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बहार

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फागुनी बहार"छंदमुक्त काव्य"मटर की फली सीचने की लदी डली सीकोमल मुलायम पंखुड़ी लिएतू रंग लगाती हुई चुलबुली हैफागुन के अबीर सी भली है।।होली की धूल सीगुलाब के फूल सीनयनों में कजरौटा लिएक्या तू ही गाँव की गली हैफागुन के अबीर सी भली है।।चौताल के राग सीजवानी के फाग सीहाथों में रंग पिचकारी लिएहोठों पर मुस्का

ये कहाँ से आ गयी बहार है ,बंद तोमेरी गली का द्वार है।

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रंग बिरंगे फूल खिले देखकर मन भी खिल जाता है. चेहरे पर मुस्कान आ जाती है. फूल है भी तो प्यार मोहब्बत की निशानी. इसलिए कवियों और शायरों की भी पसंद हैं. पूजा अर्चना के लिए भी फूल शुभ हैं. स्वागत के लिए चाहिए फूल माला, शादी के लिए चाहिए फूलों

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