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भाग 1

28 मार्च 2024

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"कैसी हो माँ ?"
आज एक महीने बाद आकाश ने अपनी मां को फ़ोन किया था
"कैसी रहूंगी? 

क्या मतलब है तुमको अपनी मां से ? पुरी जिंदगी कष्ट सह के तुमको पाला पोसा। आज तुमको मां को फ़ोन करने की भी फुर्सत नही है।

विमला देवी गुस्से मे बोलती जा रही थी और आकाश चुपचाप उनकी बात सुन रहा था । बीच बीच मे विमला देवी रो भी रही थीं।
आकाश उनको चुप कराने लगा तभी इसी बीच विमला देवी ने अपनी मांग रख दी की रजनी के गृह प्रवेश उत्सव में उसके पुरे घर के लिए कपड़े और रजनी के लिए सोने का सेट बनवाना है । तुमको दो लाख रुपए भेजना होगा बाकी हम संभाल लेंगे । मां को रोते देखकर आकाश ने कुछ नहीं कहा और दो लाख रुपए मां के अकाउंट में भेज दिया । 

सुनकर आपको लग रहा होगा कि आकाश बेहद स्वार्थी बेटा है और अपने मां बाप को पूछता भी नही। लेकिन इस कहानी में स्वार्थी बेटा नहीं बल्कि मां है ।

विमला देवी एक गरीब घर की बेटी थीं। लेकिन पैसे का लालच उनमें कूट कूट कर भरा था। पिता ने एक सरकारी ऑपरेटर से उनकी शादी कराई । विनोद जी उनके पति जो भी कमाते थे सब विमला देवी के हर मांग को पुरा करने मे लगा देते थे । विमला जी बहुत तुनकमिजाज और दबंग महिला थीं। देखने मे बहुत सुंदर और बाहरवालों के साथ बहुत सभ्यता से पेश आती थी। हालांकि अपने पति को बहुत अपमान करती रहती थीं।
विनोद जी स्वभाव से बहुत शांत थे और पत्नी को कभी कुछ बोलते नहीं थे । उनको पता था कि अगर वो कुछ बोलेंगे तो विमला जी रोने धोने लगेंगी और तबियत खराब कर लेंगी ।

 समय बीता और उनलोगो की पहली संतान आकाश का जन्म हुआ । आकाश देखने में बिल्कुल विमला जी जैसा था । लेकिन स्वभाव में अपने पिता जैसा था । विमला जी अपने बेटे को बहुत प्यार करती थी । इसी तरह उनका जीवन चल रहा था । इसी बीच उनकी बेटी रजनी का जन्म हो गया । रजनी यूं कहे तो विमला जी का अक्स थी । वही चेहरा वही तुनकमीजाजी वही घमंड । 

आकाश और रजनी दोनो पढ़ाई में अच्छे थे लेकिन जब बात शहर के सबसे बड़े स्कूल में दाखिले की आई तो आकाश टेस्ट मे फेल हो गया और उसका दाखिला उस स्कूल मे नही हो पाया वही रजनी को उसी स्कूल में दाखिला मिल गया । 

विमला जी रजनी के दाखिले से खुश थी वही आकाश से गुस्सा थी । छह वर्षीय आकाश समझ नही आ रहा था कि मां उससे बात क्यों नहीं कर रही है।

दोनो बच्चे अपने स्कूल जाने लगे । विनोद जी अपने परिवार को हर जरूरत को पूरा करते थे । विमला जी घर के खर्चों को तरफ ध्यान न देकर जब तब नए गहने और सारी खरीदने को उत्साहित रहती थी। विनोद जी उनको बिना कुछ कहे उनकी हर मांग को पूरी करते जाते थे । 

शायद यही गलती विनोद जी के बेटों पे भारी पड़ने वाली थी । 
 
शेष अगले भाग में । 




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रचनाएँ
अभागा बेटा
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नमस्कार! मैं सुचेता अपनी पहली कहानी लिख रही हूँ। यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है। यह कहानी है एक बेटे की जिसे कभी अपनी माँ का प्यार नहीं मिला। कभी कभी हमारी इच्छायें हमे अपनों से दूर कर देती हैं। यही इस कहानी का सार है। आशा करती हूँ कि आपको मेरी कहानी पसंद आये।

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