ना तुमको फुर्सत मिली आने की, ना हमें ही फुर्सत मिली तुम्हे भूल जाने की.
तुम अपने कामों में मशरूफ थे, और हम बस तुम्हारी ही यादों में ग़मगीन थे.
खुशियां तो सब तुम्हारे साथ थी, गम ही बेचारे हमारे पास थे,
हज़ारों तुमसे मिलने को बेताब थे, हम तुम्हारे ख्वाबो के साथ थे.
गम इस बात का नहीं ' आलिम ', तुम कहाँ किसके साथ हो,
कर याद उन लम्हों को खुश हो लेता हूँ, कभी तुम हमारे साथ थे.
साथ तो ज़िंदगी भी ज़िंदगीभर देती नहीं, फिर भी ज़िंदगी से प्यार है,
ज़ुदा हुए है जो तुमसे गम नहीं इसका क्योकि हमे तो तुमसे प्यार है. (आलिम)