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शृंगार रस

15 मार्च 2022

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1 रसीले होंठ
अनार रस टपकाते तुम्हारे रसीले 
नाजुक लब पर ठहर जाऊँ भँवरे की गूँज बनकर
लिपटी दो कलियाँ गुलाब की 
हो आपस में जैसे लुभा रही है मेरी अदाओं को।

देखो ना भँवरे के चुम्बन के प्यासे
कुँवारे से लबों से शबनम सी नमी करके, ठहरी यूँ जैसे पत्तियों पर मानों ओस की बूँदें।

जाम भर दिये जैसे हाला नें तुम्हारे
अंगूरी रस के प्याले में, दावत दे रहा है मेरी चाहत को नशा नशीला 
सुराही से लबों से बहके।

दो दांत दबाते लब से हया की लाली छलके चूम न ले कोई नींद में भँवरा 
लाली को कैद ये कर ले।

छल्ला बनाती होंठ घुमाती बनठन कर जब हसीना निकले, हाये मत पूछो कितने सारे कुँवारों के दिल मोम से पिघले। 




2 तारतम्य 
मेरा पंजों के बल उपर उठना तुम्हारा सर के बल झुकना, मिलन की क्रिया का रुप कितना सुकून देह लगता है..!

साँसों की भाषा कितनी सुंदर है
आह्लादित, उन्मादी,
लब से लबों का मिलन माहौल देता है प्यार के स्पंदन को...!

चुप्पी का शोर बस दिल ही सुनता है 
बिना बोले ही हमें बहुत कुछ समझाते है ये करीबी लम्हें..!

निकटतम लम्हों में तुम्हें करीब से महसूस करना मेरी पूजा का हिस्सा समझो,
में खोजती  हूँ तुम में सच, श्रद्धा, उत्कटता, ओर समर्पण भाव...!

तुम आँखें मूँदे एक बालक से मासूम झाँकते हो मेरी रूह में 
टटोलकर ढूँढते हो एक संपूर्ण स्त्री माँ, बहन, बेटी, पत्नी के सुंदर रुप...!

दोनों की तलाश तृप्त होते ही रचता है एकाकार का समन्वय,
यही तारतम्य हमारे अहसास को जवाँ रखता है उम्र के आख़री पड़ाव तक।




3 लिखनी है रुबाईयां
 उड़ती महक, गीली फ़िज़ा या तरल ओस की बूंदों से बनी तुम्हारी काया पर लिखनी है मुझे अपने प्रीत की रुबाईयां.....

इजाज़त दे दो एक बार पलके झुकाकर तुम्हारे मौन की भाषा को समझता है मेरा दिल बखूबी, 
मेरी भूख को महसूस करो आह्वान दो मेरी तड़प को उजागर कर दूँ अपने अहसास तुम्हारी हथेलियों पर लिखकर...

पैरों को लचक दो बज उठे तुम्हारी पाजेब उस झंकार में खोकर पंक्तियाँ उभार लूँ,  
जीभ फ़ेर दो ज़रा तिश्नगी लिए पड़े अधखुले लबों पर 
एक कहानी लिख दूँ हल्के से चुम्बन की मोहर मलकर....

बहक उठे हर लफ्ज़ तुम्हारी नशीली काया को छूकर अंग अंग पर चंदन की परत बिछा दो, 
ओ मल्लिका ए हुश्न ज़रा मुखर हो जाओ मेरी कशिश को पहचानों और मेरी बन जाओ।




4 बस तेरा साथ हो
चाहे कोई भी बात हो बस तेरा साथ हो गुज़रे मेरे हर लम्हें तुम्हारी आगोश में 
चाहे दिन हो या रात हो ज़िंदगी मेरी तेरी ही सौगात हो इसके सिवा कोई चाह ना मुझे।
 
थाम लो मुझे ओस बिंदु सी अपनी पनाहगाह में गौहर सी झिलमिलाऊँ मैं 
हाथ खोलो तुम्हारी लकीरों का हिस्सा बन जाऊँ, लिखनी है उम्र अपनी तुम्हारे नाम मुझे।
 
ढ़लता है सूरज जैसे शाम की गोद में शीत होते यूँहीं ढ़लना है मुझे सूरज की भाँति आहिस्ता-आहिस्ता तुम्हारी आगोश में
बन जाओ तुम सेज मखमली मैं कुनमुनाऊँ सिलवटों सी तुम बेइन्तहाँ प्यार भरकर अपनी आँखों में निहारो मुझे।

इजाज़त पर तुम्हारी मेरी साँसें चले तुम्हारी खुशियों की मोहताज मेरी हंसी बनें, तुमसे वाबस्ता ज़िस्त हो मेरी इल्तिजा इतनी तुमसे कि अपना बना लो मुझे अपना बना लो मुझे अपना हमनवाह।




5 ज़िंदगी से प्रीत चुराए
ये सुहाना मौसम यूंही न निकल जाए आगाज़ दो इश्क को दो दिल चाहत के रंगों में रंग जाए।

बैठे चलो पीपल की छांव तले ज़िंदगी से प्रीत चुराए आँखों में आँखें डाले मोहब्बत के नग्में गाए।

मैं रहूँ तुम्हारी निगाहों में तुम बसे रहो मेरी  साँसों में रूह बनकर रहे एक दूसरे में समा जाए।

मैं हंसी बन ठहरूँ तुम्हारे लबों की सुर्खियों में तुम मेरे गालों की रंगत बनों चाहत के रंग मल जाए।

मैं प्रीत बनूँ तुम प्यार की बारिश भिगते रहे बूँद बूँद चलो एक दूसरे पर हम तुम बरस जाए।

ढूँढ न पाए दुनिया वालें मशगूल होते मोहब्बत में रममाण होते आँखें मूँदे आगोश में खो जाए।

हया को परे रखकर चुम्बन का साज़ छेड़े पिघलते अहसासों संग प्रेम की चरम महसूस करते भीग जाए।

मनुहार पर मान जाओ आगोश में आओ, पलकें उठाओ देखो ये सुहाना मौसम सजनी यूंही न निकल जाए।



6 तुम्हें खूब सताऊँ
सुनों शिद्दत दिल की क्या कहती है, तुम इश्क का मीठा स्वाद बन जाओ मैं चाहत कोई चटोरी बन जाऊँ।

बाँध लूँ अपने ख़्वाबों का धागा तुम्हारी नींदों से, हर रात तुम्हारे सपनों में आकर तुम्हें खूब सताऊँ।

आसमान चाहूँ उजला तुम्हारी आँखों के भीतर बस जाऊँ, देखो तुम कहीं कुछ भी हर जगह मैं ही नज़र आऊँ।

सजदा करूँ, पूजा करूँ, प्रार्थना में जब भी हाथ उठाऊँ, मेरी लकीरों के हिस्से में बस तुमको पाऊँ।

तुम्हारे खयालों का सरमाया बनूँ तुम्हारी धड़क में बसूँ, तुम्हारी बोलती अँखियन में पुतली सी ठहर जाऊँ।

मुसाफ़िर बनूँ तुम्हारी गलियों की मन चाही राह चुनूँ, दहलीज़ पर तुम्हारी सर झुकाकर तुम्हें अपना खुदा मानूँ।

चाहूँ नहीं कुछ ओर गर तुझे पाऊँ हर जन्म में इंतज़ार का दीप जलाकर, रब से दुआओं में साजन तुम्हें मांगूँ।




7 हाँ नायाब ही तो हूँ मैं
तुम्हारी प्रीत की हथेलियों पर मेरे स्पंदन ने घरौंदा पाया,
इश्क के गन्ने से निचोडकर तुमने पिलाया अँजुरी भर वो सोमरस.!
 
मैं स्वप्न स्त्री हूँ तुम्हारी क्या-क्या नहीं किया तुमने, 
तुम साक्षात प्रेम बन गए
मेरे वजूद में घुलकर.!
 
जब पहली नज़र पड़ी मुझ पर तभी दिल में शहनाई बजी ओर तुम्हारी आँखों ने मेरे चेहरे संग पहला फेरा लिया.!
 
वो गली के मोड़ पर ठहर कर तुम्हारा मुझे देखना, नखशिख निहारते नज़रों से पीना दूसरा फेरा था हमारा.!

मेरी दहलीज़ पर कदम रखते ही तुम्हारे, मेरी धड़कन का रफ़तार पकड़ना तीसरे फेरे की शुरुआत थी.!

चौथे फेरे में मुस्कुरा कर मुझे फूल थमाते घुटनों के बल बैठकर मुझे मुझसे मांगना 
उफ्फ़ में कायल थी.!

वो दरिया के साहिल पर ठंडी रेत पर चलते मेरे हाथों को थामकर मिलों चलना पाँचवे फेरे का आगाज़ था.!

घर के पिछवाड़े गुलमोहर की बूटियों से मेरा स्वागत करना, मेरी चुनरी से अपने रुमाल का गठबंधन करके अपनी बाँहों में उठाना छठ्ठा फेरा था.!

मंदिर की आरती संग बतियाते मेरे गले में हार डालकर खुद को मुझे सौंपना सातवाँ  फेरा समझलो.!

आहिस्ता-आहिस्ता तुमने खोद लिया इश्क का दरिया मेरे लिए,
वादा रख दिया मेरी पलकों से अपनी पलकें मिलाकर जीवन के उदय से अस्तांचल तक,
जवानी से लेकर झुर्रियों तक साथ निभाने का.!

तुम्हारी चाहत की छत के नीचे महफ़ूज़ है अस्तित्व मेरा.!

पल-पल मुस्कुराती है ज़िंदगी मेरी,
तुमने हर इन्द्र धनुषी रंग दिए मेरी पतझड़ सी ज़िंदगी को वसंत के।।





8 रात के आँचल तले 
आसमान की छत पर बैठे 
चाँदनी की सात परतें उधेड दी 
एक तुम्हारी झलक पाने की 
तिश्नगी क्या बढ़ी 
कहकशाँ के कतरे पीकर बहकी 
मैं नीलगन की सैर करते 
शब भर पीले फूल को पिरोया 
रातरानी की टहनियों पर 
ढूँढते तुम्हारे जिस्म की खुशबू 
दरिया की लहरों से खेली 
रेत के कण में हिरक सजा कर 
साँसों की मद्धम बहती गंगा में 
तलाशती तुम्हारे वजूद को
खुद ही खुद में डूबी
गीली लकड़ी सी सुलगती रही
ना आग उठी ना धुआँ बरसा
यादों के मेह में गलती रही 
मन के मंच पर उम्मीद की छत डालें 
रात काटी यादों की आगोश में 
दिन का हाथ पकड़ कर 
मारी मारी फिरती रही 
शाम के सिर पर बैठी हूँ 
दिल समेट रहा है इंतज़ार की राख
चेहरे को दर्द का कुर्ता पहनाकर
हंसी होंठों की सीढ़ियाँ उतर रही है।
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