अमानत में
घायल होते देखे हमने, कुछ परबाज अमानत में।
डाल रही हैं डाका दुनिया, देखो आज अमानत में।
वृक्ष काट कर दुनिया वाले, हवा बिगाड़ रहे हर पल।
वसुधा का दोहन करते हैं, गिरता जाता है भू जल।।
उद्योगो की बाढ़ आई है, बिगड़े साज अमानत में।
डाल रही हैं डाका दुनिया, देखो आज अमानत में।।
वनचर सारे मारे-मारे , ढूंढ़ रहे सुंदर जंगल।
किंतु मदारी पकड़ उन्हीं से, करवाते हैं अब दंगल।
भालू बंदर सब दिखते हैं, अब नाराज अमानत में।
डाल रही हैं डाका दुनिया, देखो आज अमानत में।।
नदियों का जल हुआ प्रदूषित, शीतल दिखता नीर नहीं।
जलचर सारे घबराते हम, समझें उनकी पीर नहीं।।
पावनता का नहीं कहीं, दिखता अंदाज अमानत में।
डाल रही हैं डाका दुनिया, देखो आज अमानत में।।
रावत जो कुदरत ने बख्शा, हमने उसका हृास किया।
हमें धरोहर मिली हुई थी, हमने उसका नास किया।।
आज खयानत करते हमको, आई ना लाज अमानत में।।
डाल रही हैं डाका दुनिया, देखो आज अमानत में।।
रचनाकार ✍️
भरत सिंह रावत
भोपाल मध्यप्रदेश