के लहू से आज वो प्यास अपनी बुझा रहा !! भूल गए क्यों वो प्रण तुम्हारा देश इस को चमकाने का ! अपनी झूठी शान कि खातिर देश को नीचा दिखा रहा !! एक दूजे पर ल

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कहर .....

12 मई 2015
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रह रहकर टूटता रब का कहर खंडहरों में तब्दील होते शहर सिहर उठता है बदन देख आतंक की लहर आघात से पहली उबरे नहीं तभी होता प्रहार ठहर ठहर कैसी उसकी लीला है ये कैसा उमड़ा प्रकति का क्रोध विनाश लीला कर क्यों झुंझलाकर करे प्रकट रोष अपराधी जब अपराध करे सजा फिर उसकी सबको क्यों मिले पापी बैठे दरबारों में जनमान

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तराना बन जाए

13 मई 2015
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आओ यारा मिलकर कुछ ऐसा लिखे लोगो की जुबान का तराना बन जाए ! न कसक हो कोई बाकी तमन्नाओ की एक दूजे की आँखों का सितारा बन जाए !! तेरे दिल की वीणा कुछ ऐसे सजती हो. मेरी धड़कनो के तार से वो बजती हो जब जब निकले उनसे कोई सुर ताल प्रेमियों के प्यार का फ़साना बन जाए.....!! कुछ किस्से जिसमे अपने वादो के हो और

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वो मेरे घर की अपनी बेटी है

16 मई 2015
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चाहती है दिलो-ओ -जान से मुझ पे वो कितना मरती है बुनती हर ख्वाब निश दिन भरोसे मेरे जिन्दा रहती है आखिर वो कौन है ....!! रोज़ शाम करे इन्तजार डयोढ़ी पर खड़ी होती है अब आ रहे होंगे शायद मन ही मन वो सोंचती है आखिर वो कौन है ....!! करती है मांगे नाना प्रकार कभी हँसती, कभी रूठती है करती है परवाह बाद माँ क

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मैंने देखा है…

19 मई 2015
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कैसे कहू आँखों का धोखा जब मैंने सजीव चित्रण में देखा है अगर हो सके तो तू भी देख दुनिया का वो रूप जो आज मैंने देखा है… आज करते है बाते बड़ी बड़ी कहते है बिना फिलटर किया पानी सूट नहीं करता बचपन में हमने उनको गाँव के पोखर के जल से प्यास बुझाते देखा है !! आज एयर कंडीसन बंगलो में बैठी नारी आराम फरमाते गर

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बीवी के सपने....

23 मई 2015
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************************************ बीवी के सपने ************************************ काश !! ..पतिदेव मेरे होते अलादीन का चिराग, हसरते पल में पूरी होती ! न रहती कोई चिंता फ़िक्र किसी बात की, मेरी मन मर्जी होती ! जब करता मन कुछ काम कराने का रगड़ा मारकर बुलाती ! न होता कोई झनझट काम धाम का, सब क्षण

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अच्छा लगता है

30 मई 2015
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कुछ तो बात थी जो हुआ रब मेहरबान, और बना तुमसे नाता, सच्चा लगता है ! जब से मिला सहारा तेरी वफाओ का , करके दो बाते तुमसे अच्छा लगता है !! डी. के. निवातियाँ ________!!!

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जय हिन्द की सेना

10 जून 2015
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हम भारत माँ के वीर सिपाही, हमसे बनी जय हिन्द की सेना ! आतिथ्य में गर सर झुका दे, कमजोरी उसको समझ न लेना !! दीन दुखी हो या कोई लाचारी काम अपना सबको सहारा देना ! देश सेवा में करे अर्पण जीवन वक़्त पे अपनी जान गंवाँ देना !! हम भारत माँ के वीर सिपाही, हमसे बनी जय हिन्द की सेना !! जब संकट में हो देश

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कल की रात ............

15 जून 2015
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क्या बताऊँ तुमको, हुआ गज़ब बड़ा कल मेरे साथ ! लफ्जो में बयान न हो, कल जो गुजरी रात उनके साथ !! थे दोनों संग संग में, फिर भी न हुई उनसे कोई बात ! जाने कैसा जुल्म हुआ, औ रामा कल की रात मेरे साथ !! जागे जागे सोये थे , अपने बिस्तर पे दोनों कल रात ! अरमानो का तूफ़ान, दबाये करवटे बदलते रहे साथ-साथ !! दबी

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जब इठलाती बरखा रानी आई !!

17 जून 2015
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घुमड़ घुमड़ कर बादल उमड़े बिजली ने भी चमक बिखराई, अति तीव्र वेग से बहती वायु , झोंको संग आंधी ले अंगड़ाई जब इठलाती बरखा रानी आई !!______(१) टप टप करती बूंदे गिरती, सिरहन सी बदन में छाई, नाचे मन मयूर ख़ुशी से, रुत ने बदली अब अंगड़ाई, जब इठलाती बरखा रानी आई !!______(२) सूर्य देव को बादलो ने घेरा, तपती ग

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वतन से विदाकर चले ….. (देशभक्ति गीत)

23 जून 2015
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कर के फना अपनी जान हम वतन से विदाकर चले , अब कैसे तुम इसे संवारो ये हक़ तुम को अदा कर चले !! सींचकर अपने लहू जिगर से हमने आजादी का वृक्ष लगाया कैसे फले फूलेगा बीच शत्रुओ के ये भार तुम्हारे हवाले कर चले !! मिटा देना या सजा लेना लाज इसकी तुम्हारे हाथ, अब बचा लेना या गँवा देना ये का

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“दिखावे की रस्म” …… ( पारिवारिक कहानी )

17 सितम्बर 2015
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{{ दिखावे की रस्म }}आज घर में बड़ी चहल पहल थी I और हो भी क्यों न ! घर में मेहमान जो आने वाले थे, वो भी घर की बड़ी बेटी “तनु” को शादी के लिए दिखावे की रस्म अदायगी के लिए I साधारण परिवार में जन्मी तीन बच्चो में सबसे बड़ी बेटी, एक कमरे का मकान जिसमे एक छोटा सा आँगन, पिता एक सामान्य सी नौकरी कर के घर का खर

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माफ़ कीजियेगा….. कुछ भी लिखता हूँ !!

17 सितम्बर 2015
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माफ़ कीजियेगा….. कुछ भी लिखता हूँ !! एक दिन राह चलते मुलाक़ात हुई एक नेताजी से मैंने पूछा,ये बदनामी का ताज तुहारे हिस्से क्यों है, प्रसन्न मुद्रा से बोला जिसे तुम बदनामी कहते हो इससे मैं अपनी सात पुश्तो का इंतजाम करता हूँ !! माफ़ कीजियेगा….. कुछ भी लिखता हूँ

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दे ताली ...............

8 जनवरी 2016
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दे त्ा्ल्ी्......  वो क्या जाने मोल दाल भात का,जिनके घर रोज़ बनती मेवे की तरकारीनाश्ता होता जूस और फल सेखाने में बनती हो हर रोज़ बिरयानी !!दे ताली ……दे ताली…… दे ताली ..भई… दे ताली …्..!! जिसने ने जानी किसान की मेहनतकैसे चलती है गरीबो की जिंदगानीवो क्या जाने सुगंध मिटटी का,जिसने खुले आकाश में न जींद ग

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सैनिको की सहादत को सलाम..............

8 जनवरी 2016
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सैनिको की सहादत को सलामधरती माता को लगे आघात, आसमान भी रोने लगता हैजब जलती चिताये वीरो की सूरज भी पिंघलने लगता है !!नमन ऐसे वीरो की जाँबाजी के सजदे में सर झुकता है,हो गौरान्वित बहनो का भी मन कांधा देने को करता है !!सूख जाता है आँखों का सागर ,तनमन पत्थर सा हो जाता हैकरे विलाप या शहादत को नमन, जिसका ल

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हमको लड़ना होगा ……..

8 जनवरी 2016
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हमको लड़ना होगा …….. बिगड़े हुए हालातो से डटकर हमको लड़ना होगासमझ के वक़्त की चाल अब हमको चलना होगा !!कब तक बहेगा रक्त वीरो काखेल खून का अब थमना होगाजागो यारो इस देश के प्यारोसच्चाई को अब समझना होगा !बिगड़े हुए हालातो से डटकर हमको लड़ना होगासमझ के वक़्त की चाल अब हमको चलना होगा !!हिन

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नाम जवानी लिख देंगे .......

8 मार्च 2016
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हम देश प्रेमी है, अपनी जान हथेली रख देंगे वतन की रखवाली पे नाम जवानी लिख देंगे   !इस दुनिया को हमने, लोहा कई बार दिखाया है वतन पे कुर्बानी कि हरबार नयी कहानी लिख देंगे !!मत ललकारो तुम,  मेरे देश के वीरो की गैरत को  हम फिर से इतिहास में वही बात पुरानी लिख देंगे हम वतन के फूल निराले है, हर मौसम में

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मेरा चमन......

10 मार्च 2016
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जालिम बहुत है वो हर घर, गली , मुहल्ले  में छुपे बैठे है उनसे अपना चेहरा  छुपाये रखना, नजरे  बचाये रखना, कही कर न जाए दागदार पाक दामन को पाकर मौका बेशकीमती है मेरा चमन, इसकी आबो हवा बनाये रखना !!!डी.  के. निवातियां

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चिड़िया रानी ………..

17 जून 2016
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सुबह सवेरे वो आती हैमुझको रोज जगाती हैसुर में जब वो गाती हैमुझको बहुत लुभाती है !! अजब गजब उसकी भाषाअजब गज़ब उसकी बोली हैदिखने में लगती बड़ी चंचलपर आदत से वो बड़ी भोली है ।।बाहे फैलाकर मुझे बुलाती हैऔर गीत ख़ुशी के गाती हैसुनकर उसकी मधुर पुकारदिल की गिरह खुल जाती है ।।रास रसीली, कोमल गातमुरझा जाय

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