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अदालत

22 जनवरी 2022

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( गोरखपुर में आज ही अदालत में बी एस एफ के सेवानिवृत्त जवान ने अपनी नाबालिग बेटी के बलात्कार के आरोपी को गोली मार दी जिससे उसकी मौत हो गई । इस सच्ची घटना के आधार पर यह कहानी प्रस्तुत है )  
अदालत का जमादार सबको शांत रहने के लिए कह रहा था । वह बता रहा था कि जज साहब बस अदालत में बैठने ही वाले हैं । रीडर भी सतर्क होकर पत्रावलियां पलटने में लगा हुआ था । बयान कलमबद्ध करने वाला बाबू अपना कंप्यूटर लेकर एलर्ट की पोजीशन में था । इतने में जज साहब के चैंबर से निकल कर एक दरबान ने अदालत में उपस्थित होकर घोषणा की । "ऑर्डर ऑडर । जज साहब पधार रहे हैं" । जज साहब के सम्मान में अदालत में उपस्थित समस्त लोग खड़े हो गए । 
जज साहब "सर्वशक्तिमान" की तरह पधारे और एक निगाह चारों तरफ फिराई । शायद यह सुनिश्चित कर रहे होंगे कि कहीं कोई व्यक्ति अदालत में बैठा तो नहीं रह गया है । अगर किसी ने बैठे रहने की गुस्ताखी की तो क्यों नहीं उसे अदालत की अवमानना के मामले में जेल भेजा जाये ? जो अदालत राष्ट्र गीत के गायन के समय खड़े नहीं होने वाले व्यक्ति को राष्ट्र गीत और राष्ट्र ध्वज का अपमान का अपराधी नहीं समझती वही अदालत जज के आने पर खड़े नहीं होने वाले व्यक्ति को अदालत की अवमानना करने के मामले में जेल भेज देती है । इसका सीधा सा मतलब है कि राष्ट्र गीत, राष्ट्र ध्वज का कोई मान अपमान नहीं होता , अपमान तो केवल अदालत का ही होता है । 

सबको खड़े देखकर जज साहब खुश हुए फिर वे अपनी सीट पर बैठ गए । अदालत की कार्यवाही शुरू हो गई । कुछ मुलजिम अपने वकीलों के साथ आये हुए थे तो कुछ मुलजिमों को पुलिस गिरफ्तार करके लाई हुई थी जिनकी जमानत पर बहस होनी थी । कुछ गवाह गवाही के लिए आए हुए थे । एक एक कर सब काम अदालत में निबटाये जाने लगे । 

दिलशाद भी अपने वकील के संग आया हुआ था । एक बलात्कार के केस में उसकी उच्च न्यायालय से जमानत हो गई थी । केस गवाही में चल रहा था । दिलशाद के वकील ने दिलशाद की हाजिरी माफी के लिए एक प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया और कहा "मेरे मुवक्किल पर बलात्कार का यह झूठा मुकदमा दर्ज करवाया गया है । मुवक्किल एक गरीब किसान है जिसे झूठा फंसाया गया है । अदालत में हर पेशी पर आने से उसकी एक दिन की मजदूरी का नुकसान होता है जिसके कारण उसके परिवार को रोटियां भी नसीब नहीं हो रही हैं । अत: मेरे मुवक्किल को अदालत में उपस्थित होने से छूट दिलवायें " । 

सरकारी वकील ने बहुत धीमे स्वर में विरोध किया । पता नहीं सरकारी वकील पुरजोर तरीके से विरोध क्यों नहीं कर पाते हैं ? या तो जो फीस सरकार उन्हें देती है उस फीस में "जान" नहीं होती है या फिर सामने वाली पार्टी विरोध नहीं करने की फीस सरकारी वकील को दे देती है । असल कारण क्या हैं ये तो सरकारी वकील ही जाने मगर यह वास्तविकता है कि सरकारी वकील दबा कुचला सा, अधिकतर खामोश रहने वाला नजर आता है और अपराधी का वकील शेर की तरह दहाड़ता हुआ सा रहता है । 

जज साहब जब तक उस प्रार्थना पत्र पर कुछ निर्णय कर पाते उससे पहले ही एक पचास पचपन साल का आदमी अदालत के अंदर आया और सीधा दिलशाद पर रिवॉल्वर तान दिया । कोई कुछ समझ पाता इससे पहले ही उस आदमी ने ट्रिगर दबा दिया । धांय धांय की दो बार आवाज आई और दिलशाद की चीख गूंज उठी । दिलशाद नीचे जमीन पर गिर पड़ा और अदालती कार्यवाही के साथ साथ इस दुनिया से आजाद हो गया । 

गोलियों की आवाज़ सुनकर अदालत में भगदड़ मच गई । सर्वशक्तिमान लगने वाले जज साहब सूखे पत्ते कि तरह अपनी सीट पर बैठे बैठे ही थर थर कांपने लगे । रीडर, बाबू, चपरासी, दरबान सभी कारिंदों ने जज साहब को घेर कर उनके चारों तरफ एक सुरक्षा कवच बना दिया और उन्हें ससम्मान चैंबर में ले गये । चैंबर में पहुंचते ही जज साहब की खोई हुई शक्ति वापस आ गई और वे अपने मातहतों पर जोर जोर से चिल्लाने लगे । पी ए को कह दिया कि तुरंत एस पी को बुलवाये । पी ए अपने काम में लग गया । 

थोड़ी देर में पुलिस आ गई । एस पी साहब अपने मातहतों के साथ जज साहब की सेवा में हाजिर हो गए । जज साहब उन पर अपना पूरा रौब झाड़ने लगे । आजकल मी लॉर्ड्स का सारा रौब अपराधियों पर नहीं पुलिस और सरकार पर ही चलता है । 

उधर वह आदमी दिलशाद पर दो गोलियां बरसाकर वहां से भागा नहीं वरन कहने लगा "मुझे गिरफ्तार करो । मैंने इसको मार दिया है । बहुत ख्वाहिश थी इसकी हूरों से मिलने की ।  इस दरिंदे को मैंने आज हूरों के पास पहुंचा दिया है । इसकी ख्वाहिश पूरी कर दी है आज । न जाने कितनी बेटियों का बलात्कारी है यह । क्या किया कानून ने ? पुलिस ने ? जज ने ? क्या मुझे और मेरे जैसे लोगों को इंसाफ मिला ? अदालतों के चक्कर काटते काटते बूढ़ा होने को आ गया मगर ये दरिंदा सलाखों से बाहर ही रहा । सजा तो हम जैसे लोग भुगत रहे हैं जिन्होंने रिपोर्ट दर्ज करवाई है । हां, मैंने इसे मार दिया है । आओ , मुझे सजा दो । सुनो,  चढ़ा दो मुझे फांसी पर" । वह चीखता रहा मगर कोई भी आदमी उसके पास आने की हिम्मत नहीं कर रहा था । 

एस पी साहब ने इस नजारे को देखा तो थानेदार को कहा " खड़ा खड़ा देख क्या रहा है ? चल आगे बढ़ और दबोच ले साले को । बहुत हीरोपंती कर रहा है यह । कानून अपने हाथ में लेने का परिणाम अब पता चलेगा बच्चू को" । एस पी साहब की आंखों में खून उतर आया । 

"हां हां पकड़ लो मुझे । लगा दो हथकड़ी । अपराधियों को तो पकड़ने के लिए जिगरा चाहिए । चूहों में वो जिगरा कहां होता है ? अगर होता तो मुझे भरी अदालत में यह काम नहीं करना पड़ता "। और उसने अपना रिवॉल्वर नीचे पटक दिया । 

थानेदार इसी पल का इंतजार कर रहा था । जैसे ही उसने रिवॉल्वर नीचे पटका तुरंत उसने उस आदमी को दबोच लिया और हथकड़ी लगा दी । चार पांच पुलिस वाले उस पर टूट पड़े और दनादन लात घूंसे बरसाने लगे । पुलिस का यही रिवाज है । अपराधियों की खातिरदारी और आम आदमी की धुनाई । उससे नाम पूछा तो उसने अपना नाम बिरजू बताया । पुलिस उसे पकड़कर थाने ले गई । 


शेष अगले अंक में 

हरिशंकर गोयल "हरि"
22.1.22 

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इंसाफ मैं करूंगा
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अपनी नाबालिग बेटी के बलात्कारी को सजा दिलवाने के लिए अदालतों के चक्कर काट काट कर थकेहारे आदमी ने अदालत परिसर में ही उस बलात्कारी की हत्या कर दी । यह घटना गोरखपुर की है । इसी पर आधारित एक कहानी

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