shabd-logo

अभि की पहली बरसी

10 अक्टूबर 2021

34 बार देखा गया 34

अभि की पहली बरसी

आज मेरे अभि की पहली बरसी है ।  आज ही के दिन वह सरहद पर दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हुआ था । आँगन के बीचोबीच एक छोटे से टेबल पर उसकी तस्वीर रखी हुई है, जिसपर फूल की माला चढ़ी हुई है । अगरबत्ती जल रही है ,जिसका धुँआ चारों तरफ़ फैल रहा है । लोग आ जा रहे हैं , शोक जता कुछ वापस चले जा रहे हैं तो कुछ लोग वही बैठ कर भीड़ की जमात में शामिल हो जाते है ।
कई ऐसे लोग भी है जो सिर्फ इसलिए आये हैं कि लोग क्या कहेंगे।
सामने ही सफेद कपड़ों से लिपटी उसकी पत्नी आरती पल्लू ओढ़े चुपचाप बैठी हुई है । अभि के चार साल का बेटा तरुण भी पास ही बैठा है । उसे ठीक से पता भी नही है क्या हो रहा है यहां । सामने उसकी ही बटालियन के दो फौजी दोस्त बैठे हुए हैं । उनमें से एक वह भी है जो अभि के साथ था और उसी की वजह से जिंदा वापस लौट पाया था ।
             तभी पंडित जी की आवाज़ आयी । माता जी को बुलाइये
पूजा का समय हो रहा है । आरती उठी और घर के अंदर माता जी के कमरे में गयी तो देखा वह चुपचाप , शून्य को निहारती , खिड़की से आती धीमी रोशनी में  , एकटक देखती  शायद अपने लाड़ले को ढूंढ रही थी । जो अब कभी लौट के आनेवाला नही था । आरती ने एक दो बार आवाज़ भी दी मगर मम्मी अपने ख्यालों में खोई रही तो वह भी चुपचाप सोफे पर बैठ गयी ।
           अपनी माँ का लाडला बेटा था वो । बचपन से ही शरारती , हँसमुख और हवा के माफिक एकदम मस्तमौला । चाहे वह स्कूल की बात हो कॉलेज की बात अपने दोस्तों का जिगरी दोस्त था वो ।
मैं अभि से स्कूल के जमाने मे मिली थी । हमसे क्लास में दो साल सीनियर था वह । बहुत कम जानती थी उसके बारे में , पर अपने सहपाठियों और दोस्तो से उसकी अक्सर  चर्चा सुनती तो उत्सुकता जगती की कौन है वो । पर मैंने ध्यान ही नही दिया था ।
       स्कूल के वार्षिक खेल महोत्सव में मैने पहली बार ध्यान दिया उसपर । कबड्डी का मैच था । हमारे बैच के लड़के और उसके बैच के लड़कों के बीच । क्या मैच खेला था उसने । क्या रेडिंग क्या डिफेंडिंग सब मे माहिर था वह । मैं उसके रूप की, गुण की ,उसके पर्सनालिटी की कायल हो गयी थी ।
          दूसरे दिन मैं अपने क्लास में बैठी कुछ लिख रही थी कि अभि अपने एक दोस्त के साथ मेरे क्लास में आया और मुझसे पूछा - नैना कहाँ है?
मुझे क्या पता  । मैंने अपना काम करते हुए कहा । वास्तव में वह मेरी सहेली के बारे में पूछ रहा था जो मुझे अच्छा नही लग रहा था । सही बात थी कि वो मुझसे पढ़ने में भी तेज थी और दिखने में भी ।
हालांकि वह मेरी अच्छी सहेली थी , और अच्छी सहेली होने की वजह से ही मैने ईर्ष्या वश उससे झूठ बोली थी जबकि मैं जानती थी कि वह लाइब्रेरी में थी । पर वह तो सिर्फ एक बहाना था, क्योंकि मुझे बाद में पता चला कि वह तो उसी समय नैना से मिलकर लाइब्रेरी से आ रहा था । उसके दो ही दोस्त थे  एक इरफान और दूसरा नितिन । तीसरी मैं बनना चाहती थी । इरफान और उसकी दोस्ती तो जगजाहिर थी । सब उन्हें दो जिस्म एक जान कहते थे ।
नैना ,इरफान अभि और मैं आखिरकार अच्छे दोस्त बन गए थे। मेरी तरह नैना भी उसे पसंद करती थी । हमारी ये चौकड़ी स्कूल से लेकर कॉलेज तक साथ रही । फिर इरफान अपने घर कश्मीर लौट गया । अंत मे हम दोनों ही बचे । नैना की शादी हो गयी और वह अपने घर चली गयी ।
            वह शुरू से ही खेल में नाम कमाना चाहता था । एक बड़ा खिलाड़ी बनना चाहता था । और  शुरुआत हुआ भी ऐसा ही , उसने अन्तर स्कूल कबड्डी चैंपियनशिप में पूरे जिले में टॉप किया था । उसका सपना था कि या तो वह एक बड़ा खिलाड़ी बने या फिर एक बहादुर फौजी बनकर देश की रक्षा करे । उसने बहुत प्रयास किया कि खेल में कैरियर बनाये । मगर ऐसा हो न सका । इसे अपने देश बदकिस्मती कहे या उसकी कि यहाँ वैसे लोग ही सफल हो पाते है जिसकी पहुँच ऊपर तक होती है ,जिसके सिर पर किसी बड़े नेता या मंत्री का हाथ होता है ।
      उसी राजनीति का वह शिकार हो गया । जब उसने राष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीता तो चारो ओर उसके नाम की गूंज सुनाई दी । राष्ट्रीय स्तर से लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उसने मैडल जीता । मगर वह अंदर से खुश नही था । उसे और कुछ करना था । काफी दिनों तक डिप्रेशन में रहा वो । आखिरकार मैंने और उसके अपने परिवार ने उसका हौसला बढ़ाया । जिससे वह फिर से खड़ा हो पाने में समर्थ हुवा ।
  काफी मेहनत करने के बाद उसने मिलिट्री जॉइन कर ली  । उसकी पोस्टिंग लद्दाख एरिया में हुई । साल में एक दो बार ही घर आता था वो । फ़ोन और खत के माध्यम से हमेशा संपर्क में रहता था ।  इस बीच हमारी शादी भी हो गयी । और साल भर बाद तरुण का जन्म हुआ । हमारी जिंदगी हंसी खुशी के बीच बीत रही थी । यूं तो हरेक पांच दस दिनों में बात होती रहती थी । लेकि पिछले साल ही एक घटना हुई ।
अभि का पिछले दस दिनों से कोई फोन नही आया था । सारे लोग परेशान थे । मैने उनके हेडक्वार्टर भी फ़ोन किया था मगर उधर से जवाब आया ड्यूटी पर है । एक महीना बीत गया था । उसकी कोई खोज खबर नही थी । सारे लोग चिंतित थे ।
इसी तरह के तनावपूर्ण माहौल में हमलोग किसी तरह जी रहे थे । मम्मी जी का हाल एकदम अलग सा हो गया था । ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने सारी खुशियाँ छिन ली हो उनकी । कही किसी कमरे में निढाल सी पड़ी सोचती रहती । उनका शरीर काफी कमजोर हो गया था । खाना पीना काम कर दिया था उन्होंने । मैं उन्हें ढाढस बँधाती रहती कि हमारा अभि जरूर लौट के आएगा ।
 
और फिर एक दिन अचानक ही पता चला कि अभि अपने सात साथी जवानों के साथ एक मिलिटेंट ऑपरेशन में शहीद हो गया । उस आपरेशन में उसका एक साथी  रूपेश बचकर वापस लौटा था , वही साथी उसके पहली बरसी में हमारे साथ हमारा दुख बांटने को मौजूद था ।

" क्या  कर रही हो आरती भाभी  । " तभी किसी ने आवाज़ दिया ।
मैने पलट कर देखा तो सामने उनका फौजी दोस्त रूपेश खड़ा था ।
"कुछ नही भैया मां को देखने आयी थी । " कहती हुई मैने माँ को उठाया और पूजा के लिए सहारा देकर ले गयी ।
पूरे विधि विधान से पूजा कराई गई । उनके दोस्तों का काफी सहयोग रहा इसमें । किसी भी तरह की कोई कमी महसूस नही होने दी उन्होंने । पूरे दिन काफी गहमा गहमी रही । दोस्तों मेहमानों पड़ोसियों का देर शाम तक आना जाना लगा रहा ।
  रात का खाना खाकर हमलोग अपने अपने कमरे सोने चले गए । मैंने माँ के कमरे में ही सोने का निश्चय किया । रात काफी हो चली थी मगर नींद किसकी आँखों में थी ।
माँ सोने की कोशिश कर रही थी मगर नींद आँखों से कोसों दूर थी ।
मैं तकिये के सहारे अपने को टिकाये बिस्तर पर बैठी हुई थी । कमरे में हल्की सी रौशनी थी । तभी रूपेश जी ने दरवाजा खटखटाया । मैने उठकर दरवाज़ा खोला तो देखा सामने रूपेश और उसके साथी खड़े हैं ।
मैंने पूछा क्या हुआ रूपेश भैया ।

उन्होंने पूछा - अंदर आ सकते हैं क्या हमलोग अगर आपलोगो को कोई परेशानी ना हो तो ।
मैने अंदर आते हुए कहा- कैसी बात करते है भैया आइये ना....। आपलोग भी तो अब हमारे परिवार का एक हिस्सा बन गए हैं।
मैंने मां को आवाज़ दी तो वह भी उठकर बैठ गई ।
मैंने उन्हें बैठने के लिए कुर्सी दी तो वे दोनों बैठ गए । मैं भी एक कुर्सी लेकर बैठ गयी ।
कुछ देर तक खामोशी छाई रही फिर इसे तोड़ते हुए रूपेश जी ने अपनी कुर्सी माँ की तरफ खिसकाते हुए कहा - कैसे कहूँ माँ जी , कुछ समझ मे नही आ रहा कि बात कहां से शुरू करूँ ।
क्या कहना चाहते हो बेटे ? मां ने एक चादर उसकी तरफ देते हुए कहा । चादर ओढ़ते हुए रूपेश जी ने कहना शुरू किया - माँ जी मैं आपका गुनाहगार हूँ , आप चाहे तो मुझे सजा दे सकते है । मेरे सामने ही वह अभि ने दम तोड़ा और मैं कुछ नही कर पाया । उसने मुझे वहां से जाने पर मजबूर कर दिया । मुझे आपकी कसम देकर वहां से निकल जाने को कहा ताकि मैं अपने बटालियन को सूचना दे सकूँ और उन आतंकियों को पकड़ा जा सके ।
इस घटना के दिन सुबह हम सब परेड ग्राउंड में नियमित प्रैक्टिस कर रहे थे । मैं अभि और कुछ साथी चाय पीने कैंटीन जा ही रहे थे कि पास ही के जंगल मे कुछ आतंकियों की गतिविधियों की सूचना मिली । हम दस जवानों को स्थिति का पता लगाने व तलाशी अभियान के लिए भेजा गया ।

घना जंगल  था ,आतंकियों के कही भी छिपे होने की आशंका थी ।
हमलोग पूरी सावधानी से आगे बढ़ रहे थे , एक एक कदम फूंक फूंक कर रख रहे थे । कही से भी एक पत्ता हिलता तो उसी ओर बंदूक की नोक घूम जाती थी । करीब पांच किलोमीटर अंदर हमलोग पहुंच चुके थे । मगर आतंकियों ने हमारे लिए शायद पूरी तैयारी कर रखी थी । हमलोग पांच पाँच की संख्या में दो तरफ से आगे बढ़ रहे थे । तभी एक जोरदार आवाज़ सुनाई दी हमलोग आवाज़ की दिशा में भागे तो देखा कि चारों तरफ खून ही खून बिखरा पड़ा था और हमारे पहली टोली शहीद हो चुकी थी । रास्ते मे उन्होंने माइंस बिछा रखी थी जो एक जवान के पैर पड़ते ही फट गया ।
हमारे पास संभलने का भी मौका नही था । क्योंकि हम पूरी तरह से उनके बिछाये जाल में फंस चुके थे । हम चारो तरफ से मिलिटेंट्स ने घेर रखा था । हमारे पांच साथी मारे जा चुके थे । हमारा एक साथी जिसके पास सैटेलाइट फ़ोन था उसने चालाकी दिखाते अपने को घनी झाड़ियों में छिपा लिया था ।
छः सात लोग थे वे जिनके पास स्वचालित हथियार थे और उन्होंने नकाब पहन रखा था ।
एक नकाबपोश जो उनका कमाण्डर लग रहा था जोरदार आवाज़ में बोला - कोई भी चालाकी दिखाने का प्रयास न करे वरना  सब के  सब मारे जाओगे । उन्होंने एक एक कर हम सबकी बंदूके और हथियार छीन लिए  और हमारे हाथ बांध दिए । हमे जमीन पर उल्टा लेटने को कहा । हम अब किडनैप हो चुके थे ।
मगर हम इतनी जल्दी हार मान लें ऐसा हो नही सकता था । अभि ने आंखों ही आँखों मे इशारा किया और अभी कुछ भी जल्दबाजी करने से मना किया । शायद उसके दिमाग मे कुछ प्लानिंग चल रही थी । आखिर हम भी भारतीय फौज के जवान थे ।
एक चीज मैने नोटिस की थी उनका जो कमांडर था अभि के साथ कुछ ज्यादा ही कड़क और खूंखार तरीके से पेश आ रहा था ।बात बात पर गाली देना ,बार बार जान से मारने की धमकी देना ।
   हमलोगों को एक अंधेरी गुफानुमा कमरे में ले जाकर रखा गया था । घने अंधेरे में रखा गया था । बाहर के कमरे से कुछ लोगों के बात करने की आवाजें आ रही थी । मुझे अभि ने पैर से छूकर कुछ इशारा किया । मैं किसी तरह उस दरवाज़े तक पहुंचा और उसकी दरार से बाहर देखने की कोशिश की और उनकी आवाज़ सुनने का प्रयास करने लगा । एक बड़ा सा कमरा था जिसमे करीब तीस चालीस नौजवान लड़के घुटनो के बल बैठे थे और उन्हें एक लंबा चौड़ा शख्स उन्हें धार्मिक उन्मादी की बाते सीखा रहा था। वे लड़के मुश्किल से बीस बाइस साल के लग रहे थे । जिन्हें धर्म के नाम पर उकसाया जा रहा था ताकि वे धार्मिक भावना से उत्साहित होकर उन्मादी बन सके । उन्हें कैसे धर्म के नाम पर बरगलाया जा रहा था ,। और ये लड़के जिनको शिक्षा देनी चाहिए थी कि वे आगे कैसे बढ़े , कैसे विकास करे अपना और अपने परिवार का , बजाए उनका ब्रेन वाश कर उन्हें आतंक के रास्ते पर चलने के लिए तैयार किया जा रहा था ।
मैंने वापस आकर अभि को ये बात बताई ।
सबने मिलकर किसी भी तरीके से यहां से निकलने का प्रयास करना शुरू कर दिया । हम भारतीय फौजी थे जो कटना तो जनता है मगर बुजदिलों की तरह मरना नही सिखा ।

            रात के करीब दो बजे रहे होंगे । सुबह से ही हम भूखे और प्यासे थे । हमे पता था कि भारतीय फौज को हमारे गुम होने की सूचना मिल चुकी होगी , और तलाशी अभियान शुरू हो चुकी होगी ये बात मिलिटेंट्स  भी जानते थे । वे जानते थे कि भारतीय फौज सुबह होते होते यहां तक पहुंच ही जाएगी । इस कारण वे रातो रात ये जगह खाली कर रहे थे । हम पता था कि जाते जाते वे हमें या तो जान से मार देंगे या फिर साथ लेकर जाएंगे ।
उस कमरे का दरवाजा खुला और दो लोग अंदर आये एक तो वही शख्स लग रहा था जो कल जंगल से हमे किडनैप किया था और अभि को जान से बार बार मारने की धमकी दे रहा था । मैंने उसके नकाब से पहचाना था ।
सामने आते हुए पहला शख्स बोला - जनाब इनका क्या किया जाए
साथ  तो ले नही जा सकते ।
करना क्या है उड़ा देते हैं सालों को "। दूसरे नकाबपोश ने ये बात कही ।
नही नहीं अभी गोली चलाई तो आवाज़ दूर तक जाएगी । पहले शख्स ने दूसरे को मना करते हुए कहा ।
तब क्या किया जाए ।
अभी कुछ देर देखते हैं तब तक उन लड़कों को यह से सुरक्षित जगह पर लेकर जाओ । जी जनाब कहते हुए दूसरा व्यक्ति वहां से चला गया । कुछ देर बाद वह पहला व्यक्ति भी जाने लगा तो हमारे एक फौजी दोस्त ने लपक कर उसकी गर्दन पकड़ ली। आव न देखा ताव और ताबड़ तोड़ अपने बंधे हाथों से उसपर वॉर करना शुरू कर दिया । मैं उसे रोकने की कोशिश करता रह गया मगर वह रुका नही । आवाज़ सुनकर बाहर से दो और व्यक्ति आ गए और गोलियों से हमारे साथी को छलनी कर दिया । बाट जोह रहे हमारे एक और साथी ने बंदूक वाले आतंकी को पीछे से दबोच लिया और उसकी गर्दन को जोरदार झटका दिया । झटका इतना जोरदार था कि वही गिरकर वह ढेर हो गया ।दूसरा व्यक्ति जो बंदूक लेकरअंदर आया था उसने मेरे ऊपर बंदूक तान दीऔर बोला खबरदार अगर किसी ने हिलने की कोशिश की तो इसकी खोपड़ी उड़ा दूंगा ।
मेरी चिंता मत करो मैंने चिल्लाते हुए कहा । तो उस बंदूकधारी  शख्स ने बंदूक की दिशा बदलते हुए हमारे उस साथी पर तान दी जिसने पहले बंदूकधारी को गर्दन तोड़कर मार दिया था ।और लगातार तब तक गोलियां मरता रहा जब तक की उसका शरीर तड़पता रहा ।
अभि की आंखों से आंसू बह रहे थे । मेरी आँखों में भी खून उत्तर आया था । मगर अपने आप को काबू में किया हुआ था अभी जोश में होश गंवाने का समय नही आया था ।
चारो तरफ उस गोलीबारी के बाद सन्नाटा छा गया ।
पहला नकाबपोश शख्स जो सबसे पहले आया था अभी भी वही खड़ा था । उसने धीरे से उन दोनों मिलिटेंट्स के गन उठाये और आशा के विपरीत उसी कमरे में एक कोने में हमे दिखाकर  रखा और चला गया । मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा थी कि ये जानते हुए भी की हम यहाँ सेभाग सकते हैं । हमारे लिए ये गन छोड़ कर चला गया था ।

                मैंने अभि की तरफ देखा , उसके चेहरे पर सोचने वाली मुद्रा बन आयी थी । अचानक ही उसके चेहरे पर एक मुस्कुराहट फैल गयी । मैंने कुछ पूछना चाहा तो मुझे थोड़ी देर शांत रहने को कहा । करीब आधे घंटे बाद वह नकाबपोश फिर लौट के आया । एकदम बदहवास हालात में जल्दी से हमारे हाथ पैर खोलते हुए  कुछ बोलना ही चाहता था कि अभि ने उसके चेहरे से नकाब हटाना चाहा तो झट से उसने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला जल्दी से यहां से भाग जाओ वरना जान से मारे जाओगे ।
क्यों तुम मुझे मारोगे " ! अभि ने उसकी आँखों मे आँख डाला तो उसने अपनी नजरें झुक ली ।
    हाँ मैं मारूँगा तुझे '। उस मिलिटेंट ने अपना गन निकालते हुवे
कहा ।
"ठीक है चलाओ गोली "। अभि ने उसके गन का मुंह अपनी ओर करते हुए कहा ।
मैंने अभि का हाथ पकड़ कर उसे पीछे करना चाहा तो मेरा हाथ झटकते हुए कहा - "रुक जाओ रूपेश मुझे इससे बात करने दो ।
"क्या पागलपन है अभि..... हमारे पास भागने का मौका ही और तुम इसे जाया कर रहे हो । "
मैं इसे साथ लेके जाऊंगा रूपेश भाई । अभि ने चौंकाने वाली बात कही तो मैं रुक गया ।
"हाँ रूपेश ये हमारा दोस्त है जो राह भटक गया है "। अभि ने अपनी आंखों में आंसूं लाते हुवे कहा । और एक झटके से उस व्यक्ति का नकाब नोंच दिया । सामने जो व्यक्ति था वह उसी का दोस्त इरफान था । जिसकी दोस्ती के वह किस्से हमे सुनाया करता था ।
उस नकाब के शख्स ने अभि को जल्दी  से पकड़ा  दोनो गन उठाया और एक तरफ खींच कर ले जाने लगा । हम एक अंधेरे सुरंग से गुजरते हुए एक गुफा से बाहर निकले । जहाँ सुबह की हल्की रोशनी बिखरी हुई थी । जल्दी से उसने दोनो गन हमलोगों को पकड़ाया और लौटने लगा। इस बार अभि ने उसका हाथ पकड़ लिया उससे लिपट गया । उसके आंसू इरफान के कंधे भिगो रहे थे।
इरफान ने भी उसे गले लगा लिया । पांच मिनट तक दोनों ने कुछ नही बोला एक दूसरे से ।
"चल मेरे भाई हम फिर से अपनी दुनिया मे लौट जाएंगे "।अभी ने उसका हाथ कस कर पकड़ते हुए कहा ।
इस पर इरफान ने अपने एक हाथ से अभि के आंसू पोंछते हुए कहा -" काश ऐसा हो पाता अभि ।" और एक ठंढी सांस ली ।

"इस राह में मैं इतना आगे आ चुका हूं कि अब पीछे नही लौट सकता । तुम जल्दी से यहां से निकलो ।" उसने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा।

चुप ....। एकदम चुप हो जाओ तुम "। उसने इरफान को लगभग डांटते हुए कहा ।
" पूरी जिंदगी मैं तुम्हे समझाता रहा और तुम आज इस फैसले की घड़ी में मुझे समझाना चाहते हो । तुम्हें मेरे साथ पुरानी जिन्दगीं में लौटना ही होगा ।अभि ने उसे समझाते हुए कहा।
ठीक है तुम्ही ज्यादा समझदार हो मगर अभी फिलहाल तुमलोगों को यहाँ से निकलना ही होगा । वो लोग कभी भी यहां पहुंच सकते है और उन्हें भनक भी लगी कि मैंने भागने में तुम्हारी मदद की है तो वो इतने खतरनाक है कि मेरे साथ साथ मेरे घरवालों को भी मार  डालेंगेइसलिए तुमसे विनती है कि अभी तुम यहाँ से निकल जाओ , जिंदा रहे तो फिर मिलेंगे । इरफान ने अभि को समझाते हुए कहा ।

मेरे भाई  दोस्त भी कहते हो और साथ छोड़कर जाने की बात कहते हो । अभि ने एक फीकी मुस्कान बिखेरी ।
आखिर ऐसी भी क्या बात हो गयी तुम्हारे साथ जो तुम इन उन्मादी लोगो की जमात में शामिल हो गए । जहां तक मैं जानता हूं तुम एक अच्छे पढ़े लिखे परिवार से आते हो , फिर ऐसी क्या मजबूरी रही कि तुम इन सांप्रदायिक लोगो के प्रभाव में आ गए । अभि ने इरफान का हाथ अपने हाथ मे लेते हुए कहा ।
मैं तुम्हे सब कुछ बताऊंगा मगर अभी समय नही है तुम अभी यहाँ से जल्दी निकलो । इरफान ने उसकी बात काटते हुए कहा।
इससे पहले की कुछ और बहस होती  इरफान का भतीजा वहाँ गन लिए हुए आ पहुंचा और अभि पर तानते हुए बोला - चाचा आप निकलिए मैं इन्हें देखता हूँ ।
मैने देखा मुश्किल से वह लड़का उन्नीस बीस साल का रहा होगा । हल्की दाढ़ी मूछें ही उग पाई थी उसकी मगर हाथ मे ए0 के0 47 थाम रखी थी । अचानक ही उसने बंदूक के बट से अभि के चेहरे पर वार किया । मैने  लपक कर उसकी गन पकड़ ली । एक बच्चा था वह ।
       इरफान ने अपने भतीजे से गन छीनते हुए एक जोरदार थप्पड़ लगाया और बोला - जनता है तू किस पर हाथ उठा रहा है ।
हाँ जनता हूं मैं , हमारे दुश्मन है ये भारतीय फौजी , जिन्होंने हमारी आज़ादी छीन रखी है, हमारी धरती पर इन्होंने कब्जा कर रखा है ।
उस छोटे से बच्चे के मुँह से ये बात सुन कर मेरे साथ साथ अभि भी दंग रह गया ।
किस धरती की बात करते हो तुम बेटे , यह धरती तो हम सबकी है , माँ है हमारी । इस माँ का बंटवारा चाहते हो । हमलोग क्या एकसाथ मिलकर नही रह सकते । अभि ने इरफान के भतीजे को समझाना चाहा ।
साथ वो भी तुम हिंदुस्तानियों के ....! कभी नही । उसने हिकारत भरी नजरों से हमे देखा तो एकबारगी मेरा खून खौल उठा । लगा कि अभी इसे गोली से उड़ा दूँ । मैंने अपनी बंदूक निकाल ली और उसपर तानते हुए बोला - ऐ खबरदार जो मेरी धरती माँ और मेरे हिंदुस्तान के बारे में बोला तो ।
इसपर अभि ने मेरी बंदूक नीचे करते हुए बोला - किसे मारने जा रहे हो रुपेश । जिस तरह से इरफान मेरा अपना है उसी प्रकार यह भी हमारा अपना ही सगा है । चंद मुट्ठी भर लोगों के बहकावे में आकर भटक गया है । इसे हमे मुख्यधारा में वापस लाना है । एक बार ये अगर गलत रास्ते पर जा सकता है तो उसे हम प्यार से समझाकर उनकी भावनायों को समझकर उन्हें सही रास्ते पर ला सकते है ।

तभी कुछ लोगों के आने की आहट आयी । सभी चौकन्ने हो गए । आतंकी फिर से हमे खोजते वापस आ गए थे । इतेफाक देखिए ये सारे लोग जिन्हें हम आतंकी समझ रहे थे सब इरफान के ही भाई बंधु निकले । मगर इतना उनका माइंड वास किया जा चुका था कि उन्होंने हमारे अभि की बातें नही सुनी और सबने बंदूके तान ली । अचानक ही इरफान और उसका भतीजा सामने आ गए और बोले - कोई गोली नही चलाएगा ।
इरफान ने एक अधेड़ शख्स से हाथ जोड़ते हुए कहा-  अब्बा ये मेरा सबसे प्यारा भाई जैसा दोस्त है इसे मत मारो । याद करो अब्बा इसने मेरी बहुत मदद की थी जब मैं पढ़ने गया था ।
तुम सामने से हटो "। उस अधेड़ शख़्सने इरफान को चेतावनी देते हुए कहा ।
नही अब्बा इसे मारने से पहले तुम्हे मुझे मारना होगा ।
ये क्या पागलपन है इरफान जल्दी हटो वरना कोई और राह से भटका हुआ सरफिरा इन्हें मार ही देगा । क्योंकि ये लोग पुरी तरह से घिरे हुए हैं । वे लोग आ ही रहे है और किसी भी वक्त आ सकते हैं ।
इस बात ने सबका ध्यान उस अधेड़ व्यक्ति की ओर खींचा । तभी गोलियों की तड़तड़ाहट से पूरा इलाका गूंज उठा ।  पहले इरफान फिर उसके अब्बा फिर दो और व्यक्तियों की लाशें गिरी जिसमे एक  हमारा अभि भी था । परंतु उसने गिरते गिरते मुझे वहां से भागने को कहा ताकि हमारे बटालियन को खबर पहुँचाई जा सके कि कुछ चरमपंथियों ने हमारी धरती माँ को छूने की कोशिश की है । ये कोई बड़ी साजिश रच रहे है । इसका खुलासा हो सके । अचानक ही वहां एक बड़ा धमाका हुआ और चारों तरफ लाशें ही लाशें बिखरी पड़ी थी । 
मैं कुछ दूर जा चुका था । पर धमाके की आवाज़ सुनकर वापस लौटा । ताकि अभि का पार्थिव शरीर ले जा सकूँ । मगर मै जब तक वहाँ पहुंचता देखा कि अभि का मृत शरीर अपने कांधे पर उठाए लड़खड़ाते कदमो से इरफान भागा चला  आ रहा था। और उसे कवर फायरिंग दे रहा था उसका भतीजा । मुझ तक पहुंचते पहुंचते इरफान गिर पड़ा । मैंने अभी की देह अपने कांधे पर लादी और इरफान का शरीर उसके भतीजे ने उठाई । हमलोग जितनी तेजी से भाग सकते थे भागे चले जा रहे थे । जैसे ही हम जंगल के आखरी छोर पर पहुंचे वह लड़का रुक गया । मैने पूछा क्या हुआ ।
उसने इरफान का शरीर जमीन पर रखा और बोला - सर अब मैं यहाँ से आगे नही जा सकता ।
क्यों ? मैने एक पेड़ के सहारे अभि को टिकाया और हांफते हुए पूछा ।

क्योंकि आज अगर मैं अकेला आपके साथ गया तो मेरे जैसे हज़ारों युवाओं को सही राह कौन दिखायेगा । जो मेरे चाचा ने संदेश दिया है , जो इन्होंने मुझे राह दिखाई है ,अभि की ओर इशारा करते हुए कहा , वह मुझे भटके अपने साथियों तक पहुंचाना है ।
    जय हिंद जय भारत । कहते हुए वह लौट पड़ा ।

मै आश्चर्य चकित था कि किस तरह हमारे अभि ने इनका मार्ग परिवर्तन कर दिया था । कुछ देर बाद हमारे बटालियन के सैनिक आ गए थे । पूरे इलाके को सील कर दिया गया था ।

यही अभि की कहानी थी । मैंने मां जी का हाथ पकड़ा और एक हाथ से उनके आंसू पोंछे । आरती भाभी के भी आंखों में आंसू तैर रहे थे । हमने उन्हें और दुःखी ना करने का इरादा किया । सुबह की ट्रेन थी हमारी । 

11
रचनाएँ
प्रेमांजली : क़िस्सों का सफर
5.0
मेरे द्वारा लिखित , मौलिक ,साफ सुथरी , समाज को एक नई दिशा देने वाली कुछ चुनिंदा और रोचक कहानियों का संकलन , जो मेरे दिल के काफी करीब है ।
1

थरथराते बेसहारा हाथ

10 अक्टूबर 2021
19
2
3

<div align="left"><p dir="ltr"><b><i>थरथराते बेसहारा हाथ </i></b><br><br></p> <p dir="ltr"> &nb

2

अभि की पहली बरसी

10 अक्टूबर 2021
2
0
0

<p dir="ltr"><i><b>अभि की पहली बरसी </b></i><br><br></p> <p dir="ltr">आज मेरे अभि की पहली बरसी है ।&

3

मजबूत रिश्ते

10 अक्टूबर 2021
2
0
0

<p dir="ltr"><i><b>मजबूत रिश्ते</b></i><br></p> <p dir="ltr"> &nb

4

मेहनत की मृत्यु

10 अक्टूबर 2021
2
0
0

<p dir="ltr"><b><i>मेहनत की मृत्यु</i></b><br><br></p> <p dir="ltr">मेरे देश की धरती सोना उगले

5

गुलाब के वो सूखे पत्ते

10 अक्टूबर 2021
3
0
0

<p dir="ltr"><b><i>गुलाब</i></b><b><i> के वो सूखे पत्ते </i></b><br><br></p> <p dir="ltr">दीवाली की

6

जाते क़दमों की आहट

10 अक्टूबर 2021
0
0
0

<p dir="ltr"><b><i>जाते क़दमों की </i></b><b><i>आहट</i></b><b><i> </i></b><br></p> <p dir="ltr">रात क

7

शिकवे और शिकायत

10 अक्टूबर 2021
2
0
0

<p dir="ltr"><b><i>शिकवे </i></b><b><i>और</i></b><b><i> </i></b><b><i>शिकायत</i></b><b><i> </i></b><

8

देवता

10 अक्टूबर 2021
1
0
0

<div align="center"><p dir="ltr"><img style="background: gray;" src="https://shabd.s3.us-east-2.amaz

9

भीख नहीं चाहिए मुझे

12 अक्टूबर 2021
0
0
0

<p dir="ltr"><b>भीख नहीं चाहिए मुझे</b><br></p> <p dir="ltr">कहानी शुरू होती है एक घटना से जहाँ एक अ

10

रौशनी

12 अक्टूबर 2021
1
0
0

<div align="left"><p dir="ltr"><i><b>रौशनी</b></i><br><br><br></p> <p dir="ltr">रात्रि का समय । एक ग

11

अनोखा आत्मीय रिश्ता

12 अक्टूबर 2021
3
0
0

<div align="left"><p dir="ltr"><b><i>अनोखा आत्मीय रिश्ता </i></b><br><br><br></p> <p dir="ltr">

---

किताब पढ़िए