छलकी हैं बूँदें, छलकी सावन की ठंढी सी हवाएँ...ऋतु सावन की लेकर आई ये घटाएँ,बारिश की छलकी सी बूँदों से मन भरमाए,मंद-मंद चंचल सा वो बदरा मुस्काए!तन बूंदो से सराबोर, मन हो रहा विभोर,छलके है मद बादल से, मन जाए किस ओर,छुन-छुन छंदों संग, हिय ले रहा हिलोर!थिरक रहे ठहरे से