षष्ठम शक्ति कात्यायनी
यह दुर्गा, देवताओं के और ऋषियों के कार्यों को सिद्ध करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुई ।
और महर्षि ने उन्हें अपनी कन्या के रूप में पाला साक्षात दुर्गा स्वरूप इस छठी देवी का नाम कात्यायनी पड़ गया।
यह दानवों, असुरों तथा पापी जीवधारियों का नाश करने वाली देवी भी कहलाती है।
सांसारिक स्वरूप में यह शेर यानी सिंह पर सवार चार भुजाओं वाली, सुसज्जित आभा मंडल युक्त देवी है।
इनके बाएं हाथ में कमल और तलवार, दाहिने हाथ में स्वस्तिक और आशीर्वाद की मुद्रा अंकित है।
इन्होंने ही पृथ्वी लोक, पाताल लोक और स्वर्ग लोक को शुंभ-निशुंभ राक्षसों से मुक्त कराया था।
आरती देवी कात्यायनी जी की...
जय-जय अंबे जय कात्यायनी ।
जय जगमाता जग की महारानी।
बैजनाथ स्थान तुम्हारा |
यहां वरदाती नाम पुकारा ।
कई नाम है, कई धाम है।
यह स्थान भी दो सुखधाम है।
हर मंदिर में जोत तुम्हारी।
कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी।
हर जगह उत्सव होते रहते।
हर मंदिर में भक्त हैं कहते।
कात्यायनी रक्षक काया की।
ग्रंथि काटे मोह माया की।
झूठे मोह से छुड़ाने वाली।
अपना नाम जपानेवाली।
बृहस्पतिवार को पूजा करियो ।
ध्यान कात्यायनी का धरियो।
हर संकट को दूर करेगी।
भंडारे भरपूर करेगी।
जो भी मां को भक्त पुकारे।
कात्यायनी सब कष्ट निवारे।