बादल ने पूछा धरती से
तुंम इतनी सहनशील कैसे रहती हो
में बदली बरसा दूँ तो तुम
मिटटी की सुगंध बिखेर देती हो
झूम झूम कर बरसूं तो जल समेट लेती हो
बरसा दूँ ओले तो दर्द सहकर भी कुछ नही कहती हो
धरती मुस्काई, बोली तुंम भी पिता की तरह
बच्चों के लालन पालन को प्यार सदैव बरसाते हो
मैं भी माँ हूँ अपने सीने पर इनकी ख़ातिर अन्न उगाती हूँ
सहती हूँ पेड़ों का भार फल का भी सहते वे भी भार
झुक कर अभिवादन करते मेरा मै कृतज्ञ हो जाती हूँ
पर जब काटे पेड़ कोई मेरा तो सह नही पाती
लेकिन जब हो जाता है षोषण मेरा
तब कभी कभी विस्फोटक बन जाती हूँ।
उथल पुथल होती सीने में मेरे
भूकंप कभी कभी ले आती हूं
पर मैं माँ हूँ सबकी इसीलिये फिर से चुप हो जाती हूं ।
त्रिशला जैन ।
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