आज हम बड़े हो गए हैं, हम में से बहुत से नौकरी करते हैं औऱ हमारे पास पैसे भी होते हैं लेकिन वो सुकून नहीं होता है जो बचपन में हुआ करता था। बचपन बहुत ही खूबसूरत होता है और इस उम्र में हम हर वो चीज करते हैं जो करने हम करना चाहते हैं बिना ये सोचे कि लोग क्या कहेंगे और लोग क्या सोचेंगे। बचपन सबसे सुहाना होता है जब हम बड़े सपने देखते हैं और हमारी उस सोच को हमारे माता-पिता पंख दे देते हैं जिससे हम अपने जीवन में आगे बढ़ते हैं। बचपन से ही जुड़ी ये कविता है जो आपको पसंद आएगी।
यादें बचपन की
कल याद आ गया मुझको भी अपना बचपन
खुश हुई बहुत पर आँख तनिक सी भर आयी
गांवों की पगडण्डी पर दिन भर दौड़ा करती
कुछ बच्चों की दीदी थी, दादी की थी राजदुलारी
रोज़ सुनती छत पर दादाजी से परियों की कहानी
झलते रहते वो पंखा पर थक कर मैं सो जाती
घर कच्चे थे चाची लीपा करती गोबर से आंगन
मै नन्हे कदमों से उस पर थाप लगाती
फिर भी वे हँस कर लाड़ो कह कर मनुहार लगाती
खेतों पर सरसो जब खिलती मन आल्हादित हो जाता
तितली देख डर जाती मुझसे मै उसके पीछे दौड़ लगाती
माँ कान पकड़ कर लाती घर मुझको कहती बार बार
लाड़ो तुंम लड़की हो चूल्हा चौका सीखो
पर आज़ाद थी में तब आज सा दरिंदो का डर नही था
कितने प्यारे थे वो दिन जब दादी मुझको ढूंढ ढूंढ थक जाती
कब तक याद करू वो दिन बस आंख मेरी भर आती।
त्रिशला जैन