गीत
तुम्हारे साथ में गुजरा, जमाना याद आता है।
जो मिलकर गुनगुनाते थे, तराना याद आता है।।
कभी जब बैठते तन्हाई में हम झील के तट पर।
उमड़ पड़ते थे सब जज्बात तेरी चाह की रट पर।।
कभी आभास मेघों का हुआ करता था घूंघट पर।
कभी उंगली फिराना वो तुम्हारा केश की लट पर।।
अभी भी हुश्न का मुझको खजाना याद आता है।
जो मिलकर गुनगुनाते थे तराना याद आता है।।
कभी मैं रूठ जाता था, तो तुम मनुहार करतीं थीं।
मुझे आगोश में लेकर बहुत ही प्यार करतीं थीं।।
अदाओं से रिझा कर तुम मुझे लाचार करतीं थीं।
वदन पर सिर्फ मेरे नाम का श्रृंगार करतीं थीं।।
वो तन्हाई में नजरों का मिलाना याद आता है।
जो मिलकर गुनगुनाते थे तराना याद आता है।।
बड़ी उलझी हुई ये जिंदगी की जंग है बांकी।
मैं तन्हा चल रहा हूं, पर तुम्हारा संग है बांकी।।
बड़ा गमगीन रहता हूं, खुशी का रंग है बांकी।
जो रावत था तुम्हारे साथ में, वो ढंग है बांकी।।
तुम्हारा साथ आकर लौट जाना याद आता है।
जो मिलकर गुनगुनाते थे, तराना याद आता है।।
रचनाकार ✍️
भरत सिंह रावत
भोपाल मध्यप्रदेश