प्रथम शक्ति मां शैलपुत्री
पर्वतराज हिमालय की पुत्री पार्वती के स्वरूप में साक्षात शैलपुत्री की पूजा नवरात्र के प्रथम दिन होती है। इनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का पुष्प है। ये नंदी नामक वृषभ पर सवार संपूर्ण हिमालय पर विराजमान है। शैलराज हिमालय की कन्या होने के कारण नवदुर्गा का सर्वप्रथम स्वरूप शैलपुत्री, कहलाता है। घोर तपस्या करने वाली शैलपुत्री समस्त वन्य जीव-जंतुओं की रक्षक भी हैं। ये सब लोग देवी शैलपुत्री की आराधना करते हैं, जो योग, साधना, तप और अनुष्ठान के लिए पर्वतराज हिमालय की शरण लेते हैं।
आरती देवी शैलपुत्री जी की...
शैलपुत्री मां बैल असवार ।
करें देवता जयजयकार ।
शिव शंकर की प्रिय भवानी |
तेरी महिमा किसी ने ना जानी ।
'पार्वती तू उमा कहलावे ।
जो तुझे सिमरे सो सुख पावे ।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू ।
दया करे धनवान करे तू ।
सोमवार को शिव संग प्यारी ।
आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो।
सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के ।
गोला गरी का भोग लगा के ।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं।
प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे ।
शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे ।
मनोकामना पूर्ण कर दो।
भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।