चतुर्थ शक्ति कूष्मांडा
ये अष्टभुजाधारी, माथे पर रत्नजड़ित मुकुटवाली, एक हाथ में कमंडल और दूसरे हाथ में कलश लिए हुए उज्जवल स्वरूप की दुर्गा है। इनका वाहन बाघ है।
जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अंधकार ही अंधकार था, तब इन्हीं देवी ने अपने ईषत हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी।
इसलिए यही सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति है।
आरती देवी कृष्मांडा नी की...
कूष्मांडा जय जग सुखदानी ।
मुझ पर दया करो महारानी।
पिंगला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी मां भोली भाली ।
लाखों नाम निराले तेरे।
भक्त कई मतवाले तेरे।
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा ।
सबकी सुनती हो जगदंबे।
सुख पहुंचाती हो मां अंबे ।
तेरे दर्शन का में प्यासा ।
पूर्ण कर दो मेरी आशा।
मां के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी।
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो मां संकट मेरा।
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो।
तेरा दास तुझे ही घ्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए ।