बचपन से देखता आया हूं। हम भारतीय बहु से सारी उपेक्षा रखते हैं । की वो हमारे हर आदेश को पूरा करे । लेकिन अपनी बेटी के ससुराल में हर झगड़े में उसकी साश को जिम्मेदार मानते हैं, लेकिन बेटी को ये क्यों नहीं सिखाते ये वो मा बाप जिन्होंने अपने जिगर के टुकड़े के लिए तुम्हे बहु के रूप में चुना है । उन्होंने भी कुछ सपने देखे थे। जैसे हर मां बाप देखते हैं।
अक्सर आपने गाड़ियों के पीछे लिखा देखा होगा "बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ" तो फिर हम अपनी बेटियों को क्यों कम पढ़ाते हैं।उनको आखिर ये क्यों बोलते हैं ससुराल में जाके चूल्हा चौका करना है।
हर पिता अपनी बरसों को कमाई बेटी को पढ़ाने नहीं ,उसके दहेज के लिए एकत्रित करते हैं। आखिर करें भी क्यों नहीं सरकार ने दहेज को बैन कर रखा है लेकिन ये सब किताबी और खयाली जुमला है।
हमारे समाज में दहेज की परंपरा फिक्स्ड है , अगर लड़का नोकरी सरकारी करता है तो उसका रेट 25 से 40 लाख होगा ।
सामान सारा लिस्ट बनाके दिया जाता है और गाड़ी अलग डिमांड की जाती है।
हमारे समाज में हर बेटी के बाप को हर समय बेटी की सुरक्षा की चिंता रहती है। और बेटी के पैदा होने से ही दहेज की जिम्मेदारी।
अगर हम समाज में बेटियों को सुरक्षा और दहेज जैसी कुरीतियों को खत्म कर पाएंगे उस दिन हर बाप के लिए बेटी अभिशाप नहीं आशीर्वाद होगी।
अरुण प्रताप सिंह तोमर
पिता का नाम श्री विद्याराम सिंह तोमर