नवरात्र यानी मां अंबे के नौ रूपों की आराधना में डूब जाने के खास नौ दिन। खुद को पूरी तरह से उन्हें समर्पित कर देने का समय। आपके नवरात्र को खास बनाने के लिए हम लेकर आए हैं, मां की आराधना, आरती और आहार से जुड़ी जानकारियों का यह पिटारा....
आश्विन मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होकर नौ दिनों तक चलने वाला नवरात्र, शारदीय नवरात्र कहलाता है। चूंकि नवरात्र नौ दिन चलते हैं इसलिए प्रत्येक दिन मां दुर्गा के नौ स्वरूप मंदिर और देवालयों सहित घर-घर में पूजे जाते हैं। मां दुर्गा की पूजा-अर्चना घटस्थापन से आरंभ होती है। उत्तर भारत में जौ, तिल आदि के नवान्न बीजों को मां दुर्गा के आगे मिट्टी के पात्र में बोया जाता है। अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन,
के समय यह बीजनी काटी जाती है। अभिप्राय यह है कि शक्ति रूपी मां भगवती सबको ही अन्न, धन और आरोग्य की कृपा से अविभूत करें, आशीष दें।
जिस प्रकार सृष्टि या संसार का सृजन ब्रह्मांड के गहन अंधकार के गर्भ से नयग्रहों के रूप में हुआ, उसी प्रकार मनुष्य जीवन का सृजन भी माता के गर्भ में ही नौ महीने के अंतराल में होता है। मानव योनि के लिए गर्भ के ये नौ महीने नवरात्र के समान होते हैं, जिसमें आत्मा मानव शरीर का रूप धारण करती है। नवरात्र का अर्थ शिव और शक्ति के उस नौ दुर्गाओं के स्वरूप से भी है जिन्होंने आदिकाल से ही इस संसार को जीवन प्रदायिनी
ऊर्जा प्रदान की है और तथा सृष्टि के निर्माण में मातृशक्ति और स्त्री शक्ति की प्रधानता को सिद्ध किया है। दुर्गा माता स्वयं सिंह वाहिनी होकर अपने शरीर में नव दुर्गाओं के अलग अलग स्वरूप को समाहित किए हुए शत्रुओं का नाश करती हैं।
ऐसे करें पूजा-पाठ
मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की
पूजा-अर्चना की की एक खास विधि है। मां की पूजा के लिए सबसे पहले एक लकड़ी के पटरे पर लाल कपड़ा बिछाएं। उसके ऊपर गणपति, नवग्रह, षोडशमातृकाओं की संरचना चावल से करें। ईशान कोण में कलश की स्थापना करें। कलश, मिट्टी या तांबे का ही होना चाहिए। कलश के नीचे रेत में गाय का गोबर मिलाकर जौ लगा दें।
फिर पानी से उसको तर रखें तो कलश के नीचे बहुत सुंदर जो खिल उठेंगे। पटरे के ऊपर दो पानी के लोटे रखें। एक पानी के लोटे पर पंच पल्लव लगाकर चांदी की कटोरी, कांसे या मिट्टी के पात्र में घी का दीपक जलाएं। कलश के नीचे की ओर तेल की ज्योति जलाएं। तेल पाप का शमन करता है और घी आनंद बढ़ाता है। दोनों ही ज्योति लगातार जलनी चाहिए ताकि भगवती दुर्गा सामने उपस्थित रहें। तीसरे कलश के ऊपर पंच पल्लव लगाएं और कच्चा नारियल छीलकर स्वस्तिक चिन्ह बनाकर रखें और मिट्टी के कलश के ऊपर भी इसी प्रकार पंच पल्लव नारियल रखें। श्रेष्ठ ब्राह्मण से नवरात्र की प्रतिपदा पर पूजन करवाएं और संकल्प करें कि मां भगवती से मुझे तीनों बलों की प्राप्ति हो।
अष्टमी या नवमी वाले दिन नौ कन्याओं का पूजन कर उन्हें भोजन करवाएं। नारियल चढ़ाने का कारण यह है कि मां भगवती को नारियल अति प्रिय है और कभी-कभी पूजन के दौरान वह स्वतः फट भी जाता है। इसे पूजा से मिलने वाले फल का शुभ संकेत माना जाता है। फटे नारियल को प्रसाद के रूप में ग्रहण कर उसकी जगह कलश पर दूसरा नारियल रख देना चाहिए। मां के सभी नौ रूपों को लाल रंग के वस्त्र, रोली, लाल चंदन, सिंदूर, लाल वस्त्र साड़ी, लाल चुनरी, आभूषण तथा खाने-पीने के सभी पदार्थ जो लाल रंग लिए हुए होते हैं, वही अर्पित किए जाते हैं। इसकी वजह यह है कि मां को लाल रंग बेहद पसंद है।