22 जुलाई 2022
32 फ़ॉलोअर्स
+1918840268650D
दर्पण जो आईना होता है,पता इंसा को यह होता है।आईना जिसमें अक्स यूं,कहते हमारा ही होता है।।कहतें है दर्पण कभी भी,हमें झूठ नहीं बोलता।चेहरा कितना भी झूठ बोले,दर्पण कभी झूठ नहीं बोलता।।दर्पण के सौ टुकड़े
किस्मत में क्या लिखा हुआ,एक पल के लिए मान लो।लेना है अगर फैसला तुमको,एक पल के लिए मान लो।।शायद किस्मत में ही नहीं,फैसला लेकर तो देखो।शायद किस्मत बदल जाए,फैसला लेकर तो देखो।।फैसला न लेना कमजोरी है,की क
ऐ वीरों लड़ाई के बाद,कैसे करूं तेरा शुक्रिया,हर उस क्षण का शुक्रिया,जो तूने सौंप दिया देश को,हर एक स्वांस का शुक्रिया,जो तूने दिया देश को,थामा है तुमने,एक दूजे का हाथ,हाथ को थामने का शुक्रिया,जो एकता
पिता धूप होता है,मां छाव होती है,पिता आकाश तो,मां धरती होती है,पिता सख्त है अगर,तो मां नरम होती है,इस निस्वार्थ प्रेम का,कोई मोल नहीं है,कद्र करो उनकी,भले पिता या माता,पिता सख्त मिजाजीसर पर हाथ हो,उनक
विचलित मन काहे को तू,क्यों इतना अधीर हुआ रे।मन की शांति भंग हुई,काहे मन तू अधीर हुआ रे।।सोच में शामिल है तू,है शामिल तू विचारों में।दूर नहीं एक पल भी,बेचैन हमेशा विचारों में।।उत्कृष्टता की झलक दिखा,वि
बिखरे है फूल बागों में,जैसे बागों में बहार है।महक उठा आशना हमारा,जैसे बागों में बहार है।।फूल दिए दिए हमें ऐसे,उनकी खुशबू से महक उठे।बगिया हमारे घर की महकी,उनकी खुशबू से महक उठे।।फूल से खिलते बच्चे हमा
प्रभु कृपा हम पे,इतनी बनाए रखना।सही रास्ते पे,हमको चलाए रखना।।मन दुखे न किसी का,कृपा इतनी बनाए रखना।प्रभु कृपा हम पे,इतनी आस बनाए रखना।।रिश्ते न बिगड़े कभी,मेल इतना बनाए रखना।समझ और समझदारी हो,कृपा इत
जिंदगी आगे बढ़ने का नाम,यूं तो रुकने का मतलब नहीं।रुक गए तो स्थिरता होती,अस्थिर रुकने का मतलब नहीं।।खुद ही लड़नी पड़ेगी,अपनी तो लड़ाई उसकी।होता रुकने का मतलब नहीं,आगे बढ़ती लड़ाई उसकी।।दिशा निर्देशन स
बारिश की बूंदें छोटी हो,लगातार बरसना लेकिन।नदियों का बहाव बन जाता,लगातार बरसना लेकिन।।बारिश की बूंदों से जलस्तर,जलस्तर से बनती है नदिया।सैलाब उमड़ता इस कदर,सागर में मिलती है नदिया।।नदिया मिलती ह
रिमझिम है तो सावन गायब,बच्चे हैं तो बचपन गायब।क्या हो गई तासीर खुदाया,अपने है तो अपनापन गायब।।चक्रव्यूह रचना अपनों से सीखो,अपने ही अपनों को सिखाते।विश्वास न करना तुम कभी,अपने ही ये तुमको सिखाते।।संभाल
ओस की बूंदें धरा पर,ऐसे पल्लवित होती हैं।कदम धरा पर पड़ते ही,तन मन स्फूर्ति भरती हैं।।ओस की बूंदें पंखुड़ीयों पर,पुष्प भी खिल उठता है।कोमल कोमल सी कोपलें,खुशबू से मन खिल उठता है।।आसमान से गिरी धरा पर,
न कल की फिक्र होती,न आज का चिंतन करते।मस्ती में झूमते बच्चे प्यारे,कागज़ की कश्ती बनाते।।बारिश का मौसम सुहाना,वर्षा ऋतु का आगमन।हमारी कागज़ की कश्ती,बारिश में लहराती कश्ती।।बच्चे भी मचलते रहते,कागज़ क
रिमझिम रिमझिम बरसो रे,आयो सावन का महीना।सावन की फुहारें झिर-मिर,मनभावन सावन तिर- मिर।।रिमझिम रिमझिम बरसो रे,धरती भीगे तरुवर भीगे।बारिश की बूंदों से भीगे,त्रप्त धरा की माटी भीगे।।रिमझिम रिमझिम बरसो रे,
हे त्रिपुरारी नीलकंठ महादेव,जग हितकारी अविकारी प्रभु।नागपाश गले में साजे तुम्हरे,सिर पे गंगे और चंद्र प्रभु।।संग गौरा गणेश कार्तिकेय,पर्वत कैलाश विराजै प्रभु।आयो श्रावण मास पावन,पुष्प चरणों में अर्पित
सुमिरन करो प्रभु को,लगे नश्वर जग संसार।माया मोह के छूटे बंधन,लगे नश्वर जग संसार।।जिंदगी है दो पल की,सिर्फ नाम प्रभु का लीजै।पार लगेगी नैया तुम्हरी,इक बार सुमिरन कर लीजै।।आया है रे तू मनवा,देखन तू
सुख और उम्र का तालमेल,आपस में कब बनता है।कैसे उम्र ये कटती रहती,सुख दुःख जीवन में रहता है।।सुख और समृद्धि जीवन में,शांति जीवन में लाती है।आशा और निराशा के बीच,भंवर में डोलती रहती है।।सुख कब मिलता जीवन
कागज़ का टुकड़ा जिस पर,कलम,स्याही, दवात का पहरा।शब्दों का प्रयोग जहां तक,मनस्थिति आंकलन का पहरा।।कागज़ का टुकड़ा जिस पर,लेखनी से विचार सजाते।भावों और विचारों का मंथन,प्रयासों से अपना लेखन सजाते।।कागज़
भोर भई निद्रा भरपूर, माता दुलराती रहती।उठो लाल आंखें खोलो, निद्रा फिर दूर भगाती।। 1स्नान ध्यान से निवृत्त हो, पाठशाला को तुम जाओ।बालपन इतराता इठलाता, अब मां तुम गोद उठाओ।
आया सावन पावन मास। हरियाली तीज जागी आस।। चहुंओर हरियाली अब छाई। हरियाली तीज की ऋतु आई।। सुहागन स्त्रियां व्रत पूजन। कुवांरी भी सुघड़ वर पूजन।। तरुवर पर भी&nbs
जीवन है एक अविरल धारा,सरल सुगम शांत सम गामी।होती है यदि उत्तेज उद्विग्न,उच्छखल जीवन पथ गामी।।जीवन है एक अविरल धारा,निश्छलता से ओत प्रोत मन।यदि जीवन हो विरह वेदना,दुख संतप्त में गुजरे जीवन।।जीवन न हो य