एक
सूने से दरवाजे पर
लगी खिड़की में से
झाँकती दो प्यासी आँखे
इन्तजार करती है
किसी आहट
किसी दस्तक का
पर;
नही आते कोई पद चिन्ह
नही होती दस्तक
और
नही झंकृत होते वीणा के तार
नहीं गूंजती स्वरलहरिया
नही आती वेनियों की भीनी भीनी सुगन्ध
दरवाजे के पीछे की
चार दिवारें व एक सूनी छत
पर आच्छादित
उदासी व निरवता का साया
दरवाजा देखता है
और महसूस करता है
निशब्द खिड़की से चिपकी आंखों की
उत्कंठा
एक कसूरवार की तरह
मानो उसकी जड़ता ने
रोक दिए है कदम
उस आगन्तुक के
जिसके आगमन से
फिर;
गुलज़ार होगी दरवाजे के पीछे की दुनियाँ !!