नवम शक्ति सिद्धिदात्री
नवदुर्गाओं में सबसे श्रेष्ठ, सिद्धि और मोक्ष देने वाली दुर्गा को सिद्धिदात्री कहा जाता है।
यह देवी भगवान विष्णु की प्रियतमा लक्ष्मी के समान कमल के आसन पर विराजमान हैं।
और हाथों में कमल, शंख, गदा और सुदर्शन चक्र धारण किए हुए हैं। सिद्धिदात्री देवी सच्चे हृदय से आराधना करने वालों को महाविद्याओं की अष्ट सिद्धियां भी प्रदान करती है।
नौवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा-उपासना करने के लिए नवाहन का प्रसाद और नवरस युक्त भोजन तथा नौ प्रकार के फल-फूल आदिका अर्पण करके जो भक्त नवरात्र का समापन करते हैं ।
उनको इस संसार में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
आरती देवी सिद्धिदात्री जी की...
जय सिद्धिदात्री मां तू सिद्धि की दाता।
तू भक्तों की रक्षक तू दासों की माता ।
तेय नाम लेते ही मिलती है सिद्धि।
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि ।
कठिन काम सिद्ध करती हो तुम।
जभी हाथ सेवक के सिर धरती हो तुम।
तेरी पूजा में तो ना कोई विधि है।
तू जगदंबे दाती तू सर्व सिद्धि है।
रविवार को तेरा सुमिरन करे जो।
तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो ।
तू सब काज उसके करती है पूरे ।
कभी काम उसके रहे ना अधूरे ।
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया ।
रखे जिसके सिर पर मैया अपनी छाया।
सर्व सिद्धिदाती वह है भाग्यशाली।
जो है तेरे दर का ही अंबे सवाली।
हिमाचल पर्वत जहां वास तेरा |
महा नंदा मंदिर में है वास तेरा ।
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता।
भक्ति है सवाली तू जिसकी दाता।