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अपने घर में दीप

23 अक्टूबर 2022

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दोहे
रूप चतुर्दशी के 
दोहा
रूप चतुर्दशी आज है, निर्मल कीजे देह।
उवटन मल स्नान कर, खूब बढ़ाएं नेह।।

नरक चतुर्दशी भी कहें,इसे बहुत से लोग।
आज नहाए जो नहीं, उसको व्यापें रोग।।

पावन आप बनाईए, घर आंगन को लीप।
सांझ ढले उजियारिए, अपने घर में दीप।।

दया करें धनबंतरी, सबको रखें निरोग।
रोग मुक्त वसुधा रहे, ऐसा बने सुयोग।।

रखे न जो भी स्वच्छता, उसको करो सतर्क।
आज नहीं निर्मल हुआ, तो निश्चित है नर्क।।

लिपे पुते घर द्वार में, कीजे खूब प्रकाश।
दीप प्रज्जवलित कीजिए,कर उन्नति की आस।।

श्रृद्धा भक्ति के संग में, करें प्रभू का ध्यान।
फिर हिल मिल कर खाइए, मन भावन पकवान।।

आंगन की रंगोलियों, का निखरा है रूप।
रंग बिरंगी आकृती, लगतीं बहुत अनूप।।

दीपोत्सव का आज है, द्वितीय सुहाना पर्व।
धर्म सनातन कर रहा, संस्कार पर गर्व।।

आतिशबाजी कर रहे घर में बालक वृंद।
अभिभावक भी ले रहे, आज पूर्ण आनंद।

सावधानियां राखिए, रह बच्चों के संग।
रावत कहीं न भूल से, पड़े रंग में भंग।।
रचनाकार ✍️
भरत सिंह रावत भोपाल
2847/20/11/13/03

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