मेरी स्वरचित कविताओं का संग्रह
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अबोध मन सा बचपन,निश्छल चंचल चितवन।पुष्प अंकुरित सा कोमल,ओस की बूंदों सा मनभावन।।घर आंगन महकाता बचपन,नादान परिंदे जैसा बचपन।गुलशन गुंजाएमान बालमन,बिन बात मुस्काए बालमन।।सूरज सा दमके बालमन,निश्छल भोला भ
मैं हूं तुम्हारी हिंदी भाषा,इसको तुम पहचान लो।अस्तित्व हूं तुम्हारा मैं,मुझको तुम पहचान लो।।कर्म हूं और कृति भी मैं,अस्तित्व है यूं मुझसे जुड़ा।मर्म हूं और व्यथा भी मैं,अस्तित्व तुम्हारा मुझसे जुड़ा।।
आज का यह युवा भारत,लोकतांत्रिक मुख्य आधार।राजनीति और विकास पर,युवा अग्रसर और है तैयार।।आज का यह युवा भारत,शक्ति से यह परिपूर्ण है।देश स्वाधीनता इसकी,योगदान बेहतरी सम्पूर्ण है।।आज का यह युवा भारत,मार्ग
अजब गजब दुनिया का मेला। कभी रिश्ते नातों का झमेला। कभी भाई अरु बहन का बंधन, कच्चे धागे का ये खेल निराला।। रिश्ते नातों की डोर का खेला। लताएं की चढ़ती बेल का रेला। कच्चे धागे दिखते जैसे ये
समय के खिलाफ कोई जाता नहीं। गीता का ज्ञान किसी को भाता नहीं। नदियों की लहरें वेग निर्बाध लिए हुए, विपरीत लहरों के इंसा भी तैरता नहीं।। समय की धारा निज अपना रुख लिए। कृष्ण ने अर्जुन क
अपनी अपनी दुनिया में, मगन रहते हैं भाई। नहीं टोहते दुख दूजे का, जतन नहीं है साई। हर शख्स रहता अलग, जाने न पीर पराई। खोया है अपनी दुनिया में, अपनी दुनिया सजाई।। छाया है डिजिटल जमाना,