तुम आस हो पर पास नहीं,
भीतर हो पर साथ नहीं,
सब कहते,
मैं तुम्हे ‘मिस’ नहीं करता,
महसूस नहीं करता,
दर्द का कभी
क्यूँ ज़िक्र नहीं करता.
प्यार तो कब क्या चीज़ है ये,
उस रोग लगे की
फ़िक्र नहीं करता.
पर,
जैसे भूख महसूस होती,
प्यास लगा करती
और दर्द की टीस हुआ करती,
सांस,
सांस न महसूस होती,
न लगती और न टीस देती है.
तुम सांस हो और मैं जिस्म.
इसलिए,
न महसूस होती, न लगती
न ही ‘मिस’ होती हो.
तुम बस हो,
और तुम्हारे होने से चल रहा हूँ मैं.
----- अभय मिश्र