हज़ारो दीप भी कम है अंधेरो को मिटाने के लिये
हो संकल्प मन में अगर तो एक दीप काफी है उजाले के लिये
प्रेम है शब्द ऐसा किभेद आपस के मिटाता मगर
एक कटु वचन ही काफी है दोस्ती मिटाने के लिये
अगर भूल जाये रास्ता कोईअगर
तो दिया झोपड़ी का ही काफी है रास्ता दिखाने के लिए
जीवन में लगा दे एक पेड़ हरेक इंसान
तो एक पेड़ ही काफी है पुण्य कमाने के लिएअगर
हो जाए समन्वय स्वच्छता और और साक्षरता का
तो एक ही कलम काफी है इंसान को इंसान बनाने के लिये
खिल उठें बचपन जवानी भी संयमित हो
तो एक ही आदर्श शिक्षक काफी है उनको बनाने के लिये
महक जाए हर उपवन और खुशियो की इठलाती डाली हो
छलक जाए अगर आखे किसी की
तो एक ही मुस्कान काफी है उसको हँसाने के लिये ।
त्रिशला जैन ।
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