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ज़िंदगी के रंग कई रे

22 मार्च 2022

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"ज़िंदगी के रंग कई रे" (अनुसंधान)

और चंदा बिरजू के साथ चल दी अपनी छोटी सी प्यारी सी दुनिया में वापस आज़ादी की साँस लेने।
बिरजूने माँ के चरण छुएं और घर ले आया। सालों बाद चंदा ने बाहर की दुनिया में कदम रखा था तो आँखें भर आई। अमन ने आज बिरजू को अपनी माँ के साथ अकेला छोड़ दिया दोनों माँ बेटा घंटो बातें करते रहे, और बिरजू ने अमन के साथ मिलकर एक प्लान बनाया वो अपने पिता गोपाल को सरप्राइज़ देना चाहता था, एक गरीब, बेबस, लाचार बाप को सालों से बिछड़ी हुई पत्नी का तोहफा देकर। अमन ने गोपाल को फोन करके मुंबई बुलाया ये कहकर की बिरजू की तबियत ठीक नहीं तो जल्दी आ जाए। बिरजू की तबियत खराब है सुनकर गोपाल भागा दौडा मुंबई जाने के लिए निकल पड़ा। बिरजू ने चंदा को बोला माँ में बापू को लेने स्टेशन जा रहा हूँ एक सरप्राइज़ तो वहीं मिल जाएगी मुझे देखकर दूसरी जब बापू और मैं घर आए तो आप छुप जाना और चुपके से पानी लेकर आना। चंदा ने कहा ठीक है वो भी अपने बिछड़े हुए नरम दिल और सहनशीलता की मूरत समान पति से मिलने बेकरार थी। 
बिरजू स्टेशन चला गया, चंदा आज फिर से सालों बाद साज शृंगार करके सज-धज कर तैयार हुई गोपाल से मिलने, गोपाल की ट्रेन आ गई जैसे ही गोपाल ट्रेन से उतरा बिरजू सामने आ खड़ा हुआ तो गोपाल सन्न रह गया, अरे बचवा तू तो ठिकठाक है फिर मुझे अचानक झूठी ख़बर देकर क्यूँ बुलाया। 
अरे बापू आपकी बड़ी याद आ रही थी ऐसे ही बुलाता तो आप अपने गाँव और खेत को छोड़कर थोड़ी आते। अब आपको कहीं नहीं जाने दूँगा बहुत काम कर लिया अब आराम से अपने बेटे के राज में हंसी खुशी ज़िंदगी बिताईये अब तो मेरा धंधा भी बढिया चलने लगा है।
गोपाल बिरजू की बातों से खुश होकर बोला बेटा काश तेरी माँ भी साथ होती तो तेरी तरक्की देखकर बहुत खुश होती, और दोनों बाप बेटे की आँखें नम हो गई। 
इतने में घर आ गया गोपाल को सोफ़े पर बिठाकर बिरजू अंदर आया माँ को तैयार देखकर खुश हुआ ओर बोला, माँ चलो आज सालों बाद मैं अपने माँ-बाप को एक साथ देखना चाहता हूँ।
चंदा एक धड़क चुक गई कैसे सामना कर पाएगी गोपाल का, कितने दु:ख दिये है मैंने उस भले आदमी को क्या मुझे माफ़ कर पाएँगे बिरजू के बापू, मन में अनगिनत सवालों के साथ चंदा धीरे से बाहर आई पानी का प्याला गोपाल को देकर बोली कैसे हो आप।
गोपाल के हाथ से प्याला छूट गया सालों बाद चंदा की आवाज़ एक अनजाने अकल्प्य मोड़ पर सुनकर, आँखें फ़ाड़कर देखता ही रहा शब्द हलक में ही अटक गए चंदा त त तुम यहाँ कैसे...कि बिरजू बाहर आकर बोला बापू सबकुछ बताता हूँ पहले ये बताईये कैसा लगा मेरा सरप्राइज़ ? गोपाल तो अपना परिवार पूरा पाकर खुशी से कुछ बोल ही नहीं पा रहा था। चंदा गोपाल के पाँव पकड़ कर रोते हुए माफ़ी मांगती रही गोपाल की आँखों से आँसूओं का सैलाब बहने लगा चंदा को उठाकर गले लगा लिया, कुछ देर सालों के बिछड़े तीनों आँसुओं के दरिया में नहाते मिलन का जश्न मनाते रहे। 
मन हल्का होते ही खैर खबर पूछकर अपनी-अपनी दास्ताँ कहते रहे। चंदा को विश्वास नहीं हो रहा था की वापस उसने अपने परिवार को पा लिया है, बार-बार कान्हा जी का शुक्रिया अदा कर रही थी। 
हाँ इत्तेफाक भी होते रहते है ज़िंदगी में ज़िंदगी के खेल निराले है। आज एक बिछड़े परिवार को कसौटी की कगार से खिंच निकाल कर वापस खुशहाली की क्षितिज पर बिठा दिया था ज़िंदगी ने, तभी तो कहते है "ज़िंदगी के रंग कई रे"
(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)#भावु
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ज़िंदगी के रंग कई रे
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कभी-कभी इंसान अपेक्षाओं के पीछे भागते तमस की गर्ता में चले जाते है जहाँ से उभरना नामुमकिन होता है किसीकी किस्मत अच्छी होती है जिसे ईश्वर कृपा से कोई उस दलदल से बाहर निकालने में मदद करता है। एक ऐसी ही औरत की कहानी है।

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