तुम चाँद नहीं थी मेरे लिए चांदनी थी.. चाँद कहाँ बेदाग होता है ..पर चान्दनी तो पवन होती है.. तुम बेदाग थी मेरे लिए मैं इसीलिए तुम्हे चांदनी समझता था .. दुनिया के कहने पर भी मैंने तुम्हे चाँद कभी नहीं माना तुम हमेशा दोषमुक्त रही थी मेरे लिए .. तुम्हारा मेरे सामने चांदनी बनने को मैंने तुम्हारा वही बचपन ही समझा.. लोग इसे मेरा अंधसमर्पण कहते थे तुम्हारे लिए पर परवाह नहीं..लेकिन उस रोज तुम्हारे वो शब्द जिनमें तुम्हारे चांदनी होने की स्वीकार्यता थी..उन्होंने मुझे झकझोर सा दिया है.. अब तो समझ ही नहीं आता की तुम्हआरी उपमा दू या तुमसे तुलना करू..तुम गयी तो कभी नहीं थी मेरी आत्मा से बस यादो से ही ख़ुशी थी बड़ा शांत सा था जीवन.. पर शायद यह भूल गया था की ज्वार भाटा और सुनामी के बीच एक सन्नाटा होता है और ये वही सन्नाटा .. सुनामी आई और चली गयी है पर अब डेमेज कण्ट्रोल सीख लिया यही तो एक इंजीनियरिंग से कह लो या तुमसे..पर इस सुनामी के बाद एक टीस से रह गयी है मन में की अगर तुम नहीं तो फिर कौन..तुम्हे कई सरे विकल्प मिले होंगे पर मुझे तुम्हारी जगह लेने वाला कोई नहीं मिला या शायद मै दे ही नहीं पाया तुम्हारी जगह किसी को..एक डर सा है मन में अगर किसी को न दे पाया तो..कुछ उस कटी पतंग की तरह महसूस होता है अब की पता नहीं हवा के थपेड़े की किस ओर किस डगर ले जायेंगे अगले कदम पर.. अभी तो पतंग की तरह हवा के थपेड़े खाने में व्यस्त हु..अगर ईश्वर ने चाहा तो शायद फिर वही मासूम या कोई और मासूम इस पतंग की डोर अपने हाथो में ले लेगा..