shabd-logo

नहीं कोई “Open Letter”, है तो बस एक “बंद चिट्ठी”

29 मई 2016

178 बार देखा गया 178
featured image

नहीं कोई “Open Letter”, है तो बस एक “बंद चिट्ठी”

अरे पगली!
जब बाप बेटे से, प्यार प्यार से, 
कुछ लोग और कुछ लोगों से 
आपस में कम और ‘सोसाइटी’ से ज्यादा जता रहे हैं,
की वो कितना प्यार करते हैं,
‘ईमेल’ से हो रहे इस मेल के बीच,
मोबाइल में रखे हजारों ऑफर,
और ‘शेयर’ हो रहे ‘सोशल पोस्ट’ के साथ, 
जज़्बात और उससे भरे सबूत,
आसानी से ‘कैरी’ हो जाते हैं.

याद करता हूँ वो चिट्ठी जो तुम्हारे लिए लिखी थी, 
कौन सी स्याही कौन सा पेन सोचने को भी-
कितनी रातें एक की थी.

जो सिर्फ मेरी बात नहीं,
खुशबू भी भिजवाती तुम तक; 
चाहे – अनचाहे, पसंद-नापसंद में भी,
दिल से लगकर या गुस्से से फटकर भी,
मेरा ‘टच’ वो पंहुचा आती तुम तक.

बात फैले न, तुझे आंच भी न आये,
इसलिए अच्छे से चिपकाकर रक्खी कुछ चिट्ठियां,
आज भी अलमारी की सबसे नीची शेल्फ में बसी है.
जब तब खोल के देख लेता हूँ,
और आँख मूँद कर बस उन्हें साझा कर लेता हूँ.
आज भी वो अभी खिले फूल की तरह ताज़ा हैं,
आसुओं से कुछ अक्षर मिट गए हैं ये बतला देता हूँ.

इस ‘ओपन लैटर’ के दौर में भी,
बंद चिट्ठी पढने का मन हो तो बता देना,
ये आसानी से ‘कैरी’ न होंगी, 
इन्हें अपने सिरहाने रख कर,
मेरी आवाज़ सुननी हो तो बता देना!
--by Abhaya Mishra 
Pic courtesy Internet

1

तो इंसान हूँ मैं!

29 जनवरी 2016
0
5
0

watsapp और FB के बीच,कोई दोस्त छत पे चिल्लाकेबुलाता है,तो लगता है इंसान हूँ मैं.“ऑनलाइन फ़ूड” से अलग जब,खाऊ गली से गुज़रते ज़लेबी हलवाईमहकाता है,तो लगता है इंसान हूँ मैं.डिस्काउंट कूपन और कार्डकी उहापोह में,जब मां को मारवाड़ी से २रुपये बचाता देखता हूँ,तो लगता है इंसान हूँ मैं.अगल बगल रह के भी फोन करनिपट

2

और, लौट आई टीटू की दीदी | समाज का चलचित्र ६-वर्ष के बालक की आँखों से

29 जनवरी 2016
0
5
0

टीटू अपनी दीदी को खोज रहा है, जो शायद किसी "सीक्रेटमिशन" पे गयी हैं. उसके बाल मन की कल्पनाशीलता को प्रदर्शित करने का प्रयास किया है इस कहानी में. हाँ, समाज का दर्पण और उसके बन्धनों का खाका खीचते हुए एक सन्देश देने की कोशिश की गयी है, पर रचनात्मक और गैर-टीचर अंदाज़ में. अगर आपको लगे की शायद ऐसा हमारे

3

सांस बन कर रहो !

14 फरवरी 2016
0
3
0

<!--[if gte vml 1]><v:shapetype id="_x0000_t75" coordsize="21600,21600" o:spt="75" o:preferrelative="t" path="m@4@5l@4@11@9@11@9@5xe" filled="f" stroked="f"> <v:stroke joinstyle="miter"></v:stroke> <v:formulas> <v:f eqn="if lineDrawn pixelLineWidth 0"></v:f> <v:f eqn="sum @0 1 0"></v:f> <v:f eqn=

4

सफ़ेद के रंग हज़ार ! --- अजी हाँ! होली तो हर बार खेलते हैं, या न खेलने का नाटक करते हैं. हमने भी इस बार रंगों के साथ 'शब्दों' में भी होली खेल दी है.

23 मार्च 2016
0
3
0

5

नहीं कोई “Open Letter”, है तो बस एक “बंद चिट्ठी”

29 मई 2016
0
1
0

नहीं कोई “Open Letter”, है तो बस एक “बंद चिट्ठी”अरे पगली!जब बाप बेटे से, प्यार प्यार से, कुछ लोग और कुछ लोगों से आपस में कम और ‘सोसाइटी’ से ज्यादा जता रहे हैं,की वो कितना प्यार करते हैं,‘ईमेल’ से हो रहे इस मेल के बीच,मोबाइल में रखे हजारों ऑफर,और ‘शेयर’ हो रहे ‘सोशल पोस्ट’ के साथ, जज़्बात और उससे भरे

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए