एक बून्द की कहानी है...
एक बून्द की ज़ुबानी है ..
इस रामझिम बारिश की हर एक बून्द की बस यही निशानी है ...
गिरती है ज़मीन पर तोह एक तड़पती प्यास को बुझाती है...
पड़ती है तन पर तोह ... एक ख़ुशी का एहसास जगाती है...
केहती है सबसे की बेवजह न दूषित करो मुझे मेरी लीला भी न्यारी है ...
एक पल को जो न मिलु अगर तोह अधूरी तुम्हारे जीवन की कहानी है...
मेरे बिना न रैना है .. न चैना ह है ... ये जीवन कितना सलोना है.. ये जीवन कितना सलोना है...
बिन बून्द बरसात कैसी प्रकृति का यही फेरा है... तभी तो ... सूखे ने डाला हर जगह अपना डेरा है... हर जगह अपना डेरा है...
परवाह जो न तुम्हे है मेरी ... तोह मुझे भी अब कहाँ है.. आऊँगी जो न कभी तुम्हारे पास ... तब जानोगे क्या है ..उस तड़प का एहसास...
तुमने जो ना जाना मेरी एहमियत को तोह... बाद मै पछताओगे ...सोचोगे फिर यही बैठ कर ..की कैसे मुझे मनाओगे ...
जीवन देती हू मैं सभी को ... फिर क्यों??? मेरे ही जीवन को नशवर बना डाला है...
सुन लो ऐ दुनिया वालो ... ना दूषित करो मुझे बचा लो मेरी हर एक निशानी को... हर एक निशानी को...
अपनों ने ही मुझे गंदा कर डाला है... अशुद्ध करके मेरी हर एक निशानी को गंदे नालो मे बहा डाला है...
कैसे करू में विश्वास तुमपर इस विश्वास को तुमने हर पल ठुकराया है... हर पल ठुकराया है ...
कैसे सुनाऊ ... मै अपनी इस आपबीती को.... मेरी तो बस इतनी सी जवानी है...
एक बून्द की बस इतनी सी कहानी है... बस इतनी सी कहानी है .....|||