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कुछ तो लोग कहेंगे

13 नवम्बर 2018

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कुछ कहानियां बहुत अलग होती हैं और जो दिल को छू जाती हैं वो ही दिल में उतरकर लंबे समय तक याद रह जाती हैं। कहानी लिखने का तरीका बहुत अलग होता है और सारा खेल लेख का होता है कोई कम शब्दों में बहुत कुछ लिख देते हैं तो कोई ज्यादा शब्दों में भी अपनी बातें समझा नहीं पाते। यहां इस कहानी में एक महिला अपने बेटे और पति में फंसी है और चाहती है कि उसकी बहू आ जाए जिससे वो भी सुकून की रोटी खा पाए। पढि़ए ये दिलचस्प स्टोरी.


एक महिला की दिलचस्प स्टोरी


"अरे माँ तुंम कहाँ हो ?"


" क्यो क्या हुआ बेटा ? थोड़ा थक गयी हूं |"


"कितनी बार कहा है कि काम कम किया करो। तुम हो कि मानती ही नही |"


" कितना कहती हू कि जल्दी से एक बहू ले आ पर तू है कि सुनता ही नही |"


" अरे माँ अबचुप भी हो जाओ जब देखो शादी की रट लगाए रहती हो | और जब शादी हो जाएगी तो फिर आपकी शिकायतों का दौर शुरू हो जाएगा |"


" नहीं नहीं मै बहू को बहुत प्यार करुँगी | जब वह अपना घर छोड़ कर आएगी तो हमे भी उसे बेटी सा प्यार देना पड़ेगा तभी तो वह मुझे अपनी माँ समझेगी |"


मेरी बात का उत्तर देते हुए राहुल बोला "देखो न पड़ोस वाली ऑन्टी अपनी बहु को कितना परेशान करती है मुझे तो बहुत ही बुरा लगता है|"


" हाँ सही कहते हो बेटा..... मुझे तो उस की बहुत ही चिंता रहती है | सही बात तो ये है बेटा उनको मनचाहा दहेज नही मिला नजाने ये दहेज की कु प्रथा हमारे समाज मे कब समाप्त होगी ?" सोचते सोचते मेरा मन भारी सा हो गया |

" चलो उठती हू" "अरे सुनती हो सुधीर की मॉ, एक प्याली चाय तो पिलाओ"


"अरे बनाती हूँ , कभी साहब आप भी हमे अपने हाथ की चाय पिला दिया कीजिये"


"अरे श्रीमति जी आपके हाथ में तो जादू है |"


अपनी प्रशंसा सुन कर झूठी नाराजी दिखाते हुए चाय बनाने चल दी| मेंने इनके अच्छे मूड को देखते हुआ अपने मन की बात कह दी "सुनो जी अब तो जल्दी से सुधीर की शादी कर दो और फिर मै भी बहू के हाथ की चाय पिऊ"| बड़े प्यार से ये देखते हुए बोले " चाय तो हम आपके ही हाथ की ही पिएंगे आपकी चाय की बात ही अलग है "

"चलो बहुत हो गयी तारीफ अरे हाँ याद आया आज बाज़ार जाना है रसोई का समान लाना है | अच्छा मैं चलती हू आज मैं अकेले ही जाउंगी आपके साथ मेरी खरीदारी नही हो पाती |" सच तो ये है कि ये मोलभाव नही करने देते और जब तक महिलायें मोलभाव न करे मन संतुष्ट नही होता |

रास्ते में शीला मिल गयी अचानक देख कर मन प्रफुल्लित हो गया " अरे बहुत दिनों बाद मिली हो कहाँ थी इतने दिनों से"


"अरे क्या बताऊ मीना, बहुत परेशांन थी |" अचानक याद आया उसकी एक सुंदर सी बेटी भी थी मैने पूछा "तुम्हारी बेटी कैसी है ?" सुनते ही उसका चेहरा बहुत दुखी हो गया। बोली "क्या बताऊ बेटी को खूब पढ़ाया और बहुत ही अच्छे घर शादी की | कुछ ही दिनों बाद उनकी दहेज की मांग शुरू हो गई कहाँ तक उनकी मांगे पूरी करते. ब तो वो बेटी को मारने पीटने भी लगे इस दुख से इनकी तबीयत खराब रहने लगी . तब लगा क्या बेटी के पैदा होने पर माता पिता इसीलिये लिये दुखी होते है | हम ने अपनी बेटी को कैसेभी उस नर्क से निकाला और तलाक ले लिया । अच्छा हुआ जो बेटी घर वापिस आ गई । मन दुखी रहता है उसे देख कर बेटी का चेहरा मुरझा गया है। सारी ज़िन्दगी कैसे गुजारेगी हमारे बाद उसका क्या होगा ?...बस यही दुख हमे अंदर ही अंदर बिचलित कर रहा है" इतना कह कररो पड़ी सच अपने बच्चों का दुख कितना दुखदायी होता है ।मैंने उसे ढाढस बधाया । कहा "कल तुंम बेटी को लेकर हमारे घर आओ । उसको भी अच्छा लगेगा । अब वह क्या कर रही है?" शीला बोली कि कॉलेज में पढ़ा रही है। मैंने कहा चलो अच्छा है सही है आजकल लड़की को पढ़ाना बहुत ही ज़रूरी है।"अच्छा अब चलती हु काल घर जरूर आना मैं इंतज़ार करुँगी।"


घर आकर बस दूसरे दिन का इंतज़ार करती रही। दूसरे दिन शाम को वो तीनो आये। बेटी को देख कर मैं तो चकित रह गयी । लगता है भगवान ने उसे फुरसत में बनाया होगा । काश ऐसी बहू मुझे मिल जाती पर मैंने अपने को सम्भाला अरे क्या सोचने लगी ?.....क्या कमी है मेरा बेटे में? बस इतनी देर में मेरा लाड़ला भी आ गया। कही उसे वह पसन्द न आ जाए इस डर से मैं बिटिया को कमरे में ले गयी।पर कहते है गुलाब की खुशबू भला कहाँ छिपती है?.... लेकिन लग रहा था कि सुधीर और उसके पाप को वह मन भा गयी । जब वो जाने लगे तो सुधीर बोला "माँ में आंटी को घर कार से छोड़ कर आता हू' । उनके जाने के बाद सुधीर के पाप बोले ''कितनी प्यारी बच्ची है पता नही कुछ लोग बहुओ के साथ इस ऐसा क्यो करते है? क्यो न हम ऐसे अपनी बहु बना ले?" सुनते ही मेरा चेहरा गुस्से से तमतमा गया है बस यही तो मेरे भाग्य में रह गया है। इतने अच्छे रिश्ते आ रहे है, सारे समाज में मेरी क्या इज़्ज़त राह जाएगी। लोग यही कहेंगे कि इनके लड़के में कोई कमी होगी तभी तो तलाकशुदा से शादी कर ली ।


सुधीर के पापा बोले "कैसी बाटे बातें करती हो, भला उस बेटी का क्या कसूर है? तुंम पढ़ी लिखी होकर कैसी बातें करती हो? अब समय बदल गया हमें अपनी सोच बदलनी होगी । ज़िन्दगी भर यही सोचते है कि लोग क्या कहेंगे? बल्कि हमे सोचना चाहिए कि लोग समाज में इस से सीख लेंगे और अपने विचारो को बदलेंगे। लो सुधीर भी आ गया लो भई ऐसी से पूछ लो". वो पूछने से ही पहले ही बोला ' माँ आप रोज़ यही कही थी कि जल्दी से बहु ले आओ में सोच रहा हु कि आपकी बात अब मैन मान ही लू"।


"अरे बतां न कौन सी लड़की पसंद है तुझे?" मॉ वही जिसकी अभी आप बात का रही हैं। सुनकर चुपचाप सोने चली गयी। रातभर सोई नही लगा दोनों ठीक तो कह रहे है। यदि हम सही है तो हम लोगो की क्यो परवाह करे? दूसरे दिन मेने कहा कि मैं शीला के घर जा रही हू । इन्होंने मुस्कुरा कर बड़े प्यार से देखा मेरे पास आकर बोले "सच तुंम इतनी अच्छी हो कि दिल चाहता है कि........" मै शर्मा गयी बोली "चलो छोड़ो भी अबआप ससुर बनने वाले है। अरे मेरे साथ आप भी चलिए न रास्ते में मिठाई भी तो लेनी है । "


"हाँ चलते है अब आपकी बात तो हम टाल ही नही सकते ।


"चलो भी तुम्हारा लाड़ला कर कार में इंतज़ार कर रहा है" मै खुशी से आत्म विभोर हो रही थी ।पर फिर भी बस मन में एक सवाल था


.......कि कुछ तो लोग कहेंगे.


"अरे क्या सोच रही हो राहुल की मॉ जानती हो आज मिठाई भी दोगुनी लेनी पड़ेगी तुम्हारी होने वाली बहू को को अवार्ड मिला है '


"किस बात के लिये" मै तो आतुर हो गयी ।


"परसो उसे निर्धन बच्चियों को साक्षर करने के लिये उसके विद्यालय में अवार्ड दिया जाएगा।" सच में कितनी प्रतिभावान है हमारी बहु अरे तो हमारा बेटा भी किसी से कम है क्या ? पता नही क्यो मॉ का मन हमेशा भयभीत रहता है लगता की कही किसी की नज़र न लग जाए ।


त्रिशला।

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