अखिल भारतीय कवि मंचों पर आठ राज्यों के कई शहरों में काव्य पाठ किया, कविता मंचों पर निरंतर सक्रिय
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भवानी तेरे रूप की उतारते हैं आरती। हे आदिशक्ति कालिका, भवानी मातु भारती।। कुचक्र चक्र को मिटाती, तू समय की चालिका। दुरात्मा का खात्मा, तू करती न्याय पालिका।। प्रचंड रूप धर जरा तू, आज मातु कालिका। निशा
दोहेरूप चतुर्दशी के दोहारूप चतुर्दशी आज है, निर्मल कीजे देह।उवटन मल स्नान कर, खूब बढ़ाएं नेह।।नरक चतुर्दशी भी कहें,इसे बहुत से लोग।आज नहाए जो नहीं, उसको व्यापें रोग।।पावन आप बनाईए, घर आंगन को लीप
क्या भरोसाएक गजल आपकी खिदमत में क्रूरतम हाथों का संम्बल क्या भरोसा । आज सा स्नेह हो कल क्या भरोसा।। बदलते ऋतु चक्र का सँदेश है ये। पेड पर कल भी लगें फ़ल क्या भरोसा।। मेघ न
याद आता है।गीत तुम्हारे साथ में गुजरा, जमाना याद आता है। जो मिलकर गुनगुनाते थे, तराना याद आता है।। कभी जब बैठते तन्हाई में हम झील के तट पर। उमड़ पड़ते थे सब जज्बात तेरी चाह की रट पर।। कभी आभास मेघों
<div>आपकी नजर</div><div><div align="left"><p dir="ltr">गज़ल<br> कहां तरक्की बोलो र
<div>दोहे</div><div>मेरे भोलेनाथ।</div><div><div><br></div><div><span style="font-size: 16px;">श्रृद
<div>इक्हत्तर की भूलें।</div><div><div align="left"><p dir="ltr">घनाक्षरी छंद<br> एक लाख सैनिकों को,
<p>आईना</p> <p>मुक्तक</p> <p>गरीबी का नहीं आभास होता धन के दर्पण में।</p> <p>मगर अन्याय दिखता है, हर
<p>अमानत में</p> <p><br></p> <p>घायल होते देखे हमने, कुछ परबाज अमानत में।<br> <br> डाल रही हैं
<p>कहानी</p> <p><br></p> <p>यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है, समानता संयोग से हो सकती है।<br> <br> राकेश