गज़ल
कहां तरक्की बोलो रोकर मिलती है।
फसल खेत को यारो बोकर मिलती है।।
चालाकी भी थोड़ी बहुत जरूरी है।
सीधेपन से केवल ठोकर मिलती है।।
सपने देखे और भोर तक भूल गए।
सपनों की दुनिया क्या खोकर मिलती है।।
व्यर्थ यहां पर आकर चले नहीं जाना।
ये दुनिया कितना कुछ खोकर मिलती है।।
तन धो लोगे फिर मैला हो जाएगा।
निर्मलता तो मन को धोकर मिलती है।।
नेक इरादे लेकर कदम बढ़ाओ तुम।
मंजिल भी तब अपनी होकर मिलती है।।
एक हाथ जो "रावत" कभी बढ़ाओगे।
मेंहनत कर को देकर दो कर मिलती है।।
रचनाकार ✍️
भरत सिंह रावत
भोपाल मध्यप्रदेश