दर्दे-दिल गर किसी ने समझा होता, ज़नाज़े को कांधा तो दिया होता.
ना जलाता मज़ार पर शमा, दिल के किसी कोने में जगह तो दिया होता.
रूठ कर जाना ही था तो चले जाते पर इस दिल को तो ना दुखाया होता,
मर कर भी मानाने आता जो किसी ने हमको सपुर्दे ख़ाक ना किया होता. (आलिम)